2023 से घटने लगेगी पेट्रोल-डीजल की वैश्विक मांग, जानें क्या हैं वजहें
जीवाश्म ईंधन की वैश्विक मांग 2023 में अपने चरम पर होगी। इसके बाद इस ईंधन की मांग में जबरदस्त गिरावट दर्ज होगी।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जीवाश्म ईंधन की वैश्विक मांग 2023 में अपने चरम पर होगी। इसके बाद इस ईंधन की मांग में जबरदस्त गिरावट दर्ज होगी, जिसके चलते लाखों करोड़ों डॉलर का तेल, कोयला और गैस बेकार हो जाएंगे। यह दावा लंदन स्थित थिंक टैंक कार्बन ट्रैकर ने किया है। संस्था के मुताबिक पवन व सौर ऊर्जा के तेज उत्पादन के बाद पारंपरिक ऊर्जा स्रोत लोगों की प्राथमिकता नहीं रह जाएंगे। ऐसे में जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में लगीं कंपनियों को घाटा होने का अनुमान है।
कार्बन बबल का सिद्धांत
वर्तमान में जीवाश्म ईंधन कंपनियों के शेयरों की कीमत इस अनुमान पर तय की जाती है कि उनका तेल का सारा भंडार इस्तेमाल कर लिया जाएगा। लेकिन जैसे ही लोग कार्बन मुक्त ईंधन की तरफ पलायन करेंगे, जीवाश्म ईंधन में किया गया लाखों करोड़ों डॉलर का निवेश अपनी कीमत गवां देगा। जीवाश्म ईंधन भंडार और उत्पादन मशीनरी कोई लाभ नहीं दे पाएगी। इसी अनुमानित नुकसान को कार्बन बबल नाम दिया गया है।
विकासशील देश बदलाव के वाहक
तेजी से बढ़ रहे दुनिया के बाजार इस बदलाव के सबसे बड़े वाहक हैं। इन देशों में आबादी का घनत्व ज्यादा है, प्रदूषण ज्यादा है और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। इन देशों के पास जीवाश्म ईंधन आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर कम है, ऊर्जा की मांग अधिक है और ये अक्षय ऊर्जा के भंडारों का लाभ उठाने को लालायित हैं।
क्या हैं वजहें
ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव की प्रमुख वजहें हैं जरूरत, नीतियां और तकनीक। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और लीथियम आयन बैटरी जैसी तकनीकों की क्षमताएं बढ़ रही हैं और इनकी कीमतें 20 फीसद की दर से कम हो रही हैं। यह सिलसिला आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की संभावना है। लिहाजा लोग पारंपरिक स्रोतों से दूर हो रहे हैं।
कैसे तय होते हैं दाम
सबसे पहले खाड़ी या दूसरे देशों से तेल खरीदते हैं, फिर उसमें ट्रांसपोर्ट खर्च जोड़ते हैं। क्रूड आयल यानी कच्चे तेल को रिफाइन करने का व्यय भी जोड़ते हैं। केंद्र की एक्साइज ड्यूटी और डीलर का कमीशन जुड़ता है। राज्य वैट लगाते हैं और इस तरह आम ग्राहक के लिए कीमत तय होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बदलाव घरेलू बाजार में कच्चे तेल की कीमत को सीधे प्रभावित करता है। भारतीय घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार यह सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से है। अंतरराष्ट्रीय मांग में वृद्धि, कम उत्पादन दर और कच्चे तेल के उत्पादक देशों में किसी तरह की राजनीतिक हलचल पेट्रोल की कीमत को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
कंपनियां कर रहीं दावे को खारिज
तेल व गैस कंपनियों का कहना है कि उनकी संपत्ति किसी भी तरह के खतरे में नहीं है, क्योंकि उनके भंडार ज्यादा समय के लिए भूमिगत नहीं रहते हैं। ब्रिटिश पेट्रोलियम ने इस वर्ष की शुरुआत में कहा था कि वह हर 13 वर्ष में अपने अपना पूरा हाइड्रोकार्बन भंडार खत्म कर देती है। दुनिया की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनी एक्सॉनमोबिल तो 2040 तक व्यापार में वृद्धि के कयास लगा रही है। कंपनी का कहना है कि लोग बड़े वाहनों, जहाजों और विमानों के लिए तेल पर निर्भर बने रहेंगे।