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कल्याण सिंह के कई कड़े फैसलों में से एक था नकल विरोधी अध्यादेश

उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश लागू करने वाले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का शनिवार को निधन हो गया। 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए जिसमें से एक नकल अध्यादेश भी था।

By Avinash RaiEdited By: Published: Sat, 21 Aug 2021 11:25 PM (IST)Updated: Sat, 21 Aug 2021 11:58 PM (IST)
कल्याण सिंह के कई कड़े फैसलों में से एक था नकल विरोधी अध्यादेश
नहीं रहे उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश लागू करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह

नई दिल्ली, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश लागू करने वाले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का शनिवार को निधन हो गया। अलीगढ़ जिले के अतरौली में 5 जनवरी 1932 को कल्याण सिंह का जन्म हुआ था। कल्याण सिंह की राजनीति की शुरूआत साल 1967 से हुई थी, उन्होंने अतरौली से चुनाव लड़ा और जीत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के रूप में उनको चुना गया।

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जून 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक शानदार जीत हासिल की, उस दौरान कल्याण सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह ने 6 दिसम्बर 1992 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। मगर अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े फैसले लिए जिसमें से एक नकल अध्यादेश भी था। कल्याण सिंह की सरकार में उस समय शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह थे।

कल्याण सिंह की सरकार ने किया था नकल अध्यादेश लागू

कल्याण सिंह सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक था प्रदेश में नकल अध्यादेश लागू करना। कल्याण सिंह ने अगर उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश लागू नहीं किया होता तो आज प्रदेश की स्थिति और भी ज्यादा खराब हो सकती थी। इस नकल अध्यादेश के लागू होने से हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में नकल में कमी आई थी मगर परीक्षा परिणाम निचले स्तर पर पहुंच गया था। अध्यादेश के लागू होने के बाद, पहले जहां यूपी बोर्ड का परिणाम 85 फीसद आता था वह घट कर 25 फीसदी तक हो गया। यूपी में नकल करना व नकल करवाना एक संज्ञेय अपराध माना जाने लगा था।

1993 के चुनाव में नक़ल अध्यादेश था अहम मुद्दा

नकल अध्यादेश प्रदेश के लिए भले ही अच्छा साबित हुआ मगर, 1993 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इस नकल विरोधी अधिनियम का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की थी और कहा जा हैं कि उस समय सपा को फायदा भी मिला था। उस चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिला था और उस समय के शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चुनाव हार गए थे।


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