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Ayodhya land dispute case: मुस्लिम पक्ष ने कहा, निर्मोही अखाड़ा और अन्य के पास सबूत नहीं

Ayodhya land dispute case में आज सुप्रीम कोर्ट में 38वें दिन सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें रखते हुए अधिवक्‍ता राजीव धवन ने कहा कि प्रतिवादियों के पास सबूत नहीं हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 07:55 AM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 12:11 AM (IST)
Ayodhya land dispute case: मुस्लिम पक्ष ने कहा, निर्मोही अखाड़ा और अन्य के पास सबूत नहीं
Ayodhya land dispute case: मुस्लिम पक्ष ने कहा, निर्मोही अखाड़ा और अन्य के पास सबूत नहीं

नई दिल्‍ली, माला दीक्षित। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मस्जिद का दावा करते हुए एकाधिकार और मालिकाना हक मांग रहे मुस्लिम पक्ष की दलील पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया। अदालत ने पूछा कि अगर वहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार था तो क्या इससे मुसलमानों का एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं हो जाता? सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों के लगातार सवालों से मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन झल्ला गए और कहा कि कोर्ट सिर्फ उन्हीं से सवाल पूछता है।

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सोमवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी अपील पर बहस पूरी कर ली। मंगलवार को हिंदू पक्ष उनकी दलीलों का जवाब देगा। कोर्ट में आज फिर सुनवाई के शेड्यूल पर चर्चा हुई। जब वकीलों ने कहा कि कोर्ट ने कहा है कि गुरुवार तक सुनवाई पूरी हो जाएगी, तो मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि बुधवार तक सुनवाई पूरी कर लेंगे। हालांकि बुधवार तक सुनवाई पूरी होना मुश्किल है, क्योंकि अभी हिंदू पक्ष को जवाब देना है और उसके बाद कोर्ट वैकल्पिक मांग पर भी सुनवाई करेगा।

यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित स्थान पर मालिकाना हक का दावा करते हुए राजीव धवन ने कहा कि वहां 1528 से जबसे मस्जिद बनी है, सिर्फ मुसलमानों का ही अधिकार रहा है। मुसलमान ही उस जगह के मालिक हैं। उनका मुकदमा समयबाधित नहीं है।

यह तो इतिहास दोबारा लिखने जैसा

धवन ने कहा कि कोर्ट को मुगल शासन और उसकी वैधानिकता पर नहीं विचार करना चाहिए। यह एक तरह से इतिहास को दोबारा लिखने जैसा होगा, जिससे पिटारा खुल जाएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। क्या दिल्ली में कोई नया शासक आए तो नया इतिहास लिखा जाए। हिंदुस्तान और यूरोप में अंतर है। यहां बहुत युद्ध हुए और जीते गए। उन्होंने अशोक का भी उदाहरण दिया।

इस्लामिक लॉ के कम ज्ञान की टिप्पणी पर पीएन मिश्रा का एतराज

धवन ने कहा कि कुछ चीजें कुरान और हदीस से चुनकर यह नहीं कहा जा सकता कि कुरान के खिलाफ काम किया गया। यहां लोगों को इस्लामिक लॉ का सीमित ज्ञान है और वे सवाल उठा रहे हैं। इस पर राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति की ओर से पेश वकील पीएन मिश्रा ने एतराज जताया। मिश्रा ने कहा कि धवन को कम ज्ञान है, तो वह सबके लिए यह बात कैसे कह सकते हैं। हाई कोर्ट ने विचार के तय प्रश्नों में एक प्रश्न रखा था कि क्या मस्जिद इस्लाम के मानकों के मुताबिक है और इसी पर मैंने बहस की। धवन ने कहा कि हाई कोर्ट का यह प्रश्न तय करना गलती थी। धवन ने वहां मस्जिद का दावा करते हुए कहा कि मस्जिद हमेशा मस्जिद रहती है। छह दिसंबर, 1992 को ढहाए जाने के बावजूद उसकी प्रकृति समाप्त नहीं होगी।

चार सौ साल पहले बनी मस्जिद के नीचे खुदाई करना ठीक नहीं

धवन ने कहा कि मस्जिद बनने के 450 साल बाद उसके नीचे खुदाई करके यह पता लगाना ठीक नहीं है कि पहले वहां कुछ था कि नहीं था। उन्होंने हाई कोर्ट के एएसआइ से खुदाई कराने के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि अगर इस तरह होगा तो फिर इन लोगों का कहना है कि 500 मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गईं।

दोबारा बनाई जाए मस्जिद

धवन ने कहा कि कोर्ट अगर वैकल्पिक मांग पूछ रहा है तो उनकी यही मांग है कि वहां पांच दिसंबर, 1992 की स्थिति बहाल की जाए। दोबारा मस्जिद बनाई जाए। उन्होंने छह दिसंबर की घटना की निंदा की।

यूं चले सवाल जवाब, झल्लाए धवन

राजीव धवन - 1857 के बाद के रिकॉर्ड से साफ है कि अथॉरिटी ने मुसलमानों के अधिकार को वहां मान्यता दी है। बाबर द्वारा मस्जिद को दिए जा रहे अनुदान को ब्रिटिश सरकार ने भी जारी रखा था। 1886 में हिंदुओं ने मुकदमे में मालिकाना हक का दावा किया था, लेकिन कोर्ट ने दावा नहीं माना था।

जस्टिस अशोक भूषण - उस मुकदमे में मालिकाना हक नहीं मांगा गया था। चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी गई थी।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - वह मुकदमा मालिक घोषित करने की मांग का नहीं था।

राजीव धवन - तो मंदिर बनाने की इजाजत का मतलब क्या होता है। निर्मोही अखाड़ा का सिर्फ पूजा प्रबंधन का अधिकार था। मुसलमानों का वहां कभी मालिकाना हक समाप्त नहीं हुआ।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - बाहरी अहाते में हिंदुओं का कब्जा था। इस केस में यह स्वीकार्य बात है कि 1855 के आसपास वहां राम चबूतरा बना। पूजा की इजाजत दी गई।

राजीव धवन - मुसलमान लगातार मुख्य द्वार का उपयोग करते थे।

जस्टिस एसए बोबडे - अगर हिंदुओं के पास पूजा का अधिकार था, तो क्या इससे आपका एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं होता।

राजीव धवन - लंबे समय तक उस जगह का उपभोग करने के कारण उनके पास पूजा का अधिकार था। लेकिन मालिकाना हक नहीं था। अगर कोई मेरे घर आए और कहे कि क्या मैं आपके यहां हाथ धो सकता हूं और मैं उसे इसकी इजाजत दे दूं। वह रोजाना पांच बार हाथ धोने आए तो क्या वह मेरे घर का मालिक हो जाएगा।

जस्टिस एसए बोबडे - लेकिन कब तक यह जारी रह सकता है।

राजीव धवन - यह अधिकार कितना भी लंबा हो सकता है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - मामले में कहा गया है कि बैरागी वहां बाहरी अहाते में रहते थे। वहां 1855 में जो रेलिंग लगाई गई थी, वह वहां संपत्ति के बंटवारे के लिए नहीं थी। वह रेलिंग हिंदू और मुसलमान को अलग करने के लिए थी।

राजीव धवन - ऐसा कानून व्यवस्था के लिए किया गया था। यह सवाल तो हिंदू पक्ष से पूछा जाना चाहिए था। इसके जवाब की जिम्मेदारी तो इन पर बनती है। इस केस में कोर्ट मुझसे ही सवाल पूछता है। इन लोगों (हिंदू पक्ष) से नहीं पूछता।

रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन - इस तरह की बात नहीं की जा सकती।

रामलला के वकील के. परासरन - कोर्ट से ऐसे सवाल नहीं कर सकते।

राजीव धवन - मुझसे सवाल पूछे जाते हैं और मैं उनका जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध हूं।


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