आज ही के दिन आतंकी हमले से दहल उठी थी मुंबई, 'शैतान' कसाब के चेहरे पर थी क्रूर हंसी
दस साल बाद भी हमले के दाग मौजूद हैं। इस हमले में अपने माता-पिता को गंवा देने वाले मोशे की नैनी सांद्रा सैमुअल चाहती है दाग मिटा दिए जाएं।
मुंबई, प्रेट्र। वह 26 नवंबर की रात थी। साल 2008 का था यानी एक दशक पहले का साल। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की तेज भागती जिंदगी में लोग अपने घरों को जाने को बेताब थे। छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर सामान्य दिनों की तरह ही चहल-पहल थी। सबकुछ सामान्य चल रहा था कि अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देने लगी। किसी को कुछ समझ में आता तब तक कई लोगों की लाशें गिर गई थीं।
चश्मदीदों के जेहन में आज भी हरे हैं इंसानियत के कत्ल के घाव
रेलवे के अनाउंसर विष्णु जेंदे की नजर अचानक हाथों में असाल्ट राइफल लिए मोहम्मद अजमल कसाब पर पड़ी, जो बहुत ही बेरहमी से लोगों की हत्याएं करते वक्त मुस्कराते जा रहा था। विष्णु जेंदे के जेहन में मुंबई में हुए देश के सबसे बड़े आतंकी हमले के घाव अभी भी हरे हैं।
वह कसाब के चेहरे की क्रूर मुस्कान को भूल नहीं पाते। जेंदे कहते हैं शैतान कसाब ने उन्हें भी बाहर निकलने का इशारा किया था। वह अंधाधुंध गोलियां बरसाते वक्त लोगों को गालियां भी देते जा रहा था। इस हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे, जिसमें से अकेले 52 लोग छत्रपति शिवाजी स्टेशन पर ही आतंकियों की गोलियों के शिकार बने थे।
कामा अस्पताल में नरसंहार
छत्रपति शिवाजी महाराज रेलवे स्टेशन पर लोगों की जान लेने के बाद कसाब ने पास के ही कामा एवं एलब्लेस अस्पताल पर हमला बोला। उसके साथ एक और आतंकी भी था। उस वक्त अस्पताल में वाचमैन कैलाश रात की ड्यूटी पर थे। उन्होंने बताया कि कसाब और उसके साथी ने अस्पताल में घुसते ही अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। आतंकी हमले में अस्पताल में भी कई लोग मारे गए थे। नर्स मीनाक्षी और अस्मिता ने बताया कि उन लोगों ने फ्रिज, एक्स-रे मशीन, दवा की ट्रॉली लगाकर वार्ड के दरवाजे बंद किए थे, ताकि आतंकी घुसने न पाएं।
हमले के दाग को मिटा देना चाहती है नैनी
आतंकियों ने यहूदियों के नरीमन हाउस को भी निशाना बनाया था। इसे चाबड़ हाउस के नाम से भी जाना जाता है। दस साल बाद भी हमले के दाग मौजूद हैं। इस हमले में अपने माता-पिता को गंवा देने वाले मोशे की नैनी सांद्रा सैमुअल चाहती है दाग मिटा दिए जाएं। इस हमले में 9 लोग मारे गए थे।