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Exclusive Interview: राष्ट्रीय विपक्षी विकल्प की धुरी तो कांग्रेस ही रहेगी : सचिन पायलट

यह बात सही है कि हम दो आम चुनाव लगातार हारे हैं। मगर हम दो लगातार आम चुनाव जीते भी थे। यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस को पिछले चुनाव में 20 प्रतिशत वोट मिले हैं और दो तिहाई वोट भाजपा-राजग के खिलाफ पड़ा था।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 18 Dec 2021 08:54 PM (IST)Updated: Sat, 18 Dec 2021 11:14 PM (IST)
Exclusive Interview: राष्ट्रीय विपक्षी विकल्प की धुरी तो कांग्रेस ही रहेगी : सचिन पायलट
कांग्रेस के युवा नेता और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट

राजस्थान में कांग्रेस के धुरंधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अवरोधों को अपनी जमीनी राजनीति के दम पर रोकने के बाद पार्टी के युवा नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सूबे की चुनावी परिपाटी को बदलते हुए कांग्रेस की दोबारा वापसी के लिए जोर लगाने में जुट गए हैं। सूबे की सत्ता और संगठन में अपने समर्थकों को वाजिब जगह दिलाने से उत्साहित होकर वे राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के मौजूदा चुनौतियों से उबरने को लेकर आशान्वित हैं। राहुल गांधी के फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनने से लेकर ममता बनर्जी की सियासत से अलग राह पर चल रही विपक्षी राजनीति सरीखे मुद्दों पर सचिन पायलट ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत की। पेश हैं इसके अंश :

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-बांग्लादेश युद्ध के 50 साल होने के मौके पर सरकार द्वारा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की भूमिका भुलाने को लेकर कांग्रेस उद्वेलित क्यों है?

-जब 1971 की लड़ाई हुई थी, उस समय भारत की शक्ति इतनी नहीं थी, जितनी आज है। तब भी इंदिरा गांधी ने एक नए मुल्क बांग्लादेश का निर्माण किया। इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने दक्षिण एशिया का भूगोल और इतिहास बदला। सीमित साधनों से हमारी सेना के साथ पाकिस्तान के दो टुकड़े किए। उस महिला को ऐतिहासिक जीत के 50वें वर्ष के समारोह में याद न करना निंदनीय और अशोभनीय दोनों है।

-राजस्थान में सरकार और संगठन में बदलाव के बाद आपकी सक्रियता काफी तेज हो गई है। क्या माना जाए कि गहलोत-पायलट के बीच मतभेद खत्म हो गए हैं और वहां कांग्रेस एकजुट है?

-मेरा किसी व्यक्ति विशेष से न कोई विरोध रहा, न मतभेद। लेकिन आप जानते हैं कि राजस्थान में 30 साल से परंपरा है-एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस। इस परिपाटी को तोड़ने के लिए जरूरी है कि हम सरकार और संगठन में कुछ ऐसा करें, ताकि जनता हमें दूसरी बार आशीर्वाद दे सके। हमें याद रखना चाहिए कि कांग्रेस की सरकारें भी कई बार सत्ता में वापस लौटी हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित और असम में तरुण गोगोई ने लगातार तीन चुनाव जीते। हरियाणा और आंध्र प्रदेश में भी हम लगातार दो बार सत्ता में लौटे। राजस्थान में पूरा भरोसा है कि 22 महीने बाद चुनाव होंगे तो नया इतिहास बनेगा।

-राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के कमजोर होने को लेकर देश में एक चिंता है, क्योंकि मजबूत विपक्ष की कमी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। आखिर कांग्रेस अपनी मौजूदा चुनौतियों से क्यों नहीं उबर पा रही है?

-यह बात सही है कि हम दो आम चुनाव लगातार हारे हैं। मगर हम दो लगातार आम चुनाव जीते भी थे। यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस को पिछले चुनाव में 20 प्रतिशत वोट मिले हैं और दो तिहाई वोट भाजपा-राजग के खिलाफ पड़ा था। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती देते हुए कोई पार्टी जीत सकती है तो वह कांग्रेस ही है। संप्रग के सभी सहयोगी अपने-अपने इलाके में प्रभाव रखते हैं और उनको हम साथ लेकर चल रहे हैं। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के हाल के उपचुनाव में हमने भाजपा को हराया है। अभी पांच राज्यों में होने जा रहे चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम आएंगे।

-कांग्रेस की मौजूदा संगठनात्मक चुनौतियों के बीच सार्थक परिणाम की उम्मीदों का आधार क्या है?

-राष्ट्रीय स्तर पर अब लोग बदलाव चाह रहे हैं, क्योंकि सात साल के मोदी सरकार के कार्यकाल में महंगाई, रोजगार, निवेश, औद्योगीकरण, सीमा पर चीन का अतिक्रमण से लेकर तमाम मोर्चे पर स्थिति चिंताजनक है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात की गई, मगर किसानों को एक साल तक आंदोलन करने के लिए विवश किया गया। सब जानते हैं कि आधार, जीएसटी, अमेरिका के साथ परमाणु करार, विनिवेश आदि का भाजपा ने विरोध किया और आज रेलवे, एयरपोर्ट, बिजली सबका धुंआधार निजीकरण कर रही है। उद्योगपतियों का लाखों करोड़ कर्ज माफ हो गया, मगर किसानों का कर्जा माफ नहीं हुआ।

-भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्षी राजनीति दो धारा में चल रही है। ममता बनर्जी अलग रास्ते पर चलते हुए कांग्रेस को ही अलग-थलग कर रही हैं। ऐसे में विपक्षी एकजुटता कहां है?

-ममता बनर्जी ने संप्रग को 2012 में छोड़ दिया था। जहां तक गठबंधन की बात है तो संप्रग मजबूती से कायम है। हमें जरूरत है कि संप्रग के साथ और दलों को जोड़ें। यह सच्चाई कुबूल करनी होगी कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के वोटों को एकजुट करने की कोई धुरी है तो वह कांग्रेस ही है। क्षेत्रीय दलों की अपनी अहम भूमिका है, मगर उनकी भौगोलिक सीमाएं हैं। इसलिए निजी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय हमें 2024 में भाजपा-राजग को शिकस्त देने के लिए बेहतर विकल्प तैयार करना चाहिए। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी इस दिशा में काम कर रही हैं।

-कांग्रेस पिछले कई साल से अपने ही नेतृत्व की दुविधा का मसला हल नहीं कर पा रही है तो विपक्षी नेतृत्व के मुद्दे को कैसे हल करेगी?

-कांग्रेस में नेतृत्व का मुद्दा तो अब बचा नहीं, क्योंकि कार्यसमिति ने संगठन चुनाव की घोषणा कर दी है। कुछ महीनों में हर स्तर पर पार्टी में चुनाव होंगे। मुद्दा यह नहीं है कि पार्टी में आंतरिक स्तर पर क्या चल रहा है। देश चाहता है कि जिन लोगों को लगातार दो बार जनादेश दिया और उन्होंने निराश किया है तो विपक्ष एक साथ मिलकर संसद से सड़क तक चुनौती दे। कांग्रेस 24 घंटे विपक्ष की इस भूमिका के लिए तैयार है। जो सहयोगी दल हैं, हम उनको साथ लेंगे। कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर अक्सर आधारहीन बातें कही जाती हैं, मगर वास्तविकता यह भी है कि 1989 के बाद पिछले 32 साल में गांधी परिवार से कोई प्रधानमंत्री नहीं बना है। 2004 में पार्टी ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया था। तब उन्होंने कहा कि पीएम मनमोहन सिंह को बनना चाहिए। राहुल गांधी को कई बार मौका मिला मंत्री बनने या मनमोहन सिंह की जगह संप्रग का नेतृत्व करने का। मगर उन्होंने स्वीकार नहीं किया। इससे साफ है कि कांग्रेस के नेतृत्व को पद का लालच नहीं है।

-कांग्रेस की रीति-नीति का राहुल गांधी जिस तरह संचालन कर रहे हैं तो क्या यह माना जाए कि उन्हें ही एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी?

-2019 के चुनाव के बाद नैतिकता के आधार पर राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया था। ऐसा करने वाले मौजूदा राजनीति में कितने लोग हैं? हमारे यहां तो चुनाव के माध्यम से अध्यक्ष चुना जाता है और मुझे मालूम नहीं कि बाकी दलों में क्या प्रक्रिया है? मसलन जेपी नड्डा जो आज भाजपा के अध्यक्ष हैं, उनके चुनाव का नामांकन कैसे हुआ और कौन मतदाता थे, यह देश को मालूम नहीं है। कांग्रेस में तो खुला चुनाव होता है। अलग-अलग प्रांतों से जो आवाज उभर कर सामने आई है, उसमें साफ है कि राहुल गांधी को नेतृत्व संभालना चाहिए। मुझे लगता है कि राहुल गांधी पार्टी के आग्रह को स्वीकार कर चुनाव के जरिये जल्द कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे।


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