Move to Jagran APP

EXCLUSIVE: हिंदू फायरब्रांड व्यक्तित्व वाले अक्खड़ स्वभाव के नेता- गिरिराज सिंह

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की छवि हमेशा से एक हिंदू फायरब्रांड नेता के तौर पर रही है जिनका स्वभाव थोड़ा अक्खड़ है। जिस कारण वह समर्थकों और विरोधियों दोनों के बीच लोकप्रिय हैं।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 08:51 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2019 11:49 PM (IST)
EXCLUSIVE: हिंदू फायरब्रांड व्यक्तित्व वाले अक्खड़ स्वभाव के नेता- गिरिराज सिंह
EXCLUSIVE: हिंदू फायरब्रांड व्यक्तित्व वाले अक्खड़ स्वभाव के नेता- गिरिराज सिंह

मनोज झा, पटना। टेलीविजन के पर्दे पर आए दिन पाकिस्तान को ललकारने और उसकी लानत-मलानत करने वाले केंद्रीय पशुपालन और मत्स्य मंत्री गिरिराज सिंह के हिंदू फायरब्रांड व्यक्तित्व के पीछे कोई सीधी बड़ी कथा तो नहीं है लेकिन बचपन से ही एक बात साफ दिखती रही कि वह अक्खड़ हैं। संघ और पार्टी की सेवा की तो अक्खड़ता के साथ और दिल में कोई बात आई तो सामने रखी अक्खड़ता के साथ। राजनीति और व्यक्तिगत जीवन दोनों जगह यही उनकी विशेषता है। उनका समर्थक वर्ग है तो इसी गुण के कारण और विरोधियों का एक बड़ा झुंड है तो वह भी उनके इसी गुण के कारण।

loksabha election banner

बचपन और जवानी के दिन
बचपन में घर में खेती-किसानी के माहौल के बीच गिरिराज ने वहीं से स्कूली शिक्षा प्राप्त की। तब उनका गांव बड़हिया आपसी गैंगवार को लेकर पूरे प्रदेश में चर्चा में था। पिता ने शायद गांव के माहौल को देखते हुए किशोर उम्र में ही गिरिराज को बेगूसराय स्थित अपने बहनोई वृद्धदेव नारायण सिंह के पास पढ़ने-लिखने को भेज दिया। स्कूल बेशक बड़हिया में था, लेकिन गिरिराज का ज्यादातर समय अपने फूफा के गांव सदानंदपुर में बीतने लगा। फूफा वृद्धदेव कठोर अनुशासनप्रिय और बेहद धार्मिक प्रवृति के इंसान थे। खान-पान को लेकर भी तमाम पाबंदियां थीं। यहां तक कि लहसुन-प्याज तक वर्जित था। शायद यहीं से उनका धार्मिक प्रवृत्ति की ओर रुझान हुआ।

खाने-पीने के शौकीन गिरिराज अक्सर अपने फुफेरे भाइयों कमल, विमल और गणेश के साथ घर के सहायक को ले कहीं अलग जाकर स्टोव पर मनपसंद खाना बनवाते। इसी प्रकार ईख के सीजन में पास के बांक गांव चले जाते, जहां पूरे दिन जी भरकर गन्ने का रस और दूध पीते।गिरिराज में धर्म के प्रति गहरा अनुराग और बेलौसपन शायद सदानंदपुर की ही देन है। स्कूली शिक्षा के बाद तो गिरिराज ने कॉलेज की पूरी पढ़ाई बेगूसराय में ही की।

संघ से ऐसे हुआ जुड़ाव
गिरिराज के फुफेरेभाई गणेश बताते हैं कि वर्ष 1978 में उनकी बहन की शादी थी। शादी के दौरान ही संघ से जुड़े नेता जर्नादन शर्मा से उनकी भेंट हुई और फिर वह धीरे-धीरे राष्ट्रवाद की विचारधारा की ओर खिंचते चले गए। काम-धंधे से मन उचटता गया और 1980 के आसपास पटना चले गए। इसी दौरान वह भाजपा के पुराने नेता लालमुनि चौबे और जनार्दन यादव के संपर्क में आए। बाद में उन्हें कैलाशपति मिश्र जैसों का सान्निध्य मिला और संघ के संस्कार में दीक्षित होते चले गए।

ज्यादातर दिन खिचड़ी पकती थी, क्योंकि इसे बनाने में समय कम लगता था। फुफेरे भाई गणेश बताते हैं कि उनसे जब वे लोग पूछते कि 15 साल के इस कठोर समर्पण के बावजूद पार्टी ने उन्हें अब तक टिकट नहीं दिया तो गिरिराज का जवाब होता था- मुझसे न जाने कितने पहले से बहुत सारे कार्यकर्ता पार्टी के लिए पूरी तरह निष्ठावान होकर काम कर रहे हैं। उनका नंबर तो मुझसे पहले आना चाहिए। गिरिराज पार्टी के काम में इतने रमे कि परिवार के लिए भी ज्यादा वक्त नहीं निकाल पाते।

गुरु महादेव
गिरिराज सिंह शुरू से बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के रहे। जब भी अपने गांव बड़हिया जाते वहां घर के सामने जगदंबा स्थान में लंबी पूजा करते। बाद में सदानंदपुर में फूफा के घर के माहौल ने उन्हें महादेव की आराधना में प्रवृत्त कर दिया। वहां फूफा के घर अक्सर शिव चर्चा होती थी। इसमें गिरिराज रुचि से हिस्सा लेते। बीच-बीच में मौका मिलते ही वह किसी न किसी शिवधाम या देवीस्थान चले जाते। वह कई बार सुल्तानगंज से देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम पैदल कांवड़ यात्रा कर चुके हैं। भाई गणेश बताते हैं कि एक बार हम सभी कांवड़ यात्रा पर निकले। गिरिराज भाई ने अचानक तय किया कि वह पैदल नहीं, डाक कांवड़ लेकर जाएंगे और गए भी। इतना ही नहीं, देवघर पहुंचने के दो दिन बाद फिर तय किया कि एक बार और डाक कांवड़ लानी है। फिर क्या था, सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर दूर वैद्यनाथ की ओर दौड़ पड़े। मधुबनी स्थित मंगरौनी और मध्य प्रदेश में नर्मदा तट स्थित अमरकंटक उनका प्रिय शिवधाम है। शुरू में उन्होंने भगवती तारा की भी खूब आराधना की और कई सालों तक प्रत्येक अमावस्या को पश्चिम बंगाल स्थित तारापीठ भी नियमित रूप से जाते रहे। वहां श्मशान भूमि पर निशारात्रि में तांत्रिकों के साथ साधना पर खूब चर्चा भी की। बाद में उन्होंने महादेव को अपना गुरु बनाया और फिर पूरी तरह उसी में रम गए।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.