मोदी और ट्रंप की प्रखर कूटनीति की धमक
अब भारत अपने पारंपरिक मित्र देश ईरान से फिलहाल कुछ महीनों तक तेल भी खरीद सकेगा।
प्रशांत मिश्र , नई दिल्ली। कूटनीति के जरिए आमजनता की जरूरतों की पूर्ति का यह चमचमाता उदाहरण माना जा सकता है। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध सोमवार से लागू हो चुका है। लेकिन भारत इसके प्रभाव से अछूता है। यानी भारत ईरान से तेल खरीदता रहेगा। निश्चित तौर पर भारत के अलावा कुछ और देशों को भी अमेरिकी प्रतिबंध से रियायत मिली है लेकिन राजग सरकार ने पिछले छह महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की कूटनीति दिखाई है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दो धुर विरोधियों के बीच सामंजस्य बनाना और अपने हितों की रक्षा करने की कला दिखाने में राजनीतिक साहस और इच्छाशक्ति भी दिखानी होती है। भारत ने यह काम कर दिखाया है। अब भारत अपने पारंपरिक मित्र देश ईरान से फिलहाल कुछ महीनों तक तेल भी खरीद सकेगा और अमेरिका के साथ नई रणनीतिक रिश्तों पर कोई उल्टा असर भी नहीं होगा। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान को भी दिया जाएगा।
मई, 2018 में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ किये गये करार को तोड़ा था तभी यह साफ हो गया था कि भारत को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत आखिरकार ईरान के तीन सबसे बड़े तेल खरीददार देशों में से है। पिछले दो महीने से ईरान पर लगने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों के भय से मार्केट में उथल पुथल का माहौल था और सबसे ज्यादा चिंताएं देश के क्रूड इंपोर्ट को लेकर जताई जा रही थी। देश के कुल क्रूड इंपोर्ट में ईरान का योगदान करीब 26 फीसद है। अमेरिकी प्रतिबंध अगर भारत के लिए भी प्रभावी होते तो जाहिर है आपूर्ति पर असर होता।
पर सरकार ने शुरू से ही तीन स्तरों पर इस कदम से बचने की कोशिश शुरु कर दी थी। सबसे पहले तो ईरान को यह भरोसा दिलाना था कि भारत अपने इस पारंपरिक मित्र देश को यूं ही एक झटके में नहीं छोड़ सकता। हाल ही में भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने ईरान की यात्रा की थी और वहां चाबहार पोर्ट से लेकर द्विपक्षीय कारोबार को दोगुना करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई थी। दूसरी तरफ अमेरिका को यह बताया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ईरान से तेल खरीदना कितना जरूरी है।
अक्टूबर, 2018 में जब दोनो देशों के बीच टू प्लस टू वार्ता हुई तो यह पक्ष मजबूती से रखा गया कि अगर अमेरिका के प्रतिबंध भारत को कमजोर करते हैं तो अमेरिका के हितों के भी खिलाफ जाएगा। खास तौर पर चाबहार पोर्ट का जिक्र किया गया कि किस तरह से यह अफगानिस्तान में अमेरिका के हितों की रक्षा करता है। तीसरे स्तर पर यूरोपीय देशों के साथ चर्चा शुरु की गई कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद किस तरह से ईरान से तेल खरीदना जारी रखा जा सकता है।
अमेरिका की ओर से मिली ये छूट सिर्फ तात्कालिक राहत भर नहीं है बल्कि इस बात का भी परिचायक है कि अंतराष्ट्रीय मोचरें पर भारत की साख बढ़ी है और एक स्थिर और मजूबत नेतृत्व की जायज मांग को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यूं दरकिनार नहीं कर सकती। इसे प्रधानमंत्री मोदी की अंतरराष्ट्रीय ख्याति और भारत के हितों को लेकर दुनिया के सामने उनकी दृढ़ता को भी दर्शाता है। ये इस बात को भी दर्शाता है कि भारत अब सॉफ्ट टार्गेट नहीं है। इस सफलता ने चीन, जापान जैसे देशों के मुकाबले एक लीडर के तौर पर स्थापित किया है।
प्रधानमंत्री ने हाल ही में दुनिया भर के तेल उत्पादक देशों और वहां की तेल कंपनियों के प्रमुखों के साथ बैठक कर उन्हें ये समझाने में भी सफलता हासिल की कि उनके लिए भारत कितना अहम बाजार है। इसका परिणाम ये हुआ कि ग्लोबल स्तर पर क्रूड की कीमतों में भी कमी देखने को मिल रही है। इस कमी का सीधा असर पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों पर देखने को मिल रहा है। पिछले 19 दिनों में पेट्रोल डीजल की कीमतों में 4 रूपये से ज्यादा की कमी हो चुकी है।