जानिए, किसके कहने पर अटल ने माफ कर दिया था एक देश का कर्ज
बात कितनी ही कड़वी क्यों न हो अगर उसे अटल जी कहते थे तो किसी को भी बुरी नहीं लगती थी।
यशवंत सिन्हा
(पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री)
अटल बिहारी वाजपेयी भारत की आवाज थे। उनकी आवाज में विद्वता, बुद्धिमत्ता और विनोद के साथ किसी को किसी प्रकार की तकलीफ न पहुंचाने की भावना थी। उनकी बात कभी किसी को बुरी नहीं लगी। गंभीर से गंभीर बात को वे संसद या संसद के बाहर सहज तरीके से रखने में महारत रखते थे।
मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे उनके साथ नजदीक से काम करने का मौका मिला। पहले पार्टी में और फिर सरकार में वित्त और विदेश मंत्री के तौर पर भी। उनसे हर मुलाकात में कुछ नया सीखने को मिलता था। विदेश नीति में उनकी जो समझ व पकड़ थी, वैसी बहुत कम राजनेताओं में देखने को मिलती है। मैंने जब विदेश मंत्रालय का काम संभाला तो उनसे मार्गदर्शन मांगा कि क्या करना चाहिए। उन्होंने मुझसे कहा कि सबसे पहले पड़ोसियों का ध्यान रखिए। पड़ोसी देशों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसी के बाद मैंने सबसे पहली विदेश यात्रा मालदीव की की थी। वहां के नेताओं से मुलाकात, बात हुई। इसके बाद श्रीलंका गया। आरंभिक महीनों में मैंने सिर्फ पड़ोसी देशों की यात्रा की। अमेरिका या रूस जैसे बड़े देशों में तो बाद में गया। क्योंकि अटल जी चाहते थे कि पड़ोसियों के साथ सबसे पहले संबंध प्रगाढ़ होने चाहिए।
इसके बाद अटल जी ने मुझे वित्त मंत्रालय का कार्यभार सौंपा। जब पहला बजट बन रहा था तो मैं फिर उनके पास गया, यह जानने कि वो क्या चाहते हैं। सबसे ज्यादा जोर किस क्षेत्र पर दूं। तब उन्होंने मुझसे कहा कि खेतों और किसानो की भलाई के लिए प्रयास करो। इसके बाद जब बजट पर चर्चा हुई तो प्रसन्न हुए। मैंने उन्हें बताया कि किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड शुरू किए हैं। उन्हें ये आइडिया अच्छा लगा और पहले बजट में ही इसे शामिल कर लिया। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र में हम पीछे हैं, उस पर ध्यान दिया जाए। हमने बजट में उसके लिए संसाधन जुटाने के उपाय किए। राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के लिए हमने पेट्रोल और डीजल पर एक-एक रुपये का सेस लगाया। आर्थिक मामलों में वे बड़े अर्थशास्त्री नहीं थे। लेकिन आम जनता की जरूरतों को जिस तरह समझते थे, शायद ही कोई और समझता हो। देश की अर्थव्यवस्था को लेकर वे बराबर मार्गदर्शन देते रहे।
उनके समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक बड़े महत्वपूर्ण देश की पहचान मिली। दुनिया का कोई भी हाई टेबल नहीं था जिसमें भारत न हो। अमेरिका, रूस जैसे शक्तिशाली देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ वाजपेयी जी को आदर के साथ बैठाया जाता था। मैंने कई प्रतिनिधिमंडलों में उनके साथ शिरकत की। दुनिया के सभी देश उन्हें सम्मान के साथ देखते थे। वे कम ही बोलते थे, लेकिन जब बोलते थे, उसे ध्यान से सुना जाता था। उनकी पहचान विकासशील देश के महान नेता के रूप में थी। उनकी एक विशेष इज्जत थी।
विकासशील देश बराबर वाजपेयी जी की तरफ देखते थे कि वे क्या बोलते हैं। फिर वही उनकी लाइन बन जाती थी। उनके साथ आनंद का अहसास होता था। एक बार एक दक्षिण-पूर्व एशियाई देश के दौरे पर गए थे। वहां उस देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्व में भारत से ऋण लिया था। लेकिन कतिपय कारणों से उसकी वापसी नहीं कर पा रहे हैं। क्या इसमें कुछ रियायत दे सकते हैं। मैं बगल में था। मैंने कान में कहा कि रकम बड़ी नहीं है, हम कर्ज माफ कर सकते हैं। वाजपेयी जी ने पूरा कर्ज माफ कर दिया। वे बहुत प्रसन्न हुए। छोटे देशों के प्रति उनका व्यवहार 'बिग ब्रदर' वाला नहीं, बल्कि बड़प्पन वाला था। सबसे बड़ी बात ये थी कि वो व्यक्तिगत रिश्तों को बड़ा महत्व देते थे। कई देशों के साथ उनके इसी प्रकार के रिश्ते थे, जिसका लाभ हमें बातचीत में मिलता था।
वर्ष 1998 में प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पोखरण परमाणु परीक्षण की तिथि तय हो गई तो उन्होंने हमें अपने निवास पर बुलाया। ड्राइंग रूम की जगह बेड रूम में ले गए। मुझे आशंकाओं में घेर लिया। उन्होंने धीरे से कहा कि हम लोग अमुक तारीख को परमाणु परीक्षण करने वाले हैं। बड़े देश इसे पसंद नहीं करेंगे। इसका असर आर्थिक क्षेत्र पर पड़ेगा। आप जो तैयारी कर सकते हैं, कर लें। वो इतनी बड़ी खबर थी। जल्दबाजी में मैं ये पूछना भी भूल गया कि मेरे अलावा और किन-किन लोगों को बताया है। चुपचाप चला आया। भीतर-भीतर सोचता रहा कि प्रतिबंधों से कैसे निपटेंगे। भरपाई कैसे होगी। कष्ट की बात ये थी कि किसी से बात भी नहीं कर सकता था।
जब नरसिंह राव जी ने परमाणु परीक्षण का प्रयास किया था तो अमेरिका को पता लग गया था। दबाव डालकर परीक्षण रुकवा दिया था। इसलिए वाजपेयी सरकार के सामने गोपनीयता की चुनौती थी। लेकिन हम सफल हुए। 11 और 13 मई को परीक्षण कामयाब हुए। उसके बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी ने फिर बुलाया। मेरे साथ आडवाणी, जार्ज फर्नाडिस, जसवंत सिंह, ब्रजेश मिश्रा और कैबिनेट सचिवालय के एक सदस्य थे। हमें सूचना दी गई कि परीक्षण सफल हो गया है। इसी के साथ दो बातें तय हुई कि इस बात की सूचना अटल जी स्वयं देंगे। एक छोटा सा वक्तव्य पढ़ेंगे, लेकिन कोई प्रश्न नहीं लेंगे। उसी समय वाजपेयी जी ने एक छोटा सा पत्र अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को लिखा, जिसमें बताया कि आखिर परीक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी। लेकिन अमेरिका ने वो पत्र लीक कर दिया। दरअसल, पत्र में लिखा था कि परीक्षण का कारण पाकिस्तान नहीं वरन चीन है। क्योंकि चीन हाइड्रोजन बम संपन्न है। उसके बाद प्रतिबंध लगे। लेकिन हमने उनका मुकाबला किया।
जब कारगिल युद्ध थोपा गया तब भी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा था। लेकिन उसका भी बखूबी मुकाबला किया। अटल जी के कारण सिर ऊंचा रहता था। युद्ध के दौरान क्लिंटन ने वाजपेयी और नवाज शरीफ दोनों को आमंत्रित किया था। शरीफ गए, मगर वाजपेयी जी नहीं गए। कह दिया कि जब तक अंतिम घुसपैठिये को खदेड़ नहीं दिया जाता तब तक कहीं नहीं जाएंगे। बाद में स्वयं क्लिंटन चलकर आए भारत। इसी के साथ अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव दूर हुआ।
अटल जी का कार्यकाल ऐतिहासिक था। उनके समय में पहली बार अनेकानेक परियोजनाओं पर बहुत बड़े पैमाने पर कार्य हुआ। अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। वर्ष 2004 में जब वर्ल्ड इकोनामिक फोरम में भाग लेने अनेक वैश्विक नेता आए तो कहने लगे कि जैसा पहले बीजिंग और शंघाई जाने पर लगता था, वैसा अब दिल्ली आकर महसूस होने लगा है।