Coronavirus: कोरोना के चलते दिल्ली से कश्मीर तक मस्जिदों में नहीं हुई जुमे की नमाज
घाटी में बीते सौ साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब नमाजी नमाज-ए-जुमा के लिए मस्जिदों में नहीं पहुंचे।
जेएनएन, नई दिल्ली। कोरोना के चलते दिल्ली से लेकर कश्मीर तक किसी भी मस्जिद में जुमे की नमाज नहीं हुई। दिल्ली की जामा मस्जिद, फतेहपुरी और कश्मीरी गेट की शिया जामा मस्जिद समेत पुरानी दिल्ली के अन्य ऐतिहासिक व अन्य मस्जिदों में शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा नहीं की गई।
दिल्ली में आपातकाल के बाद दूसरा मौका जब लोगों ने घरों में पढ़ी नमाज
वर्ष 1975 में लगे आपातकाल के बाद यह दूसरा मौका था जब लोगों ने शुक्रवार को मस्जिदों की जगह अपने घरों में जुमे की जगह जुहर की नमाज पढ़ी। बता दें कि जुमे की नमाज तो मस्जिद में ही पढ़ी जा सकती है, जबकि जुहर की नमाज घर में पढ़ी जा सकती है।
शाही इमामों ने अकेले पढ़ी नमाज
शाही जामा मस्जिद और फतेहपुरी मस्जिद में सिर्फ शाही इमामों ने मुअज्जिन और खादिम के साथ नमाज पढ़ी। आम व्यक्तियों से मस्जिदों को दूर रखा गया। एहतियात के तौर पर प्रमुख मस्जिदों के बाहर पुलिस के साथ ही अर्द्धसैनिक बल के जवान तैनात रहे।
नियमों का सख्ती से पालन करें लोग
फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने बताया कि जुहर की नमाज का शबाब भी जुमे की नमाज के बराबर मिलता है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि यह वायरस एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है, ऐसे में लोग घरों में रहकर ही खुदा से पूरे विश्व में अमन व सलामती की दुआ करें। उन्होंने कहा कि खुदा सबकुछ देख रहे हैं, जिन लोगों ने घरों में नमाज पढ़ी है उन्हें भी जुमे की नमाज के जितना शबाब मिलेगा। जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग कोरोना को लेकर जो दिशा निर्देश दे रही है उसका लोग सख्ती से पालन करें।
सदी में पहली बार जुमे की नमाज के लिए मस्जिद नहीं पहुंचे लोग
कश्मीर घाटी में शुक्रवार को मस्जिदों में नमाज-ए-जुमा की अजान हुई, लेकिन सामूहिक नमाज नहीं। घाटी में बीते सौ साल के इतिहास में यह पहला मौका है, जब नमाजी नमाज-ए-जुमा के लिए मस्जिदों में नहीं पहुंचे। जमीयत-ए-अहल-ए-हदीस और शिया समुदाय से संबंधित मस्जिदों में बीते शुक्रवार को भी नमाज-ए-जुमा नहीं हुई थी। ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में नमाज हुई थी, लेकिन इमाम और चंद नमाजी ही आए थे।
कश्मीर बंद भी हुआ तो भी होती रही नमाज
कश्मीर के वयोवृद्ध साहित्यकार व लेखक हसरत गड्डा ने कहा कि मेरी जानकारी में बीते डेढ़ सौ साल में यह पहला मौका है जब कश्मीर में किसी भी जगह लोग नमाज-ए-जुमा के लिए मस्जिद में नहीं पहुंचे। बीते तीन दशक में कभी कश्मीर बंद रहा तो कुछ मस्जिदों में ही नमाज नहीं हो पाती थी, अन्य सभी मस्जिदों में नमाज होती थी।
सिर्फ मुअज्जिन देगा अजान
कश्मीर के मुफ्ती-ए-आजम मुफ्ती नासिर उल इस्लाम ने कहा कि हमने फतवा जारी किया है कि लोग मस्जिदों में जमा न हों। सिर्फ मुअज्जिन आए जो अजान देगा। दो से तीन स्थानीय युवक ही जरूरी नमाज के लिए मौजूद रहें।