कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में फिर बढ़ रहा दिग्विजय सिंह का कद
एआइसीसी ने केंद्र की मोदी सरकार की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाई है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को शामिल किया है।
रवींद्र कैलासिया, भोपाल। वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की एआइसीसी में पूछ-परख बढ़ गई है। वर्ष 2018 के बाद दिग्विजय सिंह को कांग्रेस हाईकमान ने जिस तरह नजरअंदाज करना शुरू किया था और कमल नाथ व ज्योतिरात्यि सिंधिया को मप्र विस चुनाव में तवज्जो दी थी, उससे उनका राजनीतिक कद कम होने की चर्चा जोरों पर थी। मगर अब उनके लिए राजनीति में अच्छे संकेत दिखाई दिए हैं। राज्यसभा में भेजे जाने के बाद हाईकमान ने दिग्विजय सिंह को मोदी सरकार द्वारा अध्यादेशों से कानून बनाने की कार्रवाई की निगरानी के लिए बनी पांच सदस्यीय समिति में भी शामिल कर लिया है। इसे उनके कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में कद बढ़ने से जोड़कर देखा जा रहा है।
मोदी सरकार की निगरानी के लिए बनाई कमेटी
एआइसीसी ने केंद्र की मोदी सरकार की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाई है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को शामिल किया है। कांग्रेस की यह समिति मोदी सरकार द्वारा अध्यादेशों के माध्यम से कानून बनाने की समीक्षा करेगी। समिति में दिग्विजय सिंह के अलावा वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश, पी. चिदंबरम, डॉ. अमर सिंह व गौरव गोगोई भी हैं। उल्लेखनीय है कि दिग्विजय सिंह अभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की भविष्य की चुनौतियों को देखने वाली एकमात्र समिति में हैं। जबकि 2018 के पहले वे अभा कांग्रेस कमेटी के सबसे ताकतवर महासचिवों में गिने जाते थे।
मप्र मूल के नेताओं का रहा दबदबा
दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति में मध्य प्रदेश मूल के नेताओं का 2000 के पहले के दशकों में खासा दबदबा था, लेकिन इसके बाद मध्य प्रदेश के विभाजन व दिग्विजय सरकार के जाने से यह धीरे-धीरे कम होता गया। दिल्ली में मध्य प्रदेश के नेताओं में कमल नाथ व दिग्विजय सिंह ने और माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अच्छी पकड़ बनाई थी। 15 साल तक कांग्रेस की सत्ता वापसी नहीं होने से 2018 विधानसभा चुनाव के आते-आते कांग्रेस की राजनीति में प्रदेश के नेताओं का दिल्ली में प्रभाव कम हो गया। दिग्विजय सिंह काफी कमजोर किए गए और उनसे एक-एक कर राज्यों का प्रभार वापस लिया व बाद में महासचिव पद से भी हटा दिया गया। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया मजबूत हो गए और दिल्ली में दिग्विजय सिंह का स्थान उन्हें दे दिया गया। वे सत्ता वापसी के लिए न केवल विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष, बल्कि उत्तरप्रदेश के महासचिव भी बना दिए गए।
सिंधिया के गांधी परिवार से संबंधों के कारण दिग्विजय को नुकसान
सिंधिया के गांधी परिवार के साथ अच्छे संबंधों का खामियाजा दिग्विजय सिंह की राजनीति पर पड़ा और वे दिल्ली से दूर होते गए। जबकि मप्र में दिग्विजय सिंह-कमल नाथ ने जोड़ी बनाकर उन्हें एक प्रकार से नजरअंदाज ही कर दिया। इससे सिंधिया के दिल्ली में अच्छे संबंधों के बाद भी प्रदेश में उनकी उपेक्षा से प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में उफान आया और कांग्रेस वापस विपक्ष में बैठ गई। कांग्रेस को सिंधिया के जाने से भले ही नुकसान हुआ है, लेकिन दिग्विजय सिंह को राजनीतिक लाभ हो गया।
मध्य प्रदेश के गौरव की बात
मध् प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन प्रभारी उपाध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर ने कहा कि दिग्विजय सिंह राज्यसभा सदस्य हैं। 10 साल मुख्यमंत्री रहे हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष कमेटी में लिया जाना मध्य प्रदेश के लिए गौरव की बात है। उनके अनुभव का कांग्रेस को लाभ मिलेगा।