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दिल्ली में मौजूद ‘रूसी’ गलियों की कहानी से कितने परिचित हैं आप, जरा आप करें गौर

बाराखंभा में टाल्सटॉय मार्ग सरकार ने अलेक्जेंडर कदाकिन की स्मृति को जीवंत रखने के लिए दिल्ली के अहम क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सड़क का फिर से नामकरण किया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 02:51 PM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 02:52 PM (IST)
दिल्ली में मौजूद ‘रूसी’ गलियों की कहानी से कितने परिचित हैं आप, जरा आप करें गौर
दिल्ली में मौजूद ‘रूसी’ गलियों की कहानी से कितने परिचित हैं आप, जरा आप करें गौर

विवेक शुक्ला। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने सरकारी दौरे के दौरान अगर दिल्ली को देखते तो उन्हें यहां रूसी सुगंध अवश्य मिलती। यहां की कुछेक सड़कों के नाम रूस की महान हस्तियों के नाम पर हैं। इतना ही नहीं, यहां रूस के एक महान कवि और महानायक की आदमकद मूर्ति भी लगी हुई है। राजधानी के चाणक्यपुरी में रूस के पूर्व राजदूत अलेक्जेंडर कदाकिन के नाम पर सड़क है। उन्हें भारत का सच्चा मित्र माना जाता था। 2017 में उनका निधन हो गया। कदाकिन धारा प्रवाह हिंदी बोलते थे। वह 2009 से भारत में रूस के राजदूत के तौर पर कार्यरत थे। 1972 में भारत के रूसी दूतावास में उन्होंने बतौर ‘थर्ड सेक्रेटरी’ अपने राजनयिक करियर की शुरुआत की थी। जिस सड़क का नाम अलेक्जेंडर एम कदाकिन रोड रखा गया है, वह पहले ऑफिसर्स मेस रोड के नाम से जाती थी। यह सड़क चाणक्यपुरी में आर्मी बैटल ऑनर्स मेस के निकट स्थित है, जो सरदार पटेल मार्ग को सैन मार्टिन मार्ग से जोड़ती है।

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बाराखंभा में टाल्सटॉय मार्ग सरकार ने अलेक्जेंडर कदाकिन की स्मृति को जीवंत रखने के लिए दिल्ली के अहम क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सड़क का फिर से नामकरण किया था। कदानिन का जन्म रूस में हुआ था, लेकिन भारत उनकी कर्मभूमि थी। अपने दौरे के दौरान पुतिन अगर कनॉट प्लेस आते तो यहां उन्हें टाल्सटॉय मार्ग मिलता। लियो टाल्सस्टॉय महान रूसी लेखक थे, उनकी रचनाओं का गांधी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा था। दोनों के बीच पत्र-व्यवहार भी होता था।

टाल्सटॉय मार्ग, बाराखंभा रोड से शुरू होकर संसद मार्ग तक जाता है। जहां से संसद मार्ग की सीमा आरंभ होती है, वहीं पर यह सड़क समाप्त हो जाती है। यह एक किलोमीटर से भी कुछ छोटी सड़क है। टाल्सटॉय रोड का नाम पहले सर हेग किलिंग रोड था। जब नई दिल्ली का निर्माण हो रहा था तब किलिंग यहां के चीफ इंजीनियर थे। वह एडविन लुटियन के साथी थे। खैर, 1968 के आसपास इस सड़क का नाम हो गया  ‘वार एंड पीस’। जब इस सड़क को नया नाम मिला तब भारत और सोवियत संघ (अब रूस) के संबंध लगातार प्रगाढ़ होते जा रहे थे। उस दौर में इस सड़क के दोनों तरफ पुराने बंगले हुआ करते थे। आज भी अगर आप बाराखंभा रोड की तरफ से इस रोड पर आएंगे तो आपको सड़क के दोनों तरफ गुजरे दौर में बने बंगले देखने को मिल जाएंगे।

पुश्किन की आदमकद मूर्ति

रूसी राष्ट्रपति या उनकी टीम का कोई सदस्य अगर टाल्सटॉय मार्ग से लगभग सटे हुए फिरोजशाह रोड पर गया होगा तो उसे अलेक्सांद्र पुश्किन की आदमकद मूर्ति अवश्य दिखी होगी। यह मूर्ति राजधानी की कला-संस्कृति का गढ़ मंडी हाउस में स्थापित है। इसके ठीक पीछे रविन्द्र भवन है। अलेक्सांद्र पुश्किन को रूसी भाषा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। उन्हें आधुनिक रूसी कविता का संस्थापक भी माना जाता है। राजधानी के नेहरू पार्क में व्लादिमीर लेनिन की आदमकद मूर्ति भी लगी है। रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति 1987 से यहां लगी हुई है।

(लेखक व इतिहासकार हैं)


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