भाजपा के लिए गहन मंथन का विषय है दिल्ली चुनाव, राज्यों में प्रभावशाली नेतृत्व की कमी
भाजपा के लिए यह वक्त है जागने का वरना सभी राज्यों में मौजूदगी के स्वर्णिम काल का सपना अंतहीन हो जाएगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तीन चार महीनों में दो राज्यों में सत्ता जाना और दो में निराशाजनक प्रदर्शन. क्या यह काफी नहीं है भाजपा को यह अहसास दिलाने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ बहुत गलत है। अगर पार्टी को इसका पता ही नहीं तो चिंता की बात है और अगर पता होते हुए भी उसे छिपाने की कोशिश हो रही है तो बड़ी चिंता की बात है। दिल्ली के चुनाव नतीजों से भाजपा को सतर्क होना पड़ेगा वरना आगे समस्या गंभीर हो सकती है।
जी तोड़ मशक्कत के बावजूद भाजपा दो अंकों तक नहीं पहुंच पाई
2019 की लोकसभा जीत की गूंज में भाजपा शायद भूलने लगी थी कि उससे कुछ ही महीने पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता फिसली थी। लोकसभा के बाद महाराष्ट्र और झारखंड हाथ से निकल गया। हरियाणा जाते-जाते बचा और दिल्ली में जी तोड़ मशक्कत के बावजूद प्रदर्शन टांय-टांय फिस्स ही रहा। केंद्रीय स्तर के दिग्गज नेताओं, सैंकड़ों भाजपा सांसदों के घर-घर अभियान, राष्ट्रीय सुरक्षा और शाहीन बाग के मुद्दे के बावजूद भाजपा दिल्ली विधानसभा में दो अंकों तक नहीं पहुंच पाई।
इस बार जनता ने फैसला भाजपा को आजमाने के बाद दिया
यह प्रदर्शन भाजपा के लिए गहन मंथन का विषय है क्योंकि 2015 के नतीजों को भाजपा यह कहकर मन बहलाती रही थी कि जनता ने उसे एक प्रयोग के तौर पर लिया था। आंदोलन के बाद जन्मी पार्टी को मौका दिया था, लेकिन इस बार जनता ने जो फैसला दिया वह तो आजमाने के बाद दिया है।
जनता ने भाजपा के वादों पर नहीं किया भरोसा
भाजपा का यह भी दावा रहा है कि सुशासन केवल भाजपा-शासित राज्यों में है। वहीं दूसरी ओर जहां झुग्गी वहीं मकान, अनधिकृत मकानों को अधिकृत करने का बड़ा दाव फेल हो गया। लोगों ने उस वादे पर भरोसा नहीं किया। क्यों यह भाजपा को आंकना होगा।
भाजपा पा रही राज्यों में लोगों में भरोसा नहीं जगा पा रही
एक बात धीरे-धीरे साबित होती जा रही है कि भाजपा राज्यों में सबल और वैकल्पिक नेतृत्व पैदा नहीं कर पा रही है जो लोगों में भरोसा जगा सके। दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज जैसा चेहरा दो ढ़ाई दशक में भी नहीं तैयार हो पाया है।
जनता ने अब केंद्र और राज्य के चुनाव को अलग कर वोट देना सीख लिया
जनता ने अब केंद्र और राज्य के चुनाव को अलग कर वोट देना सीख लिया है। वरना कोई कारण नहीं था सभी सात सांसद भाजपा को देने वाली दिल्ली विधानसभा में इसे दसवें हिस्से तक रोक देती। इससे पहले हुए चुनावों में भी भाजपा को लोकसभा के मुकाबले काफी कम वोट मिले। जनता ने काम को भी वोट देना सीखा है और इसीलिए अगर लोकसभा में लोगों ने भाजपा पर भरोसा जताया तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर।
भाजपा के लिए वक्त है जागने का वरना सभी राज्यों में मौजूदगी का सपना अंतहीन हो जाएगा
यह भाजपा के लिए अच्छा है कि अब दूसरा चुनाव इस साल के अंत में बिहार में है जहां एक भरोसेमंद साथी भी है। इस बीच केंद्र सरकार को जहां अर्थव्यवस्था व रोजगार में अपना प्रभाव दिखाना होगा।
ऐन चुनाव के वक्त घोषणा पर जनता नहीं करती है भरोसा
भाजपा को यह भी याद रखना होगा कि चुनाव से ठीक पहले की गई घोषणा को जनता कोरे वादों के रूप में लेती है। अनधिकृत कालोनी के साथ भी यही हुआ। नतीजे बताते हैं कि भाजपा को इन कालोनियों में भी अपेक्षित वोट नहीं मिला। भाजपा के लिए यह वक्त है जागने का वरना सभी राज्यों में मौजूदगी के स्वर्णिम काल का सपना अंतहीन हो जाएगा।