Karnataka Crisis: सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बागी विधायकों को विश्वास मत में भाग लेने को नहीं किया जाए बाध्य
Political crisis in Karnataka सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों की याचिका पर कहा है कि उन्हें विश्वास मत में भाग लेने को मजबूर नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली, ब्यूरो/एजेंसी। Karnataka Political Crisis सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 15 बागी विधायकों के इस्तीफों पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने इस्तीफों पर निर्णय लेने का अधिकार स्पीकर केआर रमेश कुमार पर छोड़ दिया है। । सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष को कहा कि वह अपनी मर्जी के मुताबिक जो भी फैसला करना चाहते हैं, वह करें लेकिन वह पहले बागी विधायकों के इस्तीफों पर फैसला लें। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि वह स्पीकर पर फैसला लेने के लिए समय सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कर्नाटक के विधायकों को विश्वास मत में भाग लेने को मजबूर नहीं किया जा सकता है। फैसले के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री (Karnataka CM) कुमारस्वामी (HD Kumaraswamy) ने बेंगलुरु (Bengaluru) में कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक बुलाई है।
#KarnatakaPolicalCrisis सुप्रीमकोर्ट ने फ़ैसले मे कहा स्पीकर 15 बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़े पर जब चाहे निर्णय ले। स्पीकर को तय समय मे फैसले को नही कहा जा सकता। लेकिन साथ ही कोर्ट ने कहा बाग़ी विधायकों को सदन की कार्वाई मे भाग लेने को बाध्य न किया जाए।@JagranNews
— Mala Dixit (@mdixitjagran) July 17, 2019
स्पीकर अदालत में पेश करें अपना फैसला
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने उक्त फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि बागी विधायक सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने या नहीं लेने के लिए स्वतंत्र हैं। विधायकों को इसके लिए बाध्य न किया जाए। विधायकों के इस्तीफे पर विधानसभा अध्यक्ष नियमों के अनुसार फैसला करें। स्पीकर जब भी फैसला लें वह फैसला अदालत में पेश किया जाए। न्यायालय ने कहा कि कानूनी मसलों पर विस्तृत फैसला बाद में दिया जाएगा।
GVL Narasimha Rao, BJP on SC verdict in K'taka MLAs case: SC in its final judgement will have to create timelines for Speakers to decide a matter be it Assembly or Parliament. If required we'll look at need for amending the act so that Speakers can't go by their own whims&fancies pic.twitter.com/QJRXwXApEq — ANI (@ANI) July 17, 2019
भाजपा बोली, सुप्रीम कोर्ट को तय करनी होगी समय सीमा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा ने कहा है कि सर्वोच्च अदालत को स्पीकर के फैसले के लिए समय सीमा तय करनी होगी। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा (GVL Narasimha Rao) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपने अंतिम निर्णय में स्पीकर को फैसला लेने के लिए समय सीमा बतानी होगी। यदि जरूरत हुई तो हम कानून में संशोधन की जरूरत पर विचार करेंगे ताकि विधानसभा अध्यक्ष ऐसे मामलों में अपने मनमानी न कर सकें। कर्नाटक के बागी विधायकों ने मुंबई में कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। हम सब एकजुट और अपने फैसले पर कायम हैं। विधानसभा जाने का सवाल ही नहीं है।
Mukul Rohatgi: The three-line whip issued against them (rebel MLAs) to attend the House tomorrow is not operative in view of the SC judgement. Secondly, the Speaker has been given time to decide on the resignations as and when he wants to decide. https://t.co/VPvyWDgxzM" rel="nofollow — ANI (@ANI) July 17, 2019
विधायकों के खिलाफ जारी व्हिप अब नहीं होगा प्रभावी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बागी विधायकों की ओर से पेश हुए वकील मुकल रोहतगी ने कहा कि कल यानी गुरुवार को प्रस्तावित विश्वास प्रस्ताव को देखते हुए अदालत ने महत्वपूर्ण बातें कही हैं। पहली यह कि 15 बागी विधायकों को विधानसभा में मौजूद होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। यानी बागी विधायकों कल होने वाले विश्वास मत में भाग ले या नहीं, इसके लिए वह आजाद हैं। इन फैसलों से साफ हो गया है कि विद्रोही विधायकों को सदन में मौजूद होने के खिलाफ जारी व्हिप अब प्रभावी नहीं होगा। दूसरी बात यह कि विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे पर निर्णय लेने के लिए समय दिया गया है।
BS Yeddyurappa, BJP: Karnataka CM has lost his mandate, when there is no majority he must resign tomorrow. I welcome SC's decision, it's the victory of constitution&democracy, a moral victory for rebel MLAs. It's only an interim order, SC will decide powers of Speaker in future. pic.twitter.com/LAPOFsHDK8 — ANI (@ANI) July 17, 2019
फ्लोर टेस्ट को लेकर सस्पेंस भी गहराया
चूंकि शीर्ष अदालत की ओर से बागी विधायकों पर फैसला लेने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। ऐसे में गुरुवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट को लेकर भी सस्पेंस गहरा गया है। इस बीच भाजपा ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का इस्तीफा मांग लिया है। भाजपा नेता बीएस येद्दयुरप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जनादेश खो दिया है। जब उनके पास कोई बहुमत नहीं है तो उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं, यह संविधान और लोकतंत्र की जीत है, बागी विधायकों के लिए एक नैतिक जीत है। यह केवल एक अंतरिम आदेश है, सर्वोच्च न्यायालय आने वाले दिनों में विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियां तय करेगा।
Karnataka Speaker KR Ramesh Kumar: I will take a decision that in no way will go contrary to the Constitution, the Court and the Lokpal. pic.twitter.com/p0QcgBJkPB — ANI (@ANI) July 17, 2019
लूंगा संविधान सम्मत फैसला
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने कहा कि मैं ऐसा फैसला लूंगा जो किसी भी तरह से संविधान, न्यायालय और लोकपाल के खिलाफ नहीं जाएगा। मैं अपनी सांविधानिक दायित्व को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाऊंगा। मैं सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का तहेदिल से स्वागत करता हूं। वहीं भाजपा नेता एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा ने कहा कि निश्चित रूप से गठबंधन की सरकार अब नहीं चलेगी क्योंकि उनके पास बहुमत ही नहीं है। दूसरी ओर भाजपा नेता जगदीश शेट्टार ने कहा कि एचडी कुमारस्वामी की वजह से राज्य में अराजकता है। इस फैसले के तुरंत बाद अब उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।
...तो गिर जाएगी सरकार
अभी तक के घटनाक्रम के मुताबिक, 15 विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस ने अपने विधायक रोशन बेग को निलंबित कर दिया है। हालांकि अभी तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है। यदि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से इनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं और बहुमत परीक्षण होता है तो सदन में कुल सदस्यों की संख्या 224 से घटकर 208 हो जाएगी। बहुमत साबित करने के लिए 105 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा। लेकिन मौजूदा गठबंधन सरकार के पास संख्याबल घटकर 101 रह जाएगा। ऐसे में सरकार के गिरने की आशंका है। चूंकि भाजपा के पास खुद के 105 विधायकों के साथ दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है, जिसका फायदा उसे मिल सकता है।
अयोग्यता से बचने के लिए इस्तीफा देना गलत नहीं
मुकुल रोहतगी ने मंगलवार को तर्क दिया कि स्पीकर इन विधायकों के इस्तीफे लंबित नहीं रख सकते और ऐसा करके वह पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रहे हैं। इस पर सिंघवी ने कहा, ‘स्पीकर से खास तरीके से फैसला करने के लिए कैसा कहा जा सकता है? ऐसे आदेश तो निचली अदालतों के लिए भी जारी नहीं किए जाते।’ वैध इस्तीफे स्पीकर के समक्ष पेश होकर दाखिल किए जाने चाहिए, जबकि विधायक उनके कार्यालय में इस्तीफे दाखिल करने के पांच दिन बाद 11 जुलाई को उनके समक्ष पेश हुए। रोहतगी ने कहा कि स्पीकर ने विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए ही इस्तीफों को लंबित रखा और अयोग्यता से बचने के लिए इस्तीफा देना गलत नहीं है।
अंतरिम आदेश बनाए रखने की मांग
मंगलवार को इस मामले में शीर्ष अदालत में सुनवाई पूरी हो गई थी। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष दलीलें पेश करते हुए बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी ने कल अदालत से अंतरिम आदेश बनाए रखने की मांग की जिसमें बागी विधायकों के इस्तीफों और अयोग्यता के मुद्दे पर स्पीकर को यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा गया था। साथ ही उन्होंने बागी विधायकों को विधानसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा जारी व्हिप से छूट प्रदान करने की मांग भी की।
यथास्थिति के पूर्व आदेश में हो संशोधन
स्पीकर की ओर से पेश अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मंगलवार को शीर्ष अदालत को बताया कि पिछले साल जब मध्यरात्रि में सुनवाई के दौरान शक्ति परीक्षण का आदेश दिया गया था और बीएस येद्दयुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था, तब अदालत ने कर्नाटक विधानसभा स्पीकर के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया था। उन्होंने कहा कि स्पीकर बागी विधायकों की अयोग्यता और इस्तीफों पर बुधवार तक फैसला ले लेंगे, लेकिन अदालत को यथास्थिति के पूर्व आदेश में संशोधन करना चाहिए।
सरकार के पक्ष में वोट करने के लिए बाध्य कर रहे स्पीकर
पीठ ने मुकुल रोहतगी से मंगलवार को पूछा कि क्या विधायकों की अयोग्यता पर फैसला करने के लिए स्पीकर संवैधानिक रूप से बाध्य हैं जिसकी प्रक्रिया इस्तीफों के बाद शुरू की गई है? इस पर रोहतगी ने कहा कि नियम तुरंत फैसला करने के लिए कहते हैं। स्पीकर इसे लंबित कैसे रख सकते हैं? उन्होंने अदालत से कहा कि राज्य सरकार अल्पमत में आ गई है और स्पीकर इस्तीफे स्वीकार नहीं करके बागी विधायकों को विश्वास मत पर सरकार के लिए वोट करने के लिए बाध्य करने की कोशिश कर रहे हैं।