जमीन मजबूत करने से ही होगी कांग्रेस की वापसी, असंतुष्ट नेताओं ने संगठन की खामियों पर रखी अपनी बात
कांग्रेस के अंदरूनी संकट का समाधान निकालने के लिए सोनिया गांधी के साथ बीते शनिवार को हुई पहली बैठक में पार्टी को उसके सबसे खराब दौर से बाहर लाने के मुद्दे पर असंतुष्ट नेताओं ने खुलकर अपनी बात रखी थी। जाने इन नेताओं ने बैठक में क्या कहा...
संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस के अंदरूनी संकट का समाधान निकालने के लिए सोनिया गांधी के साथ बीते शनिवार को हुई पहली बैठक में पार्टी को उसके सबसे खराब दौर से बाहर लाने के मुद्दे पर असंतुष्ट नेताओं ने खुलकर अपनी बात रखी। असंतुष्ट जी-23 समूह के नेताओं का साफ कहना था कि जमीनी राजनीति के बदले हालात को देखते हुए अब करिश्मे के सहारे पार्टी की वापसी की उम्मीद करना बेमानी है। असंतुष्ट नेताओं का कहना था कि चुनौतियों से पार पाने के लिए निरंतर क्रियाशील बने रहने की जरूरत है।
लगातार काम करने की जरूरत
असंतुष्ट नेताओं ने पांच घंटे तक दस जनपथ के लॉन में कांग्रेस के भविष्य के रोडमैप को लेकर हुई इस बातचीत में नेतृत्व से साफ कहा कि संगठन के ढांचे को नीचे से ऊपर तक मजबूत और निरंतर क्रियाशील बनाने के अलावा राजनीतिक वापसी का कोई आसान रास्ता नहीं है।
निष्क्रिय हो चुकी हैं कांग्रेस कमेटियां
इसी संदर्भ में राज्यों में कांग्रेस संगठन के बेहद कमजोर होने की बात उठाते हुए कहा गया कि कई प्रदेश संगठन तो सालों से अस्थायी रूप से ही चलाए जा रहे हैं। इसीलिए अधिकांश जिला और ब्लॉक कांग्रेस कमेटियां लगभग निष्क्रिय हो चुकी हैं। इसी संदर्भ में चिदंबरम ने नीचे तक की इकाइयों का चुनाव के जरिये तत्काल गठन करने की बात कही ताकि कांग्रेस का संगठन और राजनीतिक कार्यक्रम लोगों के बीच पहुंच सके।
किसी करिश्मे से नहीं बदलेंगे हालात
सूत्रों के अनुसार गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने इन संगठनात्मक चुनौतियों के साथ युवा पीढ़ी के कांग्रेस से नहीं जुड़ पाने को गंभीर चिंता की बात बताते हुए इस पर गहन मंथन की जरूरत बताई। उनका कहना था कि देश की बड़ी आबादी और मतदाता युवा हैं और ऐसे में युवाओं को जोड़ने के लिए उनको अपील करने वाले राजनीतिक कार्यक्रम और विचार कांग्रेस को देने ही होंगे। पार्टी के मौजूदा हालात किसी करिश्मे से नहीं बदलेंगे।
युवाओं को जोड़कर ही पार होगी नैया
वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि कांग्रेस अपने संगठन की मजबूती और बदलाव के वाहक युवाओं को जोड़कर ही भाजपा को चुनौती दे सकती है। इस लंबी मंत्रणा में पार्टी की विचाराधारा की अहमियत को लेकर भी चर्चा हुई। विशेष तौर पर राज्यों में भाजपा के राजनीतिक विस्तार को थामने की कांग्रेस की बड़ी हुई चुनौती का उल्लेख किया गया।
तय करनी होगी रिश्तों की दिशा
सूत्र के मुताबिक असंतुष्ट गुट के नेताओं का कहना था कि राजनीतिक वास्तविकता का आकलन कर कांग्रेस को समान विचार वाली क्षेत्रीय पार्टियों के साथ अपने रिश्तों की दशा-दिशा भी तय करनी होगी और इस मोर्चे पर भी गंभीरता से काम करना होगा। राजनीति, शासन और अर्थव्यवस्था के अहम मसलों पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक राजनीतिक संवाद का संतुलन बनाना कांग्रेस की जिम्मेदारी है। ऐसे में सोशल मीडिया पर केवल दो लाइन के बयानों के जरिये मौजूदा असंतुलन की खाई नहीं पाटी जा सकती। समझा जा सकता है कि इन नेताओं का परोक्ष निशाना संभवत: राहुल गांधी पर था।