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CAA-NRC की राह रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों पर 'दबाव' बढ़ाएगी कांग्रेस, जानें इस बारे में

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध को देखते हुए कांग्रेस ने भाजपा-एनडीए से मित्रता रखने वाले क्षेत्रीय दलों को इस मुद्दे पर दबाव में लाने की रणनीति बनाई है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 22 Dec 2019 05:57 PM (IST)Updated: Sun, 22 Dec 2019 05:57 PM (IST)
CAA-NRC की राह रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों पर 'दबाव' बढ़ाएगी कांग्रेस, जानें इस बारे में
CAA-NRC की राह रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों पर 'दबाव' बढ़ाएगी कांग्रेस, जानें इस बारे में

नई दिल्ली, संजय मिश्र। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध को देखते हुए कांग्रेस ने भाजपा-एनडीए से मित्रता रखने वाले क्षेत्रीय दलों को इस मुद्दे पर दबाव में लाने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत पार्टी ओडिशा में बीजद, तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव और आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के साथ बिहार में नीतीश कुमार की सीएए और एनआरसी पर घेरेबंदी का प्रयास करेगी। सीएए और एनआरसी को लेकर मोदी सरकार को बैकफुट पर धकेलने के लिए कांग्रेस इन क्षेत्रीय दलों के सियासी रुख में बदलाव को जरूरी मान रही है। सीएए के खिलाफ सोमवार को राजघाट पर होने वाले कांग्रेस के पहले बड़े विरोध प्रदर्शन के साथ ही पार्टी इन सूबों में भी अपने इस अभियान की शुरूआत करेगी।

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राजघाट पर होगा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन

नागरिकता संशोधन कानून को विभाजनकारी बता रही कांग्रेस के राजघाट पर होने वाले शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अगुआई खुद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी करेंगी। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता और कार्यकता इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे। इसके बाद कांग्रेस की राज्य इकाइयां सीएए के साथ संभावित एनआरसी की भाजपा सरकार की मंशा को लेकर विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू करेंगी। पार्टी की राज्य इकाईयों को इस बारे में संगठन महासचिव की ओर से जरूरी दिशा-निर्देश भी भेजा जा रहा है।

नवीन पटनायक ने किया एनआरसी लागू नहीं करने का फैसला 

नागरिकता संशोधन कानून पर पार्टी की राजनीतिक दशा-दिशा का संचालन कर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ सूत्रों ने कहा कि सीएए के खिलाफ विरोध और आक्रोश के बढ़ते माहौल की वजह से ही ओडिशा के मुख्यमंत्री बीजद प्रमुख नवीन पटनायक ने एनआरसी लागू नहीं करने की पहली बार बात कही है। जबकि बीजद ने सीएए के पक्ष में संसद में भाजपा के साथ मतदान किया था। पार्टी रणनीतिकारों के अनुसार सीएए को वापस लेने और एनआरसी पर मोदी सरकार के कदम रोकने के लिए बीजद का रुख बेहद अहम है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह जरूरी हो जाता है कि सूबे मे बीजद पर सियासी दबाव बढ़ाने के लिए सीएए-एनआरसी का विरोध पूरी ताकत से किया जाए।

जगन मोहन और चंद्रबाबू पर भी बनाया दबाव

आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और उनकी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस ही नहीं टीडीपी ने भी सीएए में भाजपा सरकार के पक्ष में वोटिंग की थी। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि इस सूबे में सीएए विरोधी आंदोलन को मजबूती से खड़ा कर वह जगन और चंद्रबाबू दोनों को कम से कम एनआरसी पर भाजपा के साथ नहीं जाने का दबाव बना सकती है। हालांकि, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती यह है कि सूबे के बंटवारे के बाद पार्टी का आधार ही नहीं संगठन भी बेहद लचर हालत में पहुंच गया है और पार्टी रणनीतिकारों की यह रणनीति यहां कारगर होगी इस पर संदेह हैं।

कांग्रेस कर रही विपक्षी दलों की गोलबंदी

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस ने भले संसद में सीएए के खिलाफ वोटिंग की मगर यह भी सच्चाई रही है कि बीते साढ़े पांच सालों में टीआरएस ने इसके अलावा उन सभी मुद्दों पर मोदी सरकार का साथ दिया है, जिस पर विपक्षी दल गोलबंद थे। हैदराबाद में सीएए के खिलाफ हो रहे बड़े विरोध प्रदर्शनों ने भी कांग्रेस को बीते पांच साल के दौरान टीआरएस और भाजपा की दोस्ती को उजागर करने को प्रोत्साहित किया है।

सीएए के बाद कांग्रेस एनआरसी को मोदी सरकार का अगला कदम मान रही है और ऐसे में बीजद, टीआरएस और वाइएसआर कांग्रेस जैसे दल इसके खिलाफ हो गए तो फिर संसद में इसे पारित करना मुश्किल हो जाएगा। बिहार में भी कांग्रेस और राजद अपने अपने सियासी विरोध प्रदर्शनों के जरिये नीतीश कुमार पर दबाव बना रहे हैं। सीएए को लेकर बढ़ रहे दबाव की यह वजह ही रही कि नीतीश ने पहले ही एनआरसी को 'ना' कह दिया है।


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