मॉब लिंचिंग पर मोहन भागवत के बयान को कांग्रेस ने बताया असंवेदनशील
जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ही देश में हो रही मॉब लिंचिंग पर संज्ञान लिया था और सरकार को आठ-दस निर्देश दिए थे। इनमें से एक भी लागू नहीं किया गया।
नई दिल्ली, एजेंसियां। मॉब लिंचिंग (आक्रोशित भीड़ की हिंसा) पर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान को कांग्रेस ने असंवेदनशील करार दिया है।
भागवत से मांगा स्पष्टीकरण
राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि मुद्दा यूरोप या भारत, अंग्रेजी या हिंदी का नहीं है। आक्रोशित भीड़ द्वारा निर्दोष, निसहाय लोगों की हत्या मानवता के लिए अस्वीकार्य है। भाषा का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने भागवत से स्पष्ट करने की मांग की कि वह ऐसी हिंसा का समर्थन करते हैं अथवा निंदा करते हैं।
मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश लागू नहीं
माकपा नेता बृंदा करात ने कहा, 'अगर आरएसएस प्रमुख सच्चे हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने सबसे ज्यादा छवि धूमिल की है क्योंकि जुलाई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ही देश में हो रही मॉब लिंचिंग पर संज्ञान लिया था और सरकार को आठ-दस निर्देश दिए थे। इनमें से एक भी लागू नहीं किया गया।'
एआइएमआइएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, 'हमारे यहां गोडसे को चाहने वाले सांसद हैं। गांधी या तबरेज को मारने वाली विचारधारा से बड़ी भारत की छवि धूमिल करने वाली चीज नहीं हो सकती। भागवत लिंचिंग रोकने के लिए नहीं कह रहे, वह कह रहे हैं इसे वैसा मत कहो।'
लिंचिंग भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं- मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि आजकल बहुप्रचलित लिंचिंग शब्द भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। भारत और हिंदू समाज को बदनाम करने के लिए इस शब्द का उपयोग किया जा रहा है। वह मंगलवार को नागपुर के रेशमबाद मैदान नें संघ की परंपरागत दशहरा रैली को संबोधित कर रहे थे।
सरसंघचालक ने कहा कि देश में कहीं भी किसी एक समुदाय के कुछ लोगों द्वारा दूसरे समुदाय के किसी व्यक्ति पर हमला करने की घटना सामने आती है, तो उसके लिए एक पूरे समुदाय को दोषी ठहराया जाने लगता है। ऐसी घटनाएं दोनों तरफ से हो रही हैं, लेकिन यह भारत की मूल प्रवृत्ति कभी नहीं रही।
लिंचिंग जैसे शब्द का इस्तेमाल हिंदुओं को बदनाम करने के लिए किया जा रहा
इस संबंध में प्राचीन पश्चिमी सभ्यता की एक कहानी का उल्लेख करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि एक बार ईसा मसीह ने देखा कि कुछ लोग किसी महिला को पापी बताकर पत्थरों से मार रहे हैं। तो उन्होंने हमलावरों को रोकते हुए कहा कि जिसने कभी कोई पाप न किया हो, वह पहला पत्थर उठाए। उनके ऐसा कहने पर सभी पत्थर मारने वालों के हाथ रुक गए। जबकि भारत में एक बार दो गांवों में पानी के लिए झगड़ा हुआ तो तथागत गौतम बुद्ध ने समझाकर दोनों पक्षों को शांत कर दिया। इसलिए लिंचिंग जैसे शब्द भारत की परंपरा का हिस्सा कभी रहे ही नहीं। इसका इस्तेमाल सिर्फ भारत और हिंदुओं को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।
भागवत ने कहा कि ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों का भारत ने कभी समर्थन नहीं किया, और संघ हमेशा ऐसी घटनाओं के विरोध में खड़ा रहा है। समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में सद्भावना, संवाद और सहयोग बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
भागवत ने ठोकी मोदी सरकार की पीठ
मोहन भागवत ने दुबारा निर्वाचित मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने पर सरकार की पीठ ठोंकते हुए कहा कि 2014 में सरकार परिवर्तन जहां तत्कालीन सरकार के प्रति मोहभंग से उत्पन्न हुई एक नकारात्मक राजनीतिक लहर का परिणाम था, वहीं 2019 में नई सरकार को ज्यादा बहुमत से चुनकर लाना समाज में उसके पिछले कार्यों के प्रति सम्मति और उससे नई अपेक्षाओं का परिणाम है। इन अपेक्षाओं के प्रति सतर्क रहते हुए उन्हें साकार करने का ही परिणाम है संसद के दोनों सदनों में विरोधियों को भी साथ लेकर अनुच्छेद 370 को हटाया जाना। इसके लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और इस मुद्दे पर समर्थन करनेवाले सभी दल अभिनंदन के पात्र हैं।
सरकार की उपलब्धियों की सराहना
सरसंघचालक ने नई सरकार की उपलब्धियों की इसी कड़ी में चंद्रयान-2 का भी उल्लेख करते हुए कहा कि यह अभियान पूरी तरह भले ने सफल हो सका हो, लेकिन चंद्रमा के अनछुए प्रदेश उसके ‘दक्षिणी ध्रुव’ पर विक्रम की लैंडिंग ने विश्व की वैज्ञानिक बिरादरी का ध्यान अपनी ओर जरूर आकर्षित किया है। मोहन भागवत ने आज फिर दोहराया कि भारत हिंदुस्थान, अर्थात हिंदू राष्ट्र है। उनके अनुसार संघ की दृष्टि में हिंदू शब्द केवल अपने आप को हिंदू कहनेवालों के लिए नहीं है। जो भारत के हैं, जो भारतीय पूर्वजों के वंशज हैं, तथा सभी विविधताओं का स्वीकार, सम्मान व स्वागत करते हुए आपस में मिलजुल कर देश का वैभव तथा मानवता में शांति बढ़ाने का काम करते हैं, वे सभी हिंदू हैं।
आर्थिक मंदी के चक्र से हम जल्द ही बाहर निकलेंगे
सर संघचालक ने अपने भाषण में आर्थिक मंदी का भी उल्लेख करते हुए कहा कि विश्व के आर्थिक व्यवस्था चक्र में आई मंदी सब तरफ अपना कुछ न कुछ परिणाम दिखाती है। अमेरिका और चीन में चली आर्थिक स्पर्धा के परिणाम भी भारत को भुगतने पड़ते हैं। सरकार इससे निपटने के लिए उपाय भी कर रही है। जनता के हितों के प्रति शासन की संवेदन का परिचय इससे मिलता है। किए जा रहे प्रयासों के फलस्वरूप इस तथाकथित मंदी के चक्र से हम जल्दी ही बाहर आएंगे।
मोहन भागवत ने शिक्षा और संस्कार पर बल देते हुए अपनी शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता बताई। ताकि नई पीढ़ी में आत्मगौरव का संचार किया जा सके। इसके साथ ही उन्होंने संस्कारों के क्षरण और सामाजिक जीवन के मूल्यों में आ रही गिरावट को एक बड़ी समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि जिस देश में मातृत्व के सम्मान की परंपरा रही है। नारी के सम्मान के लिए रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्य का विषय बनने वाले भीषण संग्राम हुए। उस देश में आज महिलाओं के परिवार व समाज में सुरक्षित न रहने की घटनाएं घट रही हैं। यह लज्जा का अनुभव कराने वाली बात है।
हमें न सिर्फ अपनी मातृशक्ति को प्रबुद्ध, स्वावलंबी और अपनी रक्षा करने में सक्षम बनाना होगा, बल्कि मातृशक्ति को देखने की पुरुषदृष्टि में भी परिवर्तन करना होगा। इसका प्रशिक्षण हमें बाल्यावस्था से ही घर के वातावरण में देना होगा। इसके लिए नई पीढ़ी को नशीले पदार्थों के सेवन से बचाना भी जरूरी है।