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अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अपनी राजनीतिक उम्मीद भी देख रही कांग्रेस

कांग्रेस का मानना है कि मंदिर निर्माण के पक्ष में आए फैसले के बाद भावनाओं की सियासत का ज्वार थमेगा और ध्रुवीकरण की राजनीति की राह बंद होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 08:10 PM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 08:10 PM (IST)
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अपनी राजनीतिक उम्मीद भी देख रही कांग्रेस
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अपनी राजनीतिक उम्मीद भी देख रही कांग्रेस

संजय मिश्र, नई दिल्ली। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कांग्रेस राजनीतिक रुप से अपने लिए राहतकारी मान रही है। पार्टी का मानना है कि मंदिर निर्माण के पक्ष में आए फैसले के बाद भावनाओं की सियासत का ज्वार थमेगा और ध्रुवीकरण की राजनीति की राह बंद होगी। सर्वोच्च अदालत के फैसले के मद्देनजर कांग्रेस को इस बात की उम्मीद भी दिखने लगी है कि इससे देश में मध्यमार्गी राजनीति का दौर फिर से वापस लौटेगा।

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कांग्रेस ने की राम मंदिर निर्माण की खुलकर वकालत

बीते करीब तीन दशक से मंदिर और मंडल के ध्रुवीकरण में गुम हुई अपनी मध्यमार्गी सियासत की धारा के वापस लौटने की यह उम्मीद ही है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने इसका सम्मान करने का ऐलान करने में देर नहीं लगाई। इतना ही नहीं पार्टी ने राम मंदिर निर्माण की खुलकर वकालत करने से भी गुरेज नहीं किया। अयोध्या विवाद को लेकर कांग्रेस हमेशा निशाने पर रही है। पार्टी में यह माना जाता है कि कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति के लगे आरोपों के 'लेबल' की जड़ में यह विवाद ही था।

अयोध्या विवाद का हमेशा के लिए अंत

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस विवाद का हमेशा के लिए अंत करने के साथ ही कांग्रेस को भी ध्रुवीकरण के फंदे में फंसी अपनी राजनीति को बाहर निकालने का मौका दे दिया है। अयोध्या पर कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला का बयान कांग्रेस को इस फैसले से मिली सियासी राहत का साफ संकेत देता है। रणदीप ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राम मंदिर निर्माण के द्वार तो खोल ही दिए हैं। साथ ही सत्ता की खातिर भगवान श्रीराम के नाम का इस्तेमाल करने करने वाली पार्टियों के लिए आस्था से राजनीति करने के द्वार भी बंद कर दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कांग्रेस को मिला यूपी में बड़ा मौका

दरअसल, देश की राजनीति की धारा बदलने वाले दो सबसे बड़े सूबों में कांग्रेस के पराभव की असली वजह भी मंदिर और मंडल आंदोलन की भावनाओं की दोधारी तलवार रही। मंदिर आंदोलन ने भाजपा को राजनीतिक चरर्मोत्कर्ष दिया तो मंडल की सियासत ने मुलायम सिंह, लालू प्रसाद और मायावती सरीखे नेताओं को नई उंचाई। हालांकि बड़े क्षेत्रीय छत्रपों के तौर पर उभरे इन नेताओं की सियासत अब ढलान पर है। इनकी पार्टियां भी संक्रमण के दौर में है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो इस मसले पर उसका जितना नुकसान होना था वह हो चुका है और इन हालातों के मद्देनजर उसे अपनी राजनीतिक जगह हासिल करने का बड़ा मौका है।

देर-सबेर अयोध्या मामले पर प्रतिक्रिया आएंगी

कांग्रेस का यह भी आकलन है कि अयोध्या के सहारे भाजपा जो चाहती थी वह हासिल कर चुकी है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी भावनाओं की सियासत बंद नहीं हुई तो देर-सबेर लोगों में इसकी उलट प्रतिक्रिया भी होगी।

हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा मनचाहा परिणाम हासिल नहीं कर पायी

हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों को इसका संकेतक बताते हुए पार्टी थिंक-टैंक के एक सदस्य ने कहा कि राम मंदिर, पाकिस्तान पर बालाकोट हमले, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने से लेकर तीन तलाक जैसे अपने सभी हथियारों का इस्तेमाल करने के बाद भी भाजपा मनचाहा परिणाम हासिल नहीं कर पायी।

भावनाओं की भी सीमा होती है

जो इसका संकेत है कि भावनाओं के ज्वार की भी अपनी उम्र होती है और राजनीति एक बार फिर जनता से जुड़े वास्तविक मुद्दों की ओर लौटेगी। कांग्रेस के लिहाज से सियासत के पहिये का इस ओर मुड़ना पार्टी को राजनीतिक पराभव के मौजूदा दौर से बाहर आने का मौका देगा।

कांग्रेस ने  नरम हिन्दुत्व की राजनीतिक लाइन पकड़ी

अयोध्या के फैसले में कांग्रेस खुद पर अल्पसंख्यकवाद के लगे लेबल को हटाने का अवसर भी देख रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही कांग्रेस को इस लेबल से हुए भारी राजनीतिक नुकसान का अहसास हो गया था। तभी से पार्टी ने नरम हिन्दुत्व की राजनीतिक लाइन पकड़ने की शुरूआत कर दी थी। राहुल गांधी को जनेऊधारी ब्राह्मण, शिवभक्त बताने से लेकर कई सूबों और लोकसभा चुनाव से पहले उनके कैलास मानसरोवर समेत तमाम मंदिरों में जाना इसी धारणा को तोड़ने की कोशिश थी।

कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समीक्षा के पक्ष में नहीं

हालांकि यह अलग बात रही कि कांग्रेस को आम चुनाव में इससे बहुत फायदा नहीं मिला। इसीलिए अयोध्या का फैसला आते ही मंदिर परिसर के लिए दी गई 67.3 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का श्रेय केन्द्र की कांग्रेस सरकार को देने से रणदीप सुरजेवाला ने परहेज नहीं किया। साथ ही सभी पक्षों से फैसले को कबूल करने की बात कह यह भी संदेश दे दिया कि कांग्रेस राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार या समीक्षा के पक्ष में नहीं है।


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