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जानें चायवाले से दिग्‍गज नेता बने इस कांग्रेसी का कैसे थमा सियासी सफर

ऐसा कहा जाता है कि सज्‍जन कुमार की दिल्ली में एक चाय की दुकान हुआ करती थी, वहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 01:51 PM (IST)Updated: Tue, 18 Dec 2018 07:53 AM (IST)
जानें चायवाले से दिग्‍गज नेता बने इस कांग्रेसी का कैसे थमा सियासी सफर
जानें चायवाले से दिग्‍गज नेता बने इस कांग्रेसी का कैसे थमा सियासी सफर

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। 1984 के सिख दंगों की चर्चा चलते ही कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता सज्‍जन कुमार का नाम जुबान पर आ जाता है। आज द‍िल्‍ली हाई कोर्ट ने सज्‍जन कुमार को सिख दंगों के लिए दोषी करार दिया। हालांकि, सज्जन कुमार को 2013 में निचली अदालत ने छोड़ दिया था। उन पर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ भड़के दंगों को उकसाने और दंगाइयों को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप था। सीबीआई ने सज्जन कुमार और चार अन्य लोगों पर सिख विरोधी दंगों में छह लोगों की हत्या करने का आरोप लगाया था। लेकिन क्‍या आप जानते हैं ये सज्‍जन कुमार कौन है। इनके तीन दशकों का सियासी सफर कैसा रहा। उनके नाम से कौन से रिकार्ड है। आदि-आदि। 

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संजय गांधी के करीबी रहे सज्‍जन
दिल्‍ली की राजनीति में सज्‍जन कुमार एक बड़ा नाम है। उनकी तीन दशकों की लंबी सियासी पारी बड़ी उतार-चढ़ाव वाली रही। दिल्‍ली में पार्षद का चुनाव लड़कर उन्‍होंने अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने बाहरी दिल्ली के मादीपुर इलाके से नगर निगम का चुनाव लड़ा और 1977 में जीतकर पार्षद बन गए। 1970 के दशक में उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई। ऐसा कहा जाता है कि सज्‍जन कुमार की दिल्ली में एक चाय की दुकान हुआ करती थी, वहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई थी। यह मुलाकात धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई थी। उस वक्‍त इंदिरा कांग्रेस में संजय गांधी का दबदबा था। संजय की नजदीकी के कारण उनको पार्षद से सीधे लोकसभा चुनाव में उतारा गया। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में बाहरी दिल्ली संसदीय सीट से वह कांग्रेस के उम्‍मीदवार बनें। इस चुनाव में दिल्ली के पूर्व सीएम चौधरी ब्रह्मप्रकाश को चुनाव हराकर संसद पहुंचे। उस वक्‍त ब्रह्मप्रकाश केंद्र में केंद्रीय मंत्री थे। सज्‍जन कुमार महज 35 वर्ष की उम्र में सांसद बने। इस जीत के बाद सज्जन का राजनीतिक ग्राफ वर्ष 1977 से 1980 तक तेजी से बढ़ा।
1984 के सिख दंगों की आंच से प्रभावित हुई सियासत
हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद शुरू हुई दंगों की आंच उनके राजनीतिक करियर पर भी पड़ी। सज्‍जन कुमार को सिख दंगों का मुख्‍य आराेपी बनाया गया। इसके चलते उस साल देश में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने सिख वोट बचाने के लिए उनको टिकट नहीं दिया। इसके बाद 1989 के आम चुनाव में भी टिकट नहीं दिया गया। इस तरह से दो आम चुनावों में कांग्रेस ने उनको सक्रिय राजनीति से दूर रखा। लेकिन वर्ष 1991 में बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से उन्हें टिकट मिला और सज्‍जन कुमार की जीत हुई। इस बार वे भाजपा के प्रत्याशी साहिब सिंह वर्मा को हराकर तीसरी बार संसद भवन पहुंचने में कामयाब रहे। इस बीच सिख दंगों को लेकर चर्चा काफी गर्म रही। राजनीतिक पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए और सज्जन के कई साथी विधानसभा में चुनकर आ गए। लेकिन बाद में 1996 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्णलाल शर्मा के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

तमाम विवादों के बीच 2009 में कांग्रेस ने उन्‍हें फिर टिकट दिया, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री पर जूता उछालने की घटना के बाद मचे बवाल में पार्टी ने टिकट वापस ले लिया। हालांकि, बाहरी दिल्ली में दबदबे के कारण टिकट उनके छोटे भाई रमेश कुमार को दिया गया और वह जीतकर संसद भी पहुंचे।
सज्‍जन ने रचा इतिहास
भारतीय राजनीति में उनके नाम से दो रिकॉर्ड दर्ज हैं। साल 2004 में लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक मत हासिल करने का रिकार्ड बनाया। दूसरा, दिल्ली से सबसे अधिक मतों से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम दर्ज है। उन्हें आठ लाख से अधिक मत मिले थे।

कड़कड़डूमा कोर्ट ने सज्जन कुमार को बरी किया
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने सज्जन कुमार को बरी किया था लेकिन साल 1991 में इन्हें वापस टिकट मिला,जहां से इन्होंने एक बार फिर से जीत दर्ज की लेकिन बाद में 1996 के चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ नेता कृष्णलाल शर्मा के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा। नानावटी कमीशन की सिफारिश के बाद 2005 में सज्जन के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। 30 अप्रैल 2013 को दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट सज्जन कुमार को बरी कर दिया गया था।


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