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Exclusive Interview: सिद्धू, कैप्टन व खुर्शीद पर कांग्रेस के स्टैंड पर मनीष तिवारी की बेबाक राय, जाने- क्या कहा

दैनिक जागरण ने पंजाब की आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी से विस्तार से चर्चा की है। जानें- मनीष तिवारी ने हिंदुत्व पर कांग्रेस का स्टैंड जी-23 कैप्टन अमररिंदर सिंह को हटाए जानें व नवजोत सिंह सिद्धू के बयान पर क्या कहा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 22 Nov 2021 05:50 PM (IST)Updated: Mon, 22 Nov 2021 09:40 PM (IST)
पंजाब की आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी

पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ समय से हिंदुओं की चर्चा बढ़ गई है। शिअद-भाजपा का गठबंधन टूटने और कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस से अलग होने के बाद हिंदू मतदाता सभी पार्टियों के फोकस में आ गए हैं। कैप्टन को हटाए जाने के बाद जब ज्यादातर विधायक सुनील जाखड़ को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में तब वरिष्ठ नेत्री अंबिका सोनी ने यह कह कर नया विवाद छेड़ दिया कि पंजाब में कोई पगड़ीधारी सिख ही मुख्यमंत्री होना चाहिए। जाखड़ ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया भी दी।

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इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्व को अलग-अलग बताया तो वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने उन्हें सलाह दे डाली कि वे हिंदुत्व की बहस से दूर रहें। कांग्रेस पार्टी की मूल भावना इससे काफी अलग है। पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने जब अपनी किताब में हिंदुत्व पर सवाल उठाया तो यह बहस और तेज हो गई। पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता कैलाश नाथ ने पंजाब की आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी से विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपनी मूल विचारधारा में लौटकर ही खोया गौरव प्राप्त हो सकता है। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश:-

सवाल: पंजाब में हिंदू कांग्रेस से दूर हो रहा है, आप इसके पीछे क्या कारण समझते है?

जवाब: पंजाब में 13 लोकसभा सीटों में से मैं एक मात्र हिंदू सांसद हूं और उस क्षेत्र (श्री आनंदपुर साहिब) का प्रतिनिधित्व करता हूं, जहां पर 13 अप्रैल, 1699 में खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। मेरी मां एक जट्ट सिख थीं और पिता हिंदू, जिन्हें अप्रैल 1984 में गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। मेरे पिता पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के लोकाचार की रक्षा करते थे। मुझे इसलिए नहीं चुना गया, क्योंकि मैं हिंदू या सिख हूं, बल्कि इसलिए कि मैं पंजाबियत में रंगा हुआ हूं। यूपी या बिहार का सर नाम होने के बावजूद मैं चुना गया। पहले मैं लुधियाना से जीता और बाद में श्री आनंदपुर साहिब से। मेरे राजनीतिक विरोधी 'एह-यूपी बिहार दा भइया कित्थों आ गया' कह कर मेरा उपहास उड़ाते रहे, लेकिन पंजाब के लोगों ने इस तरह की सांप्रदायिक और जातिवादी सोच को खारिज कर दिया। पंजाबी धर्म या जाति के मामले में नहीं सोचता। जो कोई भी धर्म और जाति के नाम पर पंजाब को बांटने की कोशिश करता है, वह राज्य का सबसे बड़ा नुकसान करता है। आतंकवाद के दौर के बावजूद हमारी सामाजिक एकता बरकरार है। जो पाकिस्तान की तमाम धूर्त चालों के बावजूद हमारी रक्षा करती है।

सवाल: राहुल गांधी और प्रियंका मंदिर-मंदिर जा रहे हैं, इसके बावजूद कांग्रेस हिंदुओं को लेकर दुविधा में दिखाई देती है?

जवाब: इसके लिए थोड़ा अतीत में झांकना पड़ेगा। स्वतंत्रता से पहले धर्म को लेकर कांग्रेस में दो दृष्टिकोण थे। 'गांधीवादी मानवतावाद और नेहरूवादी बहुलतावाद।' 30 जनवरी, 1948 में गांधी की हत्या के बाद पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के धर्मनिरपेक्षता वाले दृष्टिकोण को मजबूती मिली। नेहरू का मानना था कि धर्म एक निजी और आंतरिक गतिविधि है। जो भगवान और आपके बीच में है। मैं एक हिंदू हूं और हर रोज अपने भगवान की पूजा करता हूं। यह मेरी राजनीति नहीं है। यह मूल वैचारिक धारणा है। कांग्रेस को भी यह समझना चाहिए। मंदिर, गिरजाघर, गुरुद्वारा या मस्जिद में माथा टेकने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आपकी राजनीति का आधार नहीं होना चाहिए। अगर मैं अपनी धार्मिक पहचान को अपनी राजनीति का आधार बनाना चाहता हूं तो मुझे एक बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक पार्टी, जैसे हिंदू महासभा या जमात-ए-इस्लामी में होना चाहिए।

सलमान खुर्शीद ने हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठनों से की है, इसे आप कितना सही मानते हैं?

जवाब: सही कहूं तो मैंने अभी सलमान खुर्शीद की किताब पढ़ी नहीं है। ऐसे में एक लेखक के बारे में टिप्पणी कर देना अनुचित होगा। हालांकि, राजनीतिक इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं के बारे में मेरी सीमित समझ में आइएसआइएस और बोको हराम सबसे खतरनाक विषैली विचारधारा का नेतृत्व करते हैं। दुनिया भर के शांतिप्रिय मुसलमानों ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया है। जहां तक हिंदुत्व का संबंध है, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आफ इंडिया जगदीश सरन वर्मा की अध्यक्षता में एक पीठ ने 1995 में कहा था कि हिंदुत्व जीवन का एक तरीका है। अक्टूबर 2016 में तत्कालीन सीजेआइ तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने उस सवाल को फिर से खोलने से इन्कार कर दिया। मेरा मानना है कि हमें हिंदुत्व पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का सम्मान करना चाहिए।

पंजाब में जब नए मुख्यमंत्री की बात आई तो अंबिका सोनी ने कहा कि मुख्यमंत्री पगड़ीधारी होना चाहिए, इसमें धर्मनिरपेक्षता कहा है?

जवाब: देखिए, इसका बेहतर जवाब तो अंबिका सोनी जी ही दे सकती हैं। मैं अंबिका जी का बहुत सम्मान करता हूं। जहां तक मेरा सवाल है, मेरा मानना है कि पंजाब 'मानस की जात सभै एकै पहिचानबो' मानता है। एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य में कोई भेद नहीं है।

कैप्टन बीएसएफ का दायरा बढ़ाने को सही बताते हैं, कांग्रेस सरकार निंदा प्रस्ताव पारित करती है, आप भी सवाल उठा रहे हैं। क्यों?

जवाब: कैप्टन साहब का अपना नजरिया है। मैं उनके नजरिए पर कोई कमेंट नहीं करूंगा। हां यह जरूर है कि मैं सार्वजनिक और निजी तौर पर पंजाब सरकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 का सहारा लेने और केंद्र सरकार की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की सलाह दी है। यह संघीय ढांचे पर हमला है और इसके दूरगामी परिणाम आएंगे। विधानसभा में प्रस्ताव पारित करना राज्य की राजनीतिक इच्छाशक्ति तो दिखाता है, लेकिन इससे अधिसूचना वापस नहीं होगी। अगर पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला करती है, तो मैं पंजाब राज्य की ओर से मुफ्त में बहस करने के लिए भी तैयार हूं।

सिद्धू कभी पार्टी की ईंट से ईंट बजाते है, तो कभी इस्तीफा दे देते हैं। उन्हें साथ में रखने में कांग्रेस की क्या मजबूरी है?

जवाब: सही कहूं तो 40 वर्षों के अपने करियर में मैंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री का ऐसा 'अजीब व्यवहार' कभी नहीं देखा। आल इंडिया कांग्रेस की क्या मजबूरी है, यह तो वही बता पाएंगे, लेकिन यह जरूर है कि एआइसीसी नेतृत्व की बार-बार अवहेलना का असर पूरे देश पर पड़ता है। अन्य राज्य के नेता भी वैसा ही आचरण करने लगेंगे।

आप जी-23 के सदस्य हैं। क्या आप पार्टी हाईकमान की वर्किग से संतुष्ट नहीं हैं?

जवाब: पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि जी-23 कोई 23 नेताओं का समूह नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भावना है, जो चाहते हैं कि पार्टी अपने पुराने गौरव की ओर लौटे। अफसोस की बात है कि पूरे प्रयास को गलत समझा गया। इसे कुछ निहित हितों के लिए कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक चुनौती के रूप में पेश किया गया, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कांग्रेस लोकसभा में 40-50 सीटों पर ही सिमट कर रह जाती है तो उन्हें खुद में झांक कर देखना चाहिए। क्योंकि हम 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हा चुके है। 2014 के साथ 44 विधानसभा चुनाव में से कांग्रेस को 34 में हार का सामना करना पड़ा। मात्र चार राज्यों में ही जीत मिली है। छह राज्यों में तो कांग्रेस का गठबंधन है। अगर पार्टी नेतृत्व अभी भी कायाकल्प की हमारी पीड़ा पर ध्यान देता है तो कांग्रेस 2024 में 272 सीटें जीत सकती है। लोग भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से छुटकारा पाना चाहते हैं। यह प्रक्रिया अभी शुरू होनी है, क्योंकि लोकसभा चुनाव को हुए 30 महीने हो गए हैं। हमें आत्ममंथन करना होगा और पार्टी को मूल बातों पर लौटना होगा।

कैप्टन अपनी पार्टी बनाने जा रहे हैं, आपको क्या लगता है पूर्व मुख्यमंत्री का यह फैसला सही है?

जवाब: देखिए, कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे को बेहतर तरीके से भी संभाला जा सकता था। उनकी वरिष्ठता और कद को देखते हुए उन्हें यह बताया जाना चाहिए था कि पार्टी एक बदलाव की इच्छा रखती है। वह शालीनता से इस्तीफा दे देते और अभी कांग्रेस में होते। मैं तो अब भी सुलह की ही वकालत करता हूं। कैप्टन दिल से कांग्रेसी हैं। आप किसी को कांग्रेस से निकाल सकते हैं, लेकिन कांग्रेस को उससे नहीं निकाल सकते। मैं कई ऐसे भाजपा के विधायकों व सांसदों को जानता हूं, जो दिल से आज भी कांग्रेसी ही हैं। क्या करें रजनीतिक मजबूरी है ना भइया।

इन मुद्दों पर खुलकर बोले मनीष तिवारी

हिंदुत्व की राजनीति पर: मंदिर, गिरजाघर, गुरुद्वारा या मस्जिद में माथा टेकने में बुराई नहीं, लेकिन यह राजनीति का आधार नहीं होना चाहिए।

हिंदुत्व पर कांग्रेस का स्टैंड: धर्म निजी गतिविधि है। जवाहर लाल नेहरू का धर्मनिरपेक्षता वाला दृष्टिकोण ही कांग्रेस की मूल वैचारिक धारणा है।

खुर्शीद की टिप्पणी पर: आइएसआइएस व बोको हराम विषैली विचारधारा का नेतृत्व करते हैं, जबकि हिंदुत्व जीवन का एक तरीका है।

बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र पर: बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाना राज्य के संघीय ढांचे पर हमला है। इसके दूरगामी परिणाम आएंगे।

नवजोत सिद्धू पर: 40 वर्षों के अपने करियर में मैंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री का ऐसा 'अजीब व्यवहार' नहीं देखा।

जी-23 पर: यह 23 नेताओं का समूह नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों आम कार्यकर्ताओं की भावना है, जो चाहते हैं कि पार्टी पुराने गौरव की ओर लौटे।

2024 के चुनाव पर: लोग भाजपा से छुटकारा पाना चाहते हैं। हमें आत्ममंथन करना होगा और पार्टी को मूल बातों पर लौटना होगा।

कैप्टन को हटाने पर: इसे बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था। आप किसी को कांग्रेस से निकाल सकते हैं, लेकिन कांग्रेस को उससे नहीं निकाल सकते।


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