गठबंधन के सहारे भाजपा को रोकने में कामयाब हो रही कांग्रेस, भाजपा के दांव हुए नाकाम
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सभी क्षेत्रीय दलों से भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ आकर खड़े होने की बात कह पार्टी के इन इरादों को जाहिर भी कर दिया।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। झारखंड चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि क्षेत्रीय दलों के साथ गोलबंदी कर भाजपा को मात देने की कांग्रेस की सियासी रणनीति मौजूदा राजनीतिक हालत में उसके लिए सबसे ज्यादा मुफीद साबित हो रही है। इतना ही नहीं सूबों के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों की बजाय स्थानीय मुद्दों पर फोकस करने की रणनीति भी भाजपा के दांव को नाकाम करने में अहम बन रही है।
अनुच्छेद 370, राममंदिर, CAA, NRC जैसे मुद्दे सूबों की सत्ता विरोधी लहर को बदलने में सक्षम नहीं
झारखंड चुनाव परिणामों से सरसरी तौर पर यह तो साफ हो गया है कि अनुच्छेद 370 हटाने, तीन तलाक, राममंदिर बनाने से लेकर नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी जैसे बड़े मुद्दे भी सूबों की सत्ता विरोधी लहर को बदलने में सक्षम नहीं हैं।
कांग्रेस के लिए झारखंड चुनाव के नतीजों के गहरे सियासी मायने
देश में विपक्षी राजनीति के बिखरे धरातल को संभालने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए झारखंड चुनाव के नतीजों के गहरे सियासी मायने हैं। इस नतीजे का सबसे बड़ा सियासी संदेश पार्टी के लिए जहां फिलहाल गठबंधन के ट्रैक पर ही कांग्रेस की राजनीति को आगे बढ़ाने का है।
सूबों के चुनावों को पीएम मोदी के करिश्मे से बदलने का दौर थमा
पार्टी के लिए दूसरी बड़ी राहत सूबों के चुनावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे से बदलने के दौर का थम जाना भी है। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में इसके शुरूआती रुझान दिखने लगे थे। मगर झारखंड के नतीजों में यह पूरी तरह साफ हो गया।
लोगों की नाराजगी को पीएम की सियासी अपील भी खत्म नहीं कर पायी
सूबे में पांच चरणों में कराए गए और पीएम मोदी की तमाम सभाएं हुईं मगर मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ लोगों की नाराजगी को पीएम की सियासी अपील भी खत्म नहीं कर पायी। नतीजों से साफ है कि राष्ट्रीय नेतृत्व के करिश्मे से राज्यों के चुनाव को बदलने का भाजपा का दौर थमता दिख रहा है। कांग्रेस और विपक्षी खेमे के उसके साथी दलों के लिए यह सियासी रुझान जाहिर तौर पर भविष्य की उम्मीद बढ़ाता है।
कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन को मिली कामयाबी, कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों का नेतृत्व स्वीकारना होगा
विपक्षी दल खासकर कांग्रेस बीते पांच साल के दौरान भाजपा की सियासी ताकत और चुनावी प्रबंधन के पराक्रम के चलते मैदान में उतरने से पहले ही हौसला छोड़ती दिखाई देती रही थी। महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनाव में भी कांग्रेस का ऐसा ही हाल था। लेकिन इन दोनों सूबों के नतीजों में भाजपा को लगे झटके ने पार्टी को मुकाबले का हौसला दिया। शायद इसी वजह से कांग्रेस ने झारखंड में झामुमो के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनना स्वीकार कर न केवल गठबंधन किया बल्कि मजबूती से चुनाव लड़ी। इसमें मिली कामयाबी से साफ हो गया है कि कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन की अगुआई करना है, तो फिर उसे कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों का नेतृत्व भी स्वीकार करना होगा।
भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस ने कबूल किया हेमंत सोरेन का नेतृत्व
झामुमो में हेमंत सोरेन का नेतृत्व कबूल कर पार्टी ने इसे सहजता से कबूल करने का भी संदेश दे दिया है। महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रुप में स्वीकार कर कांग्रेस ने इसकी शुरूआत की थी। हालांकि पार्टी ने भाजपा को रोकने के लिए 2018 में कर्नाटक में जेडीएस के कुमारस्वामी को कम सीटें होने के बावजूद मुख्यमंत्री बनाकर इसका पहला प्रयोग किया था मगर कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के चलते यह नाकाम रहा, लेकिन झारखंड में इसे दुरूस्त करने के लिए कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन कर इस प्रयोग को कामयाब बनाने में सफलता पायी है।
भाजपा की स्थानीय मुद्दों पर घेरेबंदी करने में कांग्रेस की रणनीति सकारात्मक साबित हुई
वैसे भाजपा के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों की फांस में फंसने की बजाय स्थानीय मुद्दों पर उसकी घेरेबंदी बढ़ाने की कांग्रेस की रणनीति उसके लिए सकारात्मक साबित हो रही है। हरियाणा में भाजपा के तमाम प्रयासों के बाद भी अनुच्छेद 370 की सियासी जंग में कांग्रेस नहीं उलझी तो झारखंड में इसके साथ सीएए-एनआरसी, राम मंदिर और तीन तलाक भी भाजपा की पोटली में थी। झारखंड से कांग्रेस को यह उम्मीद मिली है कि जनता को परेशान करने वाले स्थानीय मुद्दों के सहारे सूबे के चुनाव में बड़े राष्ट्रीय मसलों की धमक को गौण किया जा सकता है।
चिदंबरम ने कहा- सभी क्षेत्रीय दल भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ आकर खड़े हों
इस नतीजे के बाद भविष्य में कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों की संयुक्त गोलबंदी की पहल का हर दांव चलेगी। जाहिर तौर पर विपक्षी एकजुटता की इस पहल में क्षेत्रीय दल अहम होंगे। झारखंड के परिणामों के बाद पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सभी क्षेत्रीय दलों से भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ आकर खड़े होने की बात कह पार्टी के इन इरादों को जाहिर भी कर दिया।
गठबंधन को लेकर कांग्रेस का रुख उदार और लचीला है, जबकि भाजपा का रुख सख्त है
कांग्रेस यह भी मान रही कि गठबंधन को लेकर उसका रुख एक ओर उदार और लचीला है तो दूसरी ओर भाजपा अपने मित्र दलों को भी सियासी रुप से सीमित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। ऐसे में क्षेत्रीय दलों के लिए भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के साथ गठबंधन में आना ज्यादा सहज होगा। महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखंड में आजसू का भाजपा से नाराज होकर दोस्ती तोड़ने को पार्टी इसका ताजा नमूना मान रही।