कांग्रेस का मोदी सरकार पर जवाबी प्रहार, कहा- तीन तलाक को बना रही सियासी फुटबाल
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि वोट हासिल करने के राजनीतिक स्टंट के लिए तीन तलाक का अध्यादेश लाया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस ने तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के तीखे वार पर जवाबी प्रहार करते हुए कहा है कि मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक के मसले को राजनीतिक फुटबाल बना रही है। कांग्रेस के अड़चन डालने के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के आरोपों को झूठा बताते हुए पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि वोट हासिल करने के राजनीतिक स्टंट के लिए तीन तलाक का अध्यादेश लाया गया है। अध्यादेश में दोषी पति की संपत्ति बेच कर या गिरवी रख पीडि़त पत्नी व बच्चों के भरण-पोषण के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया है।
कांग्रेस ने रविशंकर के आरोपों को बताया झूठा, कहा हम तीन तलाक के खिलाफ
सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस ने तीन तलाक के मामले में जेल जाने वाले व्यक्ति की संपत्ति से पत्नी और उसके बच्चे के जीवन-यापन का प्रबंध करने का प्रावधान शामिल करने का सरकार को सुझाव दिया था। सरकार ने तीन तलाक अध्यादेश में इस प्रावधान को शामिल नहीं कर यह साफ कर दिया है कि उसका मकसद पीडि़त मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना नहीं बल्कि वोट की राजनीति करना है।
रविशंकर प्रसाद के आरोपों पर कांग्रेस नेता ने कहा कि झूठ और असत्य से परे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि 26 मई 2014 से 22 अगस्त 2017 तक जब सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक मामले में फैसला आया, उसने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के लिए कानूनी पहल क्यों नहीं की।
सुरजेवाला ने कहा कि इसके विपरीत कांग्रेस के वरिष्ठ वकील नेताओं ने तीन तलाक मामले में सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाने वाली मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में पैरवी की।
तीन तलाक पर कांग्रेस का रुख साफ करते हुए सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी का शुरू से मानना है कि यह लैंगिक समानता का मुद्दा है। तीन तलाक अमानवीय है। यह मुस्लिम महिलाओं के हितों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के फैसले पर कांग्रेस ने जश्न का इजहार भी किया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के तीन तलाक का विरोध करने का भाजपा और सरकार का दावा सरासर झूठा है।
सुरजेवाला ने कहा कि पहले भी मसला तीन तलाक से प्रभावित महिला और उसके बच्चों के जीवन-यापन की व्यवस्था का ही था और अध्यादेश के बाद भी अब वही सवाल हैं। अध्यादेश में इस मानवीय पहलू को शामिल नहीं कर सरकार ने साफ कर दिया है कि उसका पूरा मकसद राजनीतिक श्रेय लेने तक सीमित है।