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साझा मतदाता सूची की आवश्यकता, एक देश-एक चुनाव की अवधारणा को दिया जा सकेगा मूर्त रूप

पीएम मोदी कई बार एक राष्ट्र-एक चुनाव की बात कह चुके हैं। विधि आयोग ने भी 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में साझा मतदाता सूची की सिफारिश की थी। भारत निर्वाचन आयोग ने वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में इसी तरह का विचार प्रकट किया था।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 22 Dec 2021 12:27 PM (IST)Updated: Sat, 25 Dec 2021 08:45 AM (IST)
साझा मतदाता सूची की आवश्यकता, एक देश-एक चुनाव की अवधारणा को दिया जा सकेगा मूर्त रूप
साझा मतदाता सूची से एक देश-एक चुनाव की अवधारणा को दिया जा सकेगा मूर्त रूप

[अली खान] चुनाव सुधार के लिए लंबे समय से उठ रही मांगों को देखते हुए केंद्र सरकार एक बार फिर से सक्रिय हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वह साझा मतदाता सूची बनाने की दिशा में जल्द कोई पहल करेगी। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में साझा मतदाता सूची का वादा किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की बात कह चुके हैं। विधि आयोग ने भी 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में एक देश-एक चुनाव और साझा मतदाता सूची की सिफारिश की थी। भारत निर्वाचन आयोग ने वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में इसी तरह का विचार प्रकट किया था।

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केंद्र सरकार अब पूरे देश में एक ही यानी साझा मतदाता सूची पर राज्य सरकारों के बीच सहमति बनाने और इसी अनुरूप विधायी बदलाव करने पर विचार कर रही है। इस सिलसिले में दो विकल्प अपनाने पर विचार किया जा सकता है। पहला, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (के) और 243 (जेडए) में संशोधन करके देश के सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची को अनिवार्य किया जा सकता है। यह नियम राज्य निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और स्थानीय निकायों के चुनावों का संचालन करने का अधिकार देता है। दूसरा, निर्वाचन आयोग या भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों को अपने कानूनों में संशोधन करने और नगरपालिका तथा पंचायत चुनावों के लिए राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची को अपनाने के लिए राजी किया जाए। संविधान का अनुच्छेद 324 (1) चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए निर्वाचक नामावली की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार देता है।

देश के कई राज्यों में पंचायत और नगरपालिका चुनावों के लिए जिस मतदाता सूची का प्रयोग किया जाता है वह संसद और विधानसभा चुनावों के लिए उपयोग की जाने वाली सूची से भिन्न होती है। इस प्रकार के अंतर का मुख्य कारण यह है कि हमारे देश में चुनावों की देखरेख और उसके संचालन की जिम्मेदारी भारत निर्वाचन आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग को दी गई है। कुछ राज्य अपने राज्य निर्वाचन आयोग को स्थानीय चुनाव के लिए राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की गई मतदाता सूची का उपयोग करने की स्वतंत्रता देते हैं। जबकि कुछ राज्यों में निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची को केवल आधार के तौर पर प्रयोग किया जाता है। अभी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष राज्य और केंद्रशासित प्रदेश स्थानीय निकाय के चुनावों के लिए राष्ट्रीय चुनाव आयोग की मतदाता सूची का प्रयोग करते हैं। लिहाजा संविधान में संशोधन करना आसान होगा।

आम-आदमी के मन में इस सवाल का कौंधना स्वाभाविक है कि आखिर साझा मतदाता सूची बनाए जाने की आवश्यकता क्यों है? हमें यह समझना होगा कि इसके माध्यम से ‘एक देश-एक चुनाव’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सकेगा। इसके साथ अलग-अलग मतदाता सूची के निर्माण में आने वाले व्यय को कम किया जा सकेगा। प्राय: यह तर्क दिया जाता है कि दो अलग-अलग संस्थाओं द्वारा तैयार की जाने वाली अलग-अलग मतदाता सूचियों के निर्माण में काफी अधिक दोहराव होता है, जिससे मानवीय प्रयास और व्यय भी दोगुने हो जाते हैं। जबकि एक मतदाता सूची के माध्यम से इसे कम किया जा सकता है। इसके अलावा अलग-अलग मतदाता सूची होने से मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति पैदा होती है, क्योंकि कई बार एक मतदाता सूची में व्यक्ति का नाम मौजूद होता है, जबकि दूसरे में नहीं। लिहाजा देश में साझा मतदाता सूची बनाए जाने की आवश्यकता है।

(शोधार्थी)


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