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Citizenship Amendment Bill: नागरिकता संशोधन विधेयक पर अमेरिकी आयोग की टिप्‍पणी का MEA ने दिया करारा जवाब

Citizenship Amendment Bill नागरिक संशोधन बिल के पारित होने पर अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान दिया है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 03:53 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 03:53 PM (IST)
Citizenship Amendment Bill:  नागरिकता संशोधन विधेयक पर अमेरिकी आयोग की टिप्‍पणी का MEA ने दिया करारा जवाब
Citizenship Amendment Bill: नागरिकता संशोधन विधेयक पर अमेरिकी आयोग की टिप्‍पणी का MEA ने दिया करारा जवाब

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पहले कश्मीर से धारा 370 का हटना और अब नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी)। अमेरिकी एजेंसियों को भारत के आतंरिक मामले में टिप्पणी करने की आदत जाने का नाम नहीं ले रही। सोमवार को लोकसभा में पारित सीएबी पर स्वायत्त अमेरिकी एजेंसी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआइआरएफ) ने बेहद तल्ख टिप्पणी की। आयोग ने यहां तक कहा है कि अगर राज्य सभा में यह बिल पारित होता है तो अमेरिकी सरकार को भारत के गृह मंत्री और अन्य राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ पाबंदी लगाने चाहिए। भारत ने आयोग की टिप्पणी को बेहद पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह बताते हुए इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है। भारत ने आयोग पर बगैर वस्तुस्थिति की जानकारी के ही टिप्पणी करने की बात कही है।

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विदेश मंत्रालय ने दिया जवाब

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि, ''यूएससीआइआरएफ की तरफ से नागरिकता संशोधन विधेयक पर टिप्पणी अवांछित है। यह विधेयक सिर्फ कुछ देशों से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने की प्रक्रिया को तेज करने में मदद करती है। यह उनकी मौजूदा समस्याओं को दूर करती है और मानवाधिकार के मूलभूत सिद्धांतों का पालन करती है। जो लोग सही मायने में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर प्रतिबद्ध हैं, उन्हें इस तरह के कदम का स्वागत करना चाहिए। यह विधेयक दूसरे समुदायों को भारतीय नागरिकता देने के मौजूदा प्रावधानों में कोई छेड़छाड़ नहीं करता है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने जिस तरह से नागरिकता प्रदान की है, वह इस संदर्भ में उसके रिकॉर्ड को बताता है।''

किसी भी धर्म के नागरिक की मौजूदा नागरिकता को छिनने की कोशिश नहीं 

इसके आगे उन्होंने कहा कि सीएबी या नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) की प्रक्रिया किसी भी धर्म के नागरिक की मौजूदा नागरिकता को छिनने की कोशिश नहीं है। इस तरह की बात करना किसी भावना से प्रेरित है और अन्यायपूर्ण भी है। अमेरिका समेत हर देश को अपने नागरिकों के हितों का ख्याल रखने और उसे तय करने का अधिकार है। कुमार ने फिर यूएससीआइआरएफ को घेरते हुए कहा है कि उसके पुराने रूख को देखते हुए उसके टिप्पणी को समझा जा सकता है। लेकिन यह दुखद है कि इस एजेंसी ने उस पूरे मुद्दे पर पूर्वाग्रह व दुर्भावना से भरी टिप्पणी की है जिसके बारे में उसे कुछ भी पता नहीं है।

पहले भी की है भारत की आलोचना

सनद रहे कि यूएससीआइआरएफ इसके पहले भी कई बार भारत पर काफी तल्ख टिप्पणी करती रही है। पूर्व में भारत में हुए दंगों की भी उसने काफी आलोचना की है। हाल ही में कश्मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने की भारत की घोषणा पर भी उसने कड़े शब्दों में भ‌र्त्सना की है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वह पाकिस्तान, चीन, म्यांमार जैसे देशों में भी अल्पसंख्यकों की स्थिति को सामने लाने का काम किया है।

मंगलवार को सुबह उसकी तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत में इस विधेयक के जरिए धर्म के आधार पर नागरिकता देने का रास्ता बनाया जा रहा है। यह खतरनाक है और गलत रास्ते की तरफ जा रहा है। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुवादी व्यवस्था के बेहद गौरवपूर्ण इतिहास और भारतीय संविधान के खिलाफ है। सीएबी के साथ एनआरसी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इनके जरिए भारत सरकार नागरिकता के लिए धार्मिक परीक्षण की व्यवस्था कर रही है जो लाखों मुस्लिमों से नागरिकता छिन लेगी।


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