केंद्र पहले ही ठुकरा चुका है चंद्र बाबू के राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग, जानें क्या है आधार
जिस मांग को लेकर चंद्र बाबू नायडू एक दिन के अनशन पर बैठे हैं दरअसल, उसे केंद्र पहले ही खारिज कर चुका है। जानिए आखिर किस आधार पर केंद्र देता है विशेष राज्य का दर्जा।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू राज्य को विशेष दर्जा दिलाने की मांग पर अनशन पर बैठे हैं। हालांकि इस मांग को लेकर नायडू का यह रुख पहली बार सामने नहीं आया है। जहां तक उनकी मांग पर केंद्र के रुख का सवाल है तो उसको पहले ही खारिज किया जा चुका है। खुद वित्त मंत्री पहले ही इस बारे में केंद्र का रुख स्पष्ट कर चुके हैं। उनका कहना था कि 14वें वित्त आयोग के बाद विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। दो वर्ष पहले भी इसी मांग को लेकर नायडू पीएम मोदी से मिले थे। बहरहाल, उनकी ये मांग काफी पुरानी है, लेकिन इस पर केंद्र के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। आपको यहां पर बता दें कि इस तरह की मांग करने वालों में सिर्फ आंध्र प्रदेश ही नहीं है बल्कि बिहार, तेलंगाना राजस्थान, ओडिशा भी इसी राह पर है।
आपको बता दें कि भारत के सभी राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से हर पांच साल के अंतराल पर गठित किये जाने वाले वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्र के करों में हिस्सा दिया जाता है। इसे राज्य अपने विकास कार्यों पर खर्च करता है। वित्त आयोग द्वारा दिए जाने वाले हिस्से से अलग केंद्र सरकार किसी राज्य को और अधिक वित्तीय सहायता देता है। वर्तमान में भारत के 29 राज्यों में से 11 को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। इनमें मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड शामिल है। फिलहाल पांच राज्य विशेष दर्जा दिया जाने की मांग केंद्र से कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश की समेत अन्य राज्यों की इस मांग को लेकर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर किसी राज्य को विशेष दर्जा देने के पीछे क्या कारण होते हैं और विशेष दर्जा देने के बाद राज्य को किस तरह की सहुलियत दी जाती है।
वर्ष 1969 में पांचवे वित्त आयोग जिसके अध्यक्ष महावीर त्यागी थे, ने गाडगिल फोर्मुले के आधार पर 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया था। इनमें (जम्मू कश्मीर, असम और नागालैंड शामिल थे। इसके पीछे कारण इन राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन था। राष्ट्रीय विकास परिषद ने राज्यों को विशेष दर्जा देने के लिए निम्न मापदंडों को बनाया है।
ये है आधार
विशेष राज्य का दर्जा किसी को तभी दिया जाता है जब उस प्रदेश में संसाधनों की कमी हो, कम जनसंख्या घनत्व और कम प्रति व्यक्ति आय हो, राज्य की आय कम हो, जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो, पहाड़ी और दुर्गम इलाके में स्थित हो, प्रतिकूल स्थान पर स्थित हो और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित हो।
विशेष राज्य का दर्जा मिलने से फायदा
- विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को उत्पादन कर, सीमा कर, निगम कर, आयकर के साथ अन्य करों में भी छूट दी जाती है।
- जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है उनको जितनी राशि केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है उसका 90% अनुदान के रूप में और बकाया 10% बिना ब्याज के कर्ज के रूप में दिया जाता है। इसके अलावा अन्य राज्यों को केंद्र की आर्थिक सहायता का 70% हिस्सा कर्ज के रूप में (इस धन पर ब्याज देना पड़ता है) और बकाया का 30% अनुदान के रूप में दिया जाता है।
- इसके तहत जो राशि केंद्र सरकार से राज्य सरकार को अनुदान के रूप में दी जाती है उस राशि को केंद्र सरकार को वापस लौटाना नही पड़ता है, लेकिन जो राशि उधार के तौर पर राज्यों को दी जाती है उस पर राज्य सरकार को ब्याज देना पड़ता है।
- केंद्र के सकल बजट में नियोजित खर्च का लगभग 30% हिस्सा उन राज्यों को दिया जाता है जिनको विशेष श्रेणी के राज्यों में रखा गया है।
- विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को ऋण स्वैपिंग स्कीम और ऋण राहत योजनाओं का लाभ भी मिलता है।
- विशेष दर्जा प्राप्त जो राज्य; एक वित्त वर्ष में पूरा आवंटित पैसा खर्च नही कर पाते हैं उनको यह पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दिया जाता है।
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