सरकार का बड़ा ऐलान, नहीं होगी पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय करों में कटौती
जैसे-जैसे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में इजाफा होता है, राज्यों की कमाई भी बढ़ती जाती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल पर फिलहाल केंद्रीय करों में कटौती के आसार नहीं है। सरकार सवा तीन सौ से अधिक वस्तु और सेवाओं पर जीएसटी की दरें घटाकर और आय कर में छूट के जरिए जनता को लगभग दो लाख करोड़ रुपये सालाना कर राहत दे चुकी है। ऐसे में खजाने की वर्तमान स्थिति के मद्देनजर फिलहाल पेट्रोलियम उत्पादों पर कर में कटौती की गुंजाइश नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि फिलहाल अगर पेट्रोलियम उत्पादों पर कर में कटौती की गयी तो विकास पर उल्टा असर पड़ेगा क्योंकि लोगों को पेट्रोल-डीजल पर राहत देने के लिए सरकार को विकास कार्यो पर खर्च में कटौती करनी पड़ेगी। ध्यान रहे कि एक रुपये की कटौती करने पर भी सरकार के खजाने पर लगभग 30 हजार करोड़ सालाना का बोझ पड़ेगा।
पेट्रोलियम उत्पादों पर राहत देने का एक ही उपाय है कि नॉन-ऑयल उत्पादों पर कर संग्रह बढ़ाया जाए। इसके लिए सरकार ने अगले पांच साल में नॉन-आयल उत्पादों पर कर संग्रह के अनुपात को 1.5 प्रतिशत अंक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि यह दीर्घकाल में ही संभव हो पाएगा।
सूत्रों का यह भी कहना है कि पेट्रोलियम उत्पादों के जीएसटी के दायरे में आने के बाद भी इनकी कीमतों में कमी आने का अनुमान नहीं है क्योंकि उस स्थिति में भी टैक्स का बोझ लगभग उतना ही रखा जाएगा जितना फिलहाल है।
सूत्रों ने कहा कि सरकार ने हाल के वर्षो में कर में छूट देकर आम लोगों को बड़ी राहत दी है। मसलन, सवा तीन सौ से अधिक वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी की दर घटाई गयी है जिससे आम लोगों को सालाना 80,000 करोड़ की राहत दी जा चुकी है। इसके अलावा आयकर के मोर्चे पर भी सरकार ने सालाना 98,000 करोड़ की राहत करदाताओं को दी है। यह राहत अलग-अलग तरह से आय कर में कटौती के जरिए दी गयी।
सूत्रों ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने से केंद्र की कोई अतिरिक्त कमाई नहीं हो रही है। दरअसल केंद्र सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर ढाई प्रतिशत की दर से बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाती है। सिर्फ यही एक ड्यूटी है जो प्रतिशत के रूप में लगता है। इसके अलावा जो भी कर जैसे- अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, विशेष उत्पाद शुल्क सहित जो भी केंद्रीय कर लगाए जाते हैं वे प्रति लीटर के हिसाब से लगाए जाते हैं इसलिए यदि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ भी जाए तो भी केंद्र के खजाने में उतनी ही राशि आएगी जितनी पहले आ रही थी।
राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर वैट लगाती हैं जो मूल्य के प्रतिशत के रूप में एड वलोरम के सिद्धांत पर लगाया जाता है। इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में इजाफा होता है, राज्यों की कमाई भी बढ़ती जाती है।