चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद सरकार का फैसला, दस फीसद ज्यादा चुनावी खर्च कर सकेंगे उम्मीदवार
अब लोकसभा चुनावों में अधिकतम 77 लाख तक और विधानसभा चुनाव में अधिकतम 30.80 लाख रुपये तक खर्च कर सकेंगे। अभी तक खर्च की यह सीमा लोकसभा में अधिकतम 70 लाख रुपए तक और विधानसभा में 28 लाख रुपये तक की थी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाने वाले प्रत्याशियों को राहत देते हुए केंद्र सरकार ने चुनावी खर्च की सीमा में दस फीसद की बढ़ोत्तरी कर दी है। इसके तहत अब लोकसभा चुनावों में अधिकतम 77 लाख तक और विधानसभा चुनाव में अधिकतम 30.80 लाख रुपये तक खर्च कर सकेंगे। अभी तक खर्च की यह सीमा लोकसभा में अधिकतम 70 लाख रुपए तक और विधानसभा में 28 लाख रुपये तक की थी।
बढ़ोत्तरी तत्काल प्रभाव से लागू
केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के बाद यह बढ़ोत्तरी तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है। चुनावी खर्च सीमा में की गई बढ़ोत्तरी का तत्काल फायदा बिहार विधानसभा चुनावों के साथ मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा और लोकसभा के हो रहे उपचुनावों में भी मिलेगा। चुनाव आयोग ने कोरोना के चलते सरकार से चुनावी खर्च की सीमा में बढ़ोत्तरी का सुझाव दिया था।
इससे पहले चुनावी खर्च सीमा में यह बढ़ोत्तरी 2014 में की गई थी। हालांकि इसे 2019 के आम चुनावों में भी बढाने की मांग की गई थी, लेकिन तब यह नहीं हुआ था। इस बीच राजनीतिक दलों की मांग और कोरोना की बंदिशों को देखते हुए चुनाव आयोग ने चुनावी खर्च की सीमा में दस फीसद की बढ़ोत्तरी की सरकार से सिफारिश की थी।
कुछ छोटे राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्र में नहीं की गई बढ़ोतरी
चुनावी खर्च सीमा में की गई इस बढोत्तरी को सरकार ने पहले की तरह अरुणाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम, पुंडुचेरी, अंडमान निकोबार, दादर नगर हवेली और दमन दीव, लक्षद्वीप, लद्दाख जैसे कुछ छोटे राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्र में इसे कम ही रखा है, जहां लोकसभा चुनाव में 59.40 लाख और विधानसभा चुनाव में 22 लाख रुपये तक की गई है।
इसके साथ ही उत्तर-पूर्व के मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड जैसे राज्यों में लोकसभा में तो खर्च की सीमा को 77 लाख ही रखा गया है, लेकिन विधानसभा चुनावों में खर्च की सीमा को 22 लाख रुपए रखा है। चुनावों के दौरान प्रत्याशियों के लिए तय सीमा में खर्च की एक बड़ी चुनौती रहती है। चुनाव के दौरान हर दिन उन्हें अपने खर्च का पूरा ब्यौरा स्थानीय प्रशासन को देना होता है। इससे ज्यादा खर्च करने पर प्रत्याशियों की चुनाव भी निरस्त हो जाता है। यही वजह है कि प्रत्याशी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान फूंक-फूंक कर खर्च करते है।