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गृह मंत्रालय ने अफवाहों को किया खारिज, नागरिकता को लेकर दिया स्‍पष्‍टीकरण, जानें क्‍या कहा

गृह मंत्रालय ने स्‍पष्‍टीकारण देते हुए कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून या या संभावित देशव्यापी एनआरसी के कारण चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 20 Dec 2019 05:33 PM (IST)Updated: Sat, 21 Dec 2019 07:09 AM (IST)
गृह मंत्रालय ने अफवाहों को किया खारिज, नागरिकता को लेकर दिया स्‍पष्‍टीकरण, जानें क्‍या कहा
गृह मंत्रालय ने अफवाहों को किया खारिज, नागरिकता को लेकर दिया स्‍पष्‍टीकरण, जानें क्‍या कहा

नीलू रंजन, नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी को लेकर फैलायी जा रही अफवाहों और आशंकाओं के बीच गृहमंत्रालय ने आश्वस्त किया है कि किसी को भी नागरिकता साबित करने के लिए परेशान नहीं किया जाएगा। गृह मंत्रालय ने साफ किया है कि एनआरसी के दौरान भी किसी को अपने पिता या दादा का 1971 के पहले के जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। गरीब व अशिक्षित लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए स्थानीय गवाह और समुदाय की ओर से दिये गए सबूतों को भी स्वीकार किया जाएगा।

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स्थानीय गवाह या समुदाय द्वारा दिये प्रमाण-पत्र को भी माना जाएगा सबूत

दरअसल, सीएए और एनसीआर को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैलायी जा रही हैं। लोगों को यह कहकर उकसाया जा रहा है कि एनसीआर लागू होने के बाद उन्हें 1971 के पहले के अपने पिता या दादा का जन्म-प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज देने के लिए कहा जाएगा और दस्तावेज नहीं होने की स्थिति में उन्हें देश छोड़ना होगा। गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ये पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि अभी एनसीआर के नियम ही नहीं बने हैं। लेकिन यह साफ है कि इसके लिए दस्तावेज देने के नियम कड़े नहीं होंगे, बल्कि कई प्रकार के दस्तावेजों में किसी एक के होने पर भी उन्हें नागरिक माना जाएगा। यहां तक कि अशिक्षित और गरीब लोगों के लिए समुदाय की ओर जारी दिये सबूत या पड़ोसी की गवाही को मान्य किया जाएगा।

विज्ञापन के जरिए लोगों में जागरुकता की कोशिश

गौरतलब है कि सरकार भी विज्ञापन के जरिए जागरुकता की कोशिश हो रही है। वहीं सवाल जवाब के रूप में संभवत: भाजपा की ओर से पर्चे भी बांटे जा रहे हैं। इसमें कहा गया है - 'अपना स्वार्थ साधने वालों के बहकावे में न आकर खुद पढ़ें, समझें और फिर इस मामले में विवेक से अपनी समझ बनाएं।' लगभग एक दर्जन सवाल जवाब में सबसे पहले यही बताया गया है कि नागरिकता कानून और एनआरसी अलग- अलग है।

नागरिकता कानून संसद की मंजूरी के बाद लागू हो चुका है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद एनआरसी असम में लागू किया गया है। पूरे देश के लिए एनआरसी की घोषणा अभी नहीं हुई है और उसके लिए नियम प्रक्रिया तय होने बाकी हैं। कई सवाल है, जैसे- क्या एनआरसी से भारतीय मुसलमानों को परेशान होने की जरूरत है? क्या इसे धार्मिक आधार पर लागू किया जाएगा? क्या ऐसे सबूत मांगे जाएंगे जिसे जुटाना मुश्किल होगा? अगर कोई दस्तावेज न हो तो नागरिकता कैसे प्रमाणित की जाएगी आदि।

पर्चे में क्रमवार समझाया गया है कि इसका धर्म से कोई लेना- देना नहीं है और यह एक रजिस्टर जैसा होगा जिसमें हर किसी को नाम दर्ज कराना होगा। आधार का उदाहरण देते हुए बताया गया कि जैसे उसमें रजिस्टर के लिए नाम पता, जन्मतिथि आदि के कुछ प्रमाण देने होते हैं, एनआरसी भी वैसी ही प्रक्रिया होगी। इसके लिए माता- पिता से जुड़े दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।

गवाह को भी दी जाएगी इजाजत

एक सवाल के जवाब में यह भी बताया गया है कि अगर किसी के पास कोई दस्तावेज नहीं हुआ तो गवाह की भी इजाजत दी जा सकती है। कम्यूनिटी वेरिफिकेशन का भी प्रावधान किया जाएगा ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो। हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया कि हर व्यक्ति को किसी न किसी तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। उनके पास वोटर कार्ड हैं। ऐसे किसी भी मामले की पहचान ही काफी होगी। इसी संदर्भ में यह भी बताया गया है कि असम में हुई परेशानी और 19 लाख लोगों को बाहर होने को उदाहरण न मानें। असम घुसपैठ से प्रभावित राज्य रहा है। वह छह साल तक आंदोलन चला और फिर राजीव गांधी के काल में एक समझौता हुआ जिसके आधार पर 1971 को कटआफ डेट मानकर नागरिकता तय करने की बात हुई थी। उसे पूरे देश के लिए उदाहरण मानकर घबराने की जरूरत नहीं है।

पूरे देश में लागू नागरिकता कानून के अनुसार 1987 के पहले भारत में जन्मे सभी लोग यहां के नागरिक है। यही नहीं, जिन लोगों के माता-पिता का जन्म भारत में 1987 के पहले हुआ है, वे भी स्वाभाविक नागरिक माने जाएंगे। यही नहीं, 2004 के पहले जन्में लोगों में किसी यदि माता-पिता में कोई एक भारत का नागरिक हुआ वे भी देश के स्वाभाविक नागरिक हैं। जाहिर है सीएए और एनसीआर से देश के किसी नागरिक को डरने की जरूरत नहीं है।

जानिए क्‍या है CAA

CAA नागरिकता संशोधन कानून 2019, देश के बाहर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोलता है। इन तीनों पड़ोसी देशों से उत्पीड़ित या किसी और कारण से अपना देश छोड़कर भारत में आना चाहते हैं।

CAA में कौन से धर्म शामिल हैं?

CAA में छह गैर-मुस्लिम समुदायों - हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी से संबंधित अल्पसंख्यक शामिल हैं। इन्हें भारतीय नागरिकता तब मिलेगी, जब वे 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर गए हों। पिछली नागरिकता के मानदंड क्या थे? इस संशोधन विधेयक के आने से पहले तक भारतीय नागरिकता के पात्र होने के लिए भारत में 11 साल तक रहना अनिवार्य था। नए बिल में इस सीमा को घटाकर छह साल किया गया है।

एनआरसी क्या है?

एनआरसी (NRC) नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर है, जो भारत से अवैध घुसपैठियों को निकालने की एक प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनआरसी प्रक्रिया हाल में असम में पूरी हुई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधान संसद में घोषणा की थी कि NRC पूरे भारत में लागू किया जाएगा।

एनआसी के तहत क्या है नागरिकता का मापदंड ?

असम में लागू की गई एनआरसी (NRC) के तहत एक व्यक्ति भारत का नागरिक होने के योग्य है यदि वे साबित करते हैं कि या तो वे या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 को या उससे पहले भारत में थे। असम में NRC प्रक्रिया को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को बाहर करने के लिए शुरू किया गया था, जो भारत आए थे। बता दें कि 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।


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