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Book 'वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया: अटल ने कुछ हासिल करने नहीं, कर गुजरने की सोच के साथ संभाली थी सत्ता

पुस्तक वाजपेयी द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया वाजपेयी की जयंती के मौके पर 25 दिसंबर को बाजार में आएगी। संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अनुशासन वाजपेयी की रग-रग में था। वाजपेयी दरअसल समन्वय में विश्वास करने वाले व्यक्ति थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 23 Dec 2020 09:49 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 09:49 PM (IST)
Book 'वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया: अटल ने कुछ हासिल करने नहीं, कर गुजरने की सोच के साथ संभाली थी सत्ता
पहले डेढ़ साल में ही वाजपेयी ने छोड़ दी थी छाप।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जब हर पल अनिश्चतता में घिरा हो तो बड़े व ठोस कदम उठाने के लिए दुस्साहस के स्तर पर साहस की जरूरत होती है। अगर राजनीतिक दांवपेच के बीच कोई यह साहस दिखाए तो मान लेना चाहिए कि व्यक्ति कुछ पाने के बजाय कुछ कर गुजरने की चाहत रखता है।

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पोखरण और लाहौर बस यात्रा जैसे कदमों से दुनिया को संदेश में सफल रहे थे वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत को कई अलग-अलग आईने से देखा गया है, लेकिन यह नहीं झुठलाया जा सकता है कि बतौर प्रधानमंत्री अपने शुरुआती डेढ़ साल में ही उन्होंने पोखरण और लाहौर बस यात्रा जैसी सोच को जमीन पर उतार दिया। यह सबकुछ जानते समझते हुए कि उनकी सरकार बैसाखी पर खड़ी है। कब तक ठहरेगी, कब गिरेगी इसका कोई पता नहीं, लेकिन वह भारत को मजबूत राह पर ले जाने के लिए अडिग दिखे थे।

पुस्तक 'वाजपेयी : द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया' में दिखेंगे पूर्व पीएम के जीवन के अनछुए पहलू

अटल के निजी सचिव रहते हुए उनके जीवन, कार्यपद्धति और सोच के सबसे नजदीकी गवाहों में शामिल रहे शक्ति सिन्हा की नई पुस्तक 'वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया' ने वाजपेयी के इसी पहलू को केंद्र बिंदु बनाया है। वाजपेयी के लगभग छह साल के काल में से उन्होंने शुरुआती डेड़ साल को चुना है, जो राजनीतिक रूप से बहुत अनिश्चित भी था और घटनाओं के लिए लिहाज से अभूतपूर्व भी।

कुछ हासिल करने नहीं कर गुजरने की सोच के साथ संभाली थी सत्ता

सिन्हा ने बहुत खूबसूरती से इस बात को निखारा है कि सक्रिय राजनीति में तीन दशक के संघर्ष के बाद प्रधानमंत्री पद की कुर्सी मिलने के बाद भी वाजपेयी ने यह तय कर लिया था कि वह अपनी सोच के साथ समझौता नहीं करेंगे। बल्कि जो वक्त मिला है, उसमें काम पूरा करेंगे। 13 दिन की सरकार के बाद वाजपेयी जिस सरकार के मुखिया थे, वह भी गठबंधन की बैसाखी पर थी। रोजाना अब गई, तब गई की अटकलों-अफवाहों से गुजर रही थी, लेकिन वाजपेयी ने पोखरण परीक्षण किया। वाजपेयी इसकी कीमत जानते थे। अमेरिका ने पाबंदी लगाई, देश के अंदर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने परीक्षण में लगे वैज्ञानिकों व इंजीनियरों को तो बधाई दी, लेकिन सरकार को नहीं। लेकिन वाजपेयी ने तय कर लिया था कि भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाकर ही दावेदारी में भी खड़ा किया जा सकता है।

कारगिल: अटल ने विश्व को दिया था संदेश, भारत लड़ना भी जानता है और मर्यादा का सम्मान करना भी

पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाना और लाहौर बस यात्रा के कई आलोचक भी हैं, लेकिन इस घटना के बाद कारगिल के वक्त भी एलओसी पार न करने का संयम दिखाकर वाजपेयी ने विश्व बिरादरी को यह संदेश जरूर दे दिया था कि भारत लड़ना भी जानता है और मर्यादा का सम्मान करना भी। शक्ति सिन्हा के अनुसार कारगिल के वक्त प्लान बी और प्लान सी भी था। सेना और वायुसेना की भूमिका जहां अहम थी वहीं, प्लान बी में नेवी अरब सागर की तरफ से पाकिस्तान को बांधने की तैयारी में थी, लेकिन पूरी कोशिश थी कि युद्ध जैसी स्थिति न आने पाए। दरअसल इसे रोककर ही वाजपेयी ने विश्व को यह संदेश दे दिया था कि भारत भागीदार बन सकता है, पाकिस्तान नहीं। अमेरिका में वाजपेयी यह संदेश देने में सफल रहे थे।

अटल की कमजोर कड़ी कांधार की घटना: कई दुर्दात आतंकियों को छोड़ना पड़ा 

हालांकि, 1999 के आखिरी दिनों में जिस तरह कांधार की घटना हुई और कई दुर्दात आतंकियों को छोड़ना पड़ा उसे शक्ति सिन्हा कमजोर कड़ी मानते हैं। जाहिर तौर पर यह देश के सैंकड़ों लोगों की जान बचाने के लिए किया गया था लेकिन पाकिस्तान कहीं न कहीं भारत को एक साफ्ट स्टेट के रूप में पेश करने में सफल हो गया था।

संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अनुशासन वाजपेयी की रग-रग में था

पेंग्विन से प्रकाशित लगभग 300 पेज की किताब में सिन्हा ने छोटे-छोटे प्रसंगों के जरिये कई राजनीतिक घटनाओं का भी जिक्र किया है और यह समझाने की भी कोशिश की है कि वाजपेयी दरअसल समन्वय में विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अनुशासन वाजपेयी की रग-रग में था। सिन्हा की पुस्तक वाजपेयी की जयंती के मौके पर 25 दिसंबर को बाजार में आएगी।


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