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कर्नाटक में उपचुनाव के लिए भाजपा की अभूतपूर्व तैयारी, दोनों सीटों के लिए 12-12 सदस्यीय कमेटियां बनाईं

यूं तो इस महीने के अंत में कुल 15 राज्यों में तीन लोकसभा और 30 विधानसभा सीटों के लिए 30 अक्टूबर को उपचुनाव होने हैं लेकिन भाजपा की तरफ से जो तैयारी कर्नाटक की दो सीटों के लिए देखी जा रही है वह अद्भुत है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 08:05 PM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 08:05 PM (IST)
कर्नाटक में उपचुनाव के लिए भाजपा की अभूतपूर्व तैयारी, दोनों सीटों के लिए 12-12 सदस्यीय कमेटियां बनाईं
हाल ही में बसवराज बोम्मई ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण किया है।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। यूं तो इस महीने के अंत में कुल 15 राज्यों में तीन लोकसभा और 30 विधानसभा सीटों के लिए 30 अक्टूबर को उपचुनाव होने हैं लेकिन भाजपा की तरफ से जो तैयारी कर्नाटक की दो सीटों के लिए देखी जा रही है वह अद्भुत है। भाजपा ने इन दोनों सीटों के लिए 12-12 सदस्यीय कमेटी बनाई है। प्रत्येक कमेटी में चार-चार मंत्री शामिल हैं। यह और बात है कि यहां भी खेमेबाजी दिखी और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र को कमेटी से बाहर रखने की कोशिश हुई। लेकिन कार्यकर्ताओं का दबाव इतना बढ़ गया कि उन्हें शामिल करना ही पड़ा।

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प्रत्येक कमेटी में चार-चार मंत्री भी रखे गए

गौरतलब है कि अभी हाल ही में बसवराज बोम्मई ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण किया है। येदियुरप्पा की जगह आए बोम्मई पर जाहिर तौर पर राजनीतिक दबाव होगा कि वह इन उपचुनावों में जीत हासिल करें। खासतौर पर तब जबकि इसमें से एक सीट हानेगल उनके गृह क्षेत्र में आती है। दूसरी सीट सिदगी है, जहां कांग्रेस काफी मजबूत मानी जा रही है। शायद यही कारण कारण है कि संभवत: उनके निर्देश पर ही पार्टी ने दोनों क्षेत्रों के लिए लंबी चौड़ी कमेटी बना दी है। विवाद तब खड़ा हो गया जब पार्टी के उपाध्यक्ष और येदियुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र को छोड़ दिया गया।

विजयेंद्र को हानेगल कमेटी से जोड़ा गया

बताया जाता है कि पार्टी के कुछ पुराने लोगों को यह इसलिए नागवार गुजरा क्योंकि विजयेंद्र पिछले वर्षों में कुछ ऐसी सीटों पर भी विजय दिला चुके हैं जहां भाजपा वर्षों से बाहर रही थी। बताते हैं कि कार्यकर्ताओं के दबाव और वरिष्ठ नेताओं की निर्देश पर विजयेंद्र को भी हानेगल की कमेटी से जोड़ दिया गया। जानकारों का मानना है कि कमेटी में अभी भी खींचतान हो सकती है और मुख्यमंत्री पर दबाव होगा कि वह खुद इसकी निगरानी करें। ध्यान रहे कि कर्नाटक में 2023 की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव नियत है। इन उपचुनावों के नतीजों से भाजपा सरकार की सेहत पर तो असर नहीं पड़ेगा लेकिन मुख्यमंत्री के लिए यह जीत जरूरी होगी।


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