सीएए के मुद्दे पर भाजपा की चुप रहने की रणनीति रही सफल, असम का किला सुरक्षित रखने में कामयाब
कांग्रेस ने उसी सीएए को मुद्दा बनाकर भाजपा को वहां घेरने की कोशिश की लेकिन भाजपा ने ही बाजी मार ली। सीएए पर भाजपा ने जरूर रणनीतिक चुप्पी साध ली थी लेकिन कांग्रेस ने इसे तूल ही नहीं दिया बल्कि इसे रद करने की घोषणा भी की थी।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। कुछ डेढ़ साल पहले की बात है जब केंद्र ने नागरिकता संशोधन कानून पारित किया था और राजनीतिक प्रश्रय के साथ असम में एक आंदोलन खड़ा हुआ था। अपर असम में सीएए के खिलाफ सबसे पहले विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था और हालात ऐसी होगी गई थी कि हेमंत बिस्व सरमा समेत कोई भाजपा का नेता वहां जाने की स्थिति में नहीं था। कांग्रेस ने उसी सीएए को मुद्दा बनाकर भाजपा को वहां घेरने की कोशिश की, लेकिन भाजपा ने ही बाजी मार ली। सीएए पर भाजपा ने जरूर रणनीतिक चुप्पी साध ली थी, लेकिन कांग्रेस ने इसे तूल ही नहीं दिया बल्कि इसे रद करने की घोषणा भी की थी। ऐसे में असम की जीत को एनआरसी और सीएए पर भाजपा की जीत के रूप में भी देखा जा रहा है।
भाजपा असम के किले को सुरक्षित रखने में सफल, सीएए पर भाजपा की रणनीतिक चुप्पी काम आई
कांग्रेस का बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ के साथ रणनीतिक गठजोड़ और सीएए को मुद्दा बनाने की कोशिशों के बावजूद भाजपा अपने असम के किले को सुरक्षित रखने में सफल रही। सीएए के बाद सबसे पहले हिंसक प्रदर्शनों को झेल चुकी असम में भाजपा की इस पर रणनीतिक चुप्पी काम आई। लंबे समय से घुसपैठियों से परेशान असम में संशोधित एनआरसी लाकर असमी संस्कृति के संरक्षक के रूप में खुद को स्थापित करने में सफल रही।
असम में एनडीए को पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ सीटें कम मिलीं
असम में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को इसबार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कुछ सीटें जरूर कम मिली हैं, लेकिन इसके नेताओं को इसकी आशंका पहले से थी। लोअर असम में लगभग एक दर्जन ऐसी सीटों का समीकरण कांग्रेस और एआइयूडीएफ के पक्ष में चला गया था, जो पिछली बार भाजपा ने जीती थी। पूरे उत्तर पूर्व में राजग के संयोजक और इस बार के संभावित मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा का लोगों के साथ सीधा संवाद तो अहम रहा ही।
सीएए विरोधियों के आरोपों को गलत साबित करने में भाजपा रही सफल
खास्ताहाल नामघरों को सरकारी मदद देकर खड़ा करने और शंकरदेव की परंपरा को पुनर्जीवित करने की सार्थक कोशिशें भी काम आईं। सीएए विरोधियों का सबसे बड़ा आरोप यही था कि इससे बांग्लादेश से डेढ़ करोड़ से अधिक हिंदू असम में नागरिकता ले लेंगे और असमी संस्कृति सदा के लिए खतरे में आ जाएगी। जाहिर है भाजपा जनता के सामने इन आरोपों को गलत साबित करने में सफल रही।
सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाकर भाजपा महिलाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रही
इसके साथ ही भाजपा की सरकारी योजनाओं के माध्यम से विभिन्न वर्गों तक पहुंचने की कोशिशें भी रंग लाई। छह महीने पहले असम सरकार ने 22 लाख महिलाओं को 830 रुपये प्रति महीना की सहायता देनी शुरू की और उनके खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर भी किए। चुनाव में भाजपा ने इस मासिक सहायता को बढ़ाकर तीन हजार रुपये करने और इसे 30 लाख परिवारों तक पहुंचाने का वायदा किया। जाहिर है भाजपा राज्य में महिलाओं के एक बड़े वर्ग को अपने साथ जोड़ने में सफल रही।
चाय बगान के मजदूरों को भाजपा अपनी ओर खींचने में सफल रही
इसके अलावा असम चुनाव में चाय बगान के मजदूर बड़ा रोल अदा करते रहे हैं। हमेशा से कांग्रेस के समर्थक रहे चाय बगान मजदूरों ने पहली बार पिछले चुनाव में भाजपा का साथ दिया था। इस बार इस वोट बैंक को वापस लाने के लिए कांग्रेस ने एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया। यहां तक मजदूरों की प्रतिदिन की न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाकर 365 रुपये करने का वादा भी कर दिया इसके अलावा कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी खुद चाय बगान में चाय पत्ती तोड़ने से लेकर मजदूरों के घर में खाना खाने तक पहुंच गई थीं। भाजपा ने पिछले पांच साल में चाय बगान के मजदूरों के लिए किए गए विकास कार्यों को दिखाया और उन्हें यह समझाने में सफल रही कि कांग्रेस पुराने वादों के लिए वादे कर रही है, लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाएगी।