कांग्रेस पर दबाव बढ़ाएगा बिहार में भाजपा का 'लचीला' फार्मूला
बिहार में एनडीए गठबंधन के लिए भाजपा का लचीला सियासी फार्मूला विपक्षी गोलबंदी की कसरत में जुटी कांग्रेस पर भी साथी दलों के लिए दिल बड़ा करने का दबाव बढ़ाएगा।
नई दिल्ली, संजय मिश्र। बिहार में एनडीए गठबंधन के लिए भाजपा का लचीला सियासी फार्मूला विपक्षी गोलबंदी की कसरत में जुटी कांग्रेस पर भी साथी दलों के लिए दिल बड़ा करने का दबाव बढ़ाएगा।
कांग्रेस भले ही उत्तर प्रदेश और बिहार में इस राजनीतिक हैसियत में नहीं है मगर कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना ही नहीं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान और पंजाब जैसे सूबों में भी विपक्षी खेमे के उसके संभावित सहयोगी सीट हासिल करने का दबाव बनाने से गुरेज नहीं करेंगे।
विपक्षी दलों को एकजुट करने की इस बड़ी चुनौती के बावजूद कांग्रेस उम्मीद कर रही कि 2019 के चुनावी संग्राम में गठबंधन से ही सियासी दिशा तय होना देख साथी दल भी अडि़यल रुख दिखाने से परहेज करेंगे।
गठबंधन को लेकर भाजपा की बेचैनी
बिहार में एनडीए के बीच सीट बंटवारे का ऐलान करने में भाजपा की दिखाई तत्परता में सियासत पढ़ रहे कांग्रेस के वरिष्ठ रणनीतिकार ने अमित शाह, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के संयुक्त ऐलान के तत्काल बाद कहा कि अब गठबंधन को लेकर भाजपा की बेचैनी साफ दिख रही है।
उन्होंने कहा कि बेशक विपक्षी खेमे के दल भाजपा के बिहार में दिखाए लचीलेपन का उदाहरण देकर कांग्रेस से मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे राज्यों में भी सीट हासिल करने का दबाव बनाएंगे जहां उनका ज्यादा असर नहीं है। मगर इसका एक सियासी संदेश साफ है कि भाजपा ने भी अब कबूल कर लिया है कि 2019 के करवट की दिशा गठबंधन ही तय करेगा।
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने विपक्षी दलों को साथ लेकर चलने के बढ़े दबाव के बारे में पूछे जाने पर कहा कि गठबंधन में हकीकत की धरातल पर गुंजाइश का विकल्प हमेशा रहता है। उन्होंने कहा कि दबाव कांग्रेस पर नहीं बल्कि विपक्षी एकता का भय भाजपा पर साफ दिख रहा।
महागठबंधन में सीटों को लेकर तकरार
लोजपा के एनडीए का हिस्सा बने रहने के बाद राजद ही नहीं कांग्रेस पर भी महागठबंधन में सीटों को लेकर लचीला रुख अपनाने का दबाव रहेगा। मुकेश सहनी की वीआइपी पार्टी के रविवार को महागठबंधन में शामिल होने को देखते हुए यह बात और साफ हो गई है।
संकेत हैं कि सहनी के लिए एक लोकसभा सीट छोड़ी जाएगी तो रालोसपा को चार सीटें मिलनी तय है। माकपा और भाकपा के लिए भी एक-एक सीट छोड़ने की तैयारी है। कांग्रेस भी 12 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। ऐसे में सीट बंटवारे का मामला विपक्षी खेमे में भी कम दिलचस्प नहीं होगा।
बसपा के रुख से कांग्रेस चिंतित
विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की चिंता खासतौर पर बसपा को लेकर है जो उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाने की एवज में कई सूबों में उसे सीट चाहती है। जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत हों हरियाणा-छत्तीसगढ जैसे सूबों के पार्टी के उसके नेता कोई भी बसपा के लिए सीट छोड़ने के पक्ष में नहीं है।
यही वजह रही कि हाल के विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा से कांग्रेस का तीन राज्यों में तालेमल नहीं हुआ। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तब मध्यप्रदेश की चुनावी सभा में कांग्रेस को गठबंधन के लिए दिल बड़ा करने की नसीहत भी दी थी। मायावती ने भी गठबंधन नहीं होने का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ा था।
महाराष्ट्र में एनसीपी भी कांग्रेस से इस बार कुछ ज्यादा सीट की अपेक्षा कर रही है। तो कर्नाटक में जनतादल सेक्यूलर भाजपा के खिलाफ खड़ा होने की सियासी कीमत वसूलने की पूरी कोशिश में है। विधानसभा चुनाव में सफाए के बाद कांग्रेस के लिए तेलंगाना में टीडीपी को साथ रखने की सिरदर्दी से रूबरू होना पड़ेगा।
चंद्रबाबू नायडू विपक्षी दलों को राहुल गांधी के साथ जोड़ने में जिस तरह सूत्रधार की भूमिका निभा रहे उसे देखते हुए टीडीपी से तेलंगाना में किनारा करना आसान नहीं होगा। जबकि टीडीपी के साथ गठबंधन को विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हुए नुकसान की बड़ी वजह माना जा रहा है।