मिशन कर्नाटक: फतह के लिए भाजपा का ब्लू प्रिंट तैयार
गुजरात के बाद अब भाजपा कर्नाटक फतह की रणनीति को अमली जामा पहनाने में जुट गई है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली । गुजरात के बाद अब भाजपा कर्नाटक फतह की रणनीति को अमली जामा पहनाने में जुट गई है। गुजरात से परे हालांकि यहां भाजपा के पास बीएस येद्दयुरप्पा जैसा प्रभावी और मुखर नेतृत्व भी है और सत्ताधारी कांग्रेस के खिलाफ गिनाने को स्थानीय मुद्दे भी हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका अहम होगी। तय किया गया है कि मार्च-अप्रैल में संभावित चुनाव घोषणा से पहले ही वह प्रदेश के सभी सात चुनावी जोन में बड़ी रैलियों को संबोधित करेंगे।
मोदी-शाह संग योगी पर भी जिम्मा
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विशेष जिम्मेदारी होगी और माना जा रहा है कि योगी दो दर्जन से ज्यादा सभाएं कर सकते हैं। दक्षिण के अपने इस पुराने प्रवेश द्वार में भाजपा इतनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है कि धमक सुदूर दक्षिण तक जाए।
कई समीकरण भाजपा के पक्ष में
गुजरात के नतीजों ने यूं तो कांग्रेस को थोड़ा उत्साहित कर दिया है, लेकिन वह यह भी जानती है कि 2013 और 2018 (यानी जब फिर से चुनाव होना है) के कर्नाटक की राजनीति में जमीन आसमान का फर्क होगा। 2013 में येद्दयुरप्पा की अलग पार्टी के कारण भाजपा का अपना ही वोट टूट गया था। वहीं मोदी फैक्टर की लहर 2014 के बाद आई है। इस बार वह सबकुछ भाजपा के पक्ष में है। इतना ही नहीं भाजपा तू डाल डाल मैं पात पात की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार कोई भी पेंच ढीला नहीं छोड़ा जाएगा। कांग्रेस की ओर से परोक्ष तौर पर लिंगायत समुदाय को स्वतंत्र धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को हवा मिली। लेकिन कांग्रेस के पास खुद भाजपा मुख्यमंत्री उम्मीदवार येद्दयुरप्पा के मुकाबले का कोई लिंगायत चेहरा नहीं हैं। यानी लिंगायत मुख्यमंत्री को हराने के लिए दूसरे समुदाय को वोट देना खुद लिंगायत कितना पसंद करेंगे यह रोचक है। भाजपा यह याद दिलाने से नहीं चूकेगी।
शाह की रणनीति
कुछ महीने पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह वोकालिग्गा समुदाय के मठ आदिचुनचुनगिरी गए थे। वहां उन्होंने स्वामी निर्मलानंद के साथ आधा दिन बिताया था। भाजपा के लिए कमजोर और वोकालिग्गा नेता एच डी देवेगौड़ा के मजबूत गढ़ मैसूर क्षेत्र के लिए शाह की रणनीति भी कुछ कहती है। इन सबसे उपर खुद येद्दयुरप्पा तीसरी बार पूरे कर्नाटक का दौरा पूरा करने वाले हैं। उनके दौरे के केंद्र में ओबीसी और दलित हैं। दौरे में वह खुद दलितों के ही घर नास्ता करते हैं। बल्कि यह नियम भी बनाया है कि कुछ अंतराल पर उन दलित और ओबीसी परिवारों को अपने घर भोजन कराते हैं जिनके यहां खुद खाया था।
दो दर्जन रैलियां करेंगे योगी
रणनीति स्पष्ट है कि जातिगत समीकरण द्रुरुस्त रहे और किसानों की आत्महत्या, कानून व्यवस्था जैसे स्थानीय मुद्दे हावी रहें। टीपू सुल्तान जैसे विवाद अभी ठंडे नहीं पड़े हैं। यानी कांग्रेस की ओर से ज्यादा शोर मचा तो उसका उल्टा प्रभाव भी हो सकता है। जबकि योगी आदित्यनाथ का दौरा अभी से शुरू हो गया है। दो दिन पहले ही वह कर्नाटक के दौरे पर थे। माना जा रहा है कि चुनाव के दौरान भी वह दो दर्जन रैलियां कर सकते हैं। ध्यान रहे कि गुजरात मे भी योगी ने 35 रैलियां की थी। कर्नाटक में उत्तर प्रदेश की आबादी के साथ साथ हिंदुत्व को लेकर योगी का नजरिया भी लोगों को आकर्षित करता है। इस सबके बीच ठोस रणनीति के साथ मार्च अप्रैल तक खुद प्रधानमंत्री छह से सात सभाएं कर सकते हैं। येदयुरप्पा की परिवर्तन यात्रा 28 जनवरी को खत्म हो रही है। उस दिन भी प्रधानमंत्री वहां मौजूद होंगे।
कितना काम आएगा राहुल गांधी का करिश्मा
दूसरी ओर कांग्रेस को गुजरात से थोड़ी संजीवनी जरूर मिली है लेकिन कर्नाटक में अंदरूनी खींचतान का आलम यह रहा है कि येद्दयरप्पा की तर्ज पर ही यात्रा की रूपरेखा तो बनी लेकिन अलग अलग नेताओं को संतुष्ट करने की कोशिश में बिखर गई। अब यह देखना होगा कि राहुल गांधी का करिश्मा सिद्धरमैया को कितना बल देता है।