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छत्तीसगढ़ में भाजपा ने उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बना खेला आदिवासी दांव

कांग्रेस ओबीसी कार्ड पर ही टिके रहना चाहती है। इसका कारण यह है कि प्रदेश में आदिवासियों से ज्यादा ओबीसी वर्ग की आबादी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 08:51 PM (IST)Updated: Sat, 09 Mar 2019 08:51 PM (IST)
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बना खेला आदिवासी दांव
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बना खेला आदिवासी दांव

रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने सांसद विक्रम उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर लोकसभा चुनाव के लिए आदिवासी दांव खेला है, जबकि कांग्रेस ओबीसी कार्ड पर ही टिके रहना चाहती है। इसका कारण यह है कि प्रदेश में आदिवासियों से ज्यादा ओबीसी वर्ग की आबादी है।

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दूसरी तरफ, कांग्रेस का यह भी मानना है कि प्रदेश में सरकार बनने के बाद आदिवासियों को हर तरह से संतुष्ट किया गया है। मंत्रिमंडल में तीन आदिवासी मंत्री हैं। बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण के अलावा नए मध्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष भी आदिवासी समाज से ही बनाया गया है।

कांग्रेस हाईकमान ने भी अब तक प्रदेश अध्यक्ष बदलने को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है। उसका भी मानना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने पर ओबीसी वोट बैंक प्रभावित हो सकता है।

आदिवासी क्षेत्र में करारी हार के बाद भाजपा ने किया फोकस

गत माह विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा का आदिवासी सीटों पर सूपड़ा साफ हुआ, उसे देखकर ही संगठन ने आदिवासी नेता को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी है। बस्तर संभाग से भाजपा ने पहली बार आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, ताकि उसे लोकसभा चुनाव में बस्तर संभाग की दो लोकसभा सीट बस्तर व कांकेर में सीधे फायदा हो।

संगठन का मानना है कि आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष का प्रभाव आदिवासी बाहुल्य सरगुजा लोकसभा सीट पर भी पड़ेगा। इसके अलावा संगठन का यह भी मानना है कि बाकी आठ लोकसभा सीटों पर भी आदिवासी वोटरों का प्रभाव है। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी लगभग 82 लाख है।

कांग्रेस पहले ही खेल चुकी है दांव

भाजपा के आदिवासी दांव से पहले ही कांग्रेस आदिवासी वोटरों को साधने को लेकर दांव खेल चुकी है। बस्तर के एक आदिवासी विधायक कवासी लखमा को मंत्री बनाया, तो दूसरा मंत्री आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग से डॉ. प्रेमसाय सिंह को बना दिया। बचा मैदानी इलाका, तो यहां से भी अनिला भेंडि़या को मंत्री बनाकर आदिवासियों को खुश करने की कोशिश की गई है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अब तक केवल तीन प्राधिकरणों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्ति की है, तीनों के अध्यक्ष आदिवासी ही बनाए हैं। यह दांव भी लोकसभा चुनाव के चलते खेला गया, क्योंकि अभी बाकी 126 निगम, मंडल, आयोग व प्राधिकरणों की कुर्सियां खाली रखी हैं। आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए ही कांग्रेस सरकार ने बस्तर संभाग के लोहांडीगुड़ा तहसील के 10 गांवों की जमीन टाटा स्टील से लेकर वापस किसानों और आदिवासियों को लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि आदिवासी कांग्रेस सरकार से खुश हैं। अब पार्टी ओबीसी वोट बैंक को टूटने नहीं देना चाहती, क्योंकि इनकी आबादी लगभग 1.20 करोड़ है। मुख्यमंत्री बघेल खुद ओबीसी वर्ग से हैं। ओबीसी वर्ग से ही मंत्री ताम्रध्वज साहू भी हैं।

भगत को पीसीसी अध्यक्ष बनाने की हुई थी चर्चा

सरगुजा संभाग के सीतापुर विधायक अमरजीत भगत को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा हुई थी। भगत आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। खुद मुख्यमंत्री व पीसीसी अध्यक्ष बघेल ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भगत को पीसीसी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया रखा, लेकिन सरगुजा संभाग के विधायकों का एक धड़ा नहीं चाहता कि भगत को पीसीसी अध्यक्ष बनाया जाए। इस कारण मामला अटक गया।

कांग्रेस का दूसरा खेमा भी नहीं चाहता है कि बघेल को लोकसभा चुनाव के पहले पीसीसी अध्यक्ष पद से हटाया जाए। इस खेमे के नेताओं का कहना है कि बघेल के लिए चुनौती है कि वे विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत दिलाएं। दरअसल, इस खेमे का मानना है कि अगर, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा, तो हाईकमान के सामने बघेल की छवि खराब होगी।


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