छत्तीसगढ़ः विधायकों की बडी टीम को खुश करने के लिए कानून बना रही सरकार, यह पद देने की तैयारी
संसदीय कार्य मंत्री ने विधानसभा में विधानमंडल सदस्यों के निरर्हता संबंधी संशोधन विधेयक पेश किया है। विधेयक को मंजूरी मिली तो निगम मंडलों के 38 पद लाभ के पद के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में बंपर जीत कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गई है। मंत्रियों की संख्या निश्चित है और संसदीय सचिवों का विरोध कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए कर चुकी है। 12 तो मंत्री बन गए पर हर जिले में कई कद्दावर विधायक खाली हाथ रह गए। असंतोष को कम करने के लिए पहली बार बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण के अध्यक्षों का पद मुख्यमंत्री की बजाए स्थानीय विधायकों को देना तय किया गया। इसके बाद भी संकट बरकरार है।
लोकसभा चुनाव तक तो यही कहा जा रहा है सब मिलकर लोकसभा जीत लें फिर देखेंगे। लेकिन लोकसभा के बाद दबाव बढ़ेगा जिससे निपटना आसान नहीं होगा। सरकार यह जानती है इसीलिए अब लाभ के पद के दायरे से निगम-मंडलों के अध्यक्षाों के पद को बाहर करने की तैयारी चल रही है।
संसदीय कार्यमंत्री ने पेश किया विधेयक
संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने विधानसभा में विधानमंडल सदस्यों के निरर्हता संबंधी संशोधन विधेयक पेश किया है। इस विधेयक को मंजूरी मिली तो निगम मंडलों के 38 पद लाभ के पद के दायरे से बाहर हो जाएंगे। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार इन पदों पर विधायकों को समायोजित करने जा रही है। सरकार बनने के बाद संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर भी विचार विमर्श किया गया। लोकसभा चुनाव के बाद सरकार संसदीय सचिवों की नियुक्ति भी कर सकती है।
दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने 21 संसदीय सचिव नियुक्त किए जो लाभ के पद के दायरे में आ गए। यहां भाजपा सरकार के संसदीय सचिवों को लेकर कांग्रेस हाईकोर्ट में गई। अब निगम मंडल में नियुक्ति से पहले कानून में संशोधन किया जा रहा है ताकि पद मिलने के बाद विधायक अयोग्य न घोषित हो जाएं।
क्या है लाभ का पद?
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ए) और 191 (1) (ए) में लाभ के पद का उल्लेख है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 9 (ए) में भी इसे परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक कोई सांसद या विधायक कोई अन्य सरकारी पद ग्रहण नहीं कर सकता। मंत्री के पद को इससे अलग रखा गया है। लाभ का पद वह पद है जिसमें सरकार ने नियुक्ति की हो। जिसमें वेतन या पारिश्रमिक मिलता हो।
सरकार बना सकती है कानून
लाभ के पद को लेकर बड़ी बहस चल रही है। संविधान में इसे ठीक से परिभाषित नहीं किया गया। कई बार तो राज्य सरकारों ने बैक डेट से कानून लाकर विधायकों को दिए गए पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर किया है। अगर कोई विधायक या सांसद लाभ के पद के दायरे में आता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
इन पदों को दायरे से बाहर करेंगे
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक मर्यादित रायपुर के अध्यक्ष, सभी जिला सहकारी बैंकों, रायपुर विकास प्राधिकरण, छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य आयोग, अटल नगर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष समेत कुल 38 निगम मंडलों को लाभ के पद के दायरे से बाहर किया जाएगा। यह कानून 1 जनवरी 2019 से लागू माना जाएगा।