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बिहार के कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस के लिए तमिलनाडु में बढ़ाई मुश्किलें, नहीं मिलेगी ज्‍यादा सीट

गठबंधन के साथी दल भी अब कांग्रेस की राजनीतिक क्षमता का नये सिरे से आकलन करने लगे हैं। यूपीए में कांग्रेस के सबसे पुराने साथी द्रमुक ने कांग्रेस को तमिलनाडु के अगले चुनाव में ज्यादा सीटों की उम्मीद नहीं पालने का संकेत दे दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 08:37 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 08:37 PM (IST)
बिहार के कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस के लिए तमिलनाडु में बढ़ाई मुश्किलें, नहीं मिलेगी ज्‍यादा सीट
द्रमुक के प्रमुख स्टालिन और कांग्रेस नेता राहुल गांधी (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के लिए चौतरफा सियासी चुनौतियां खडी कर दी है। हार के बाद पार्टी संगठन की हालत और दशा-दिशा को लेकर एक ओर जहां अंदरूनी घमासान तेज हो रहा है, वहीं दूसरी ओर गठबंधन के साथी दल भी अब उसकी राजनीतिक क्षमता का नये सिरे से आकलन करने लगे हैं। यूपीए में कांग्रेस के सबसे पुराने साथी द्रमुक ने बिहार में कमजोर स्ट्राइक रेट को देखते हुए कांग्रेस को तमिलनाडु के अगले चुनाव में ज्यादा सीटों की उम्मीद नहीं पालने का संकेत दे दिया है। पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि द्रमुक प्रमुख स्टालिन ने अनौपचारिक राजनीतिक चर्चाओं के दौरान इस आशय के संकेत दिए कि तमिलनाडु के चुनाव में वे कांग्रेस को 20-25 सीटों से अधिक देने के मूड में नहीं है। 

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द्रमुक ने अगले साल चुनाव में अधिक सीट की उम्मीद नहीं करने के कांग्रेस को दे दिए संकेत

अगले साल मई में होने वाले चुनाव में द्रमुक सत्ता में वापस आने की प्रबल दावेदार मानी जा रही है और इसीलिए स्टालिन बिहार में राजद जैसा जोखिम शायद ही लेंगे। खासतौर पर यह देखते हुए कि दो पुराने धुर राजनीतिक विरोधी करुणानिधि और जयललिता के देहांत के बाद यह पहला चुनाव होगा जिसमें सूबे की सियासी स्थिरता की नई दिशा तय होनी है। स्टालिन के इन संकेतों पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनकी सियासी सतर्कता को बेबुनियाद नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि खास राजनीतिक आधार के बिना ही भाजपा अन्नाद्रमुक या स्थानीय सुपर स्टारों के जरिये तमिलनाडु की सियासत में प्रभाव बनाए रखना चाहती है। ऐसे में गठबंधन समेत चुनावी राजनीति से जुडी इन चुनौतियों के हिसाब से स्टालिन के लिए नया रणनीतिक नजरिया रखना अपरिहार्य है। 

हाईकमान के समर्थक नेता सिब्बल पर निशाना साध अंदरूनी घमासान बढाने में जुटे

बिहार की हार के इस प्रतिकूल असर को थामना कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं रह गया क्योंकि अंदरूनी असंतोष को लेकर पार्टी में घमासान का रास्ता खुलता जा रहा है। पार्टी की दुर्गति पर सवाल उठाने वाले वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के मुददों पर चर्चा की बजाय हाईकमान के समर्थक नेता उलटे असंतुष्ट नेताओं को ही निशाना बना रहे हैं। 

अधीर रंजन चौधरी ने सिब्बल पर बोला हमला

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो सिब्बल पर परोक्ष हमला करते हुए कहा कि ऐसे नेता दूसरी पार्टी में शामिल हो जाएं या अपनी नई पार्टी बना लें। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने अपने टवीट में कहा कि सिब्बल दिल्ली के नेता हैं और वे प्रदेश कांग्रेस में आएं तो उन्हें काम की जिम्मेदारी दी जाएगी। हाईकमान समर्थक नेताओं के ऐसे तीखे व्यंग्य वाणों से साफ है कि कांग्रेस संगठन की कमजोरी को लेकर सिब्बल की शुरू की गई बहस पर घमासान का सिलसिला अगले कुछ दिनों में और तेज होगा।


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