Move to Jagran APP

भविष्य के लिहाज से अपनी चौहद्दी दुरुस्त करने में जुटे बिहार के दल, छोटी पार्टियों की बढ़ेगी अहमियत

बिहार में भी कई प्रयोग हो चुके हैं- पहले राजग गठबंधन फिर महागठबंधन और फिर से राजग की सरकार... बिहार की सियासत में देखा जाए तो भाजपा जदयू और राजद मुख्य खिलाड़ी रहे हैं जबकि छोटे दलों का खेमा बदलता रहा है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 01 Aug 2021 08:21 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 12:07 AM (IST)
उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी कई प्रयोग हो चुके हैं...

नई दिल्ली, जेएनएन। उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी कई प्रयोग हो चुके हैं- पहले राजग गठबंधन, फिर महागठबंधन और फिर से राजग की सरकार... बिहार की सियासत में देखा जाए तो भाजपा, जदयू और राजद मुख्य खिलाड़ी रहे हैं जबकि छोटे दलों का खेमा बदलता रहा है। मौजूदा वक्‍त में देखें तो गठबंधन सही चल रहा है लेकिन धीरे-धीरे इन तीनों प्रमुख दलों ने अपनी चौहद्दी जिस तरह मजबूत करनी शुरू की है वह भविष्य की आहट देने लगा है।

loksabha election banner

छोटे दलों की अहमियत बढ़ी

कमोबेश इन दलों में यह कवायद महसूस की जा रही है कि बड़े दलों के साथ हिस्सेदारी और परिणामस्वरूप आने वाले दबाव के बजाय छोटे दलों के समूह के साथ भविष्य की राह गढ़ी जानी चाहिए। तीनों दलों के नेतृत्व पर ध्यान देने की जरूरत है। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद हैं और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, अगड़ी जाति से। उन्होंने हाल में इस्तीफे की पेशकश की थी लेकिन उन्हें मना लिया गया।

जातिगत सम‍ीकरण हल करने पर भी जोर 

नीतीश कुमार जहां खुद मुख्यमंत्री हैं। जदयू के प्रदेश संगठन की कमान वशिष्ठ नारायण सिंह की जगह उमेश कुशवाहा के हाथों में दी गई थी। अब पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद अगड़ी जाति से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को सौंपी गई। भाजपा ने चुनाव से पहले संजय जायसवाल के हाथों संगठन की कमान दी थी और उपमुख्यमंत्री पद पर अति पिछड़ी जाति की रेणु देवी और ओबीसी से आने वाले तारकिशोर प्रसाद को बिठाया था।

केंद्र ने भी रखा ख्‍याल 

बिहार के कोटे से केंद्रीय मंत्रियों की बात की जाए तो हाल ही में गिरिराज सिंह को ग्रामीण विकास जैसा अहम मंत्रालय दिया गया। गिरिराज भी उसी प्रभावी भूमिहार जाति से आते हैं जिससे ललन सिंह। नित्यानंद राय के रूप में भी बिहार से केंद्रीय कैबिनेट में प्रतिनिधित्व है और और अश्विनी चौबे के रूप मे ब्राह्मण चेहरा भी शामिल है। जबकि जदयू के कोटे से आरसीपी सिंह ओबीसी से आते हैं।

सियासी भविष्य को लेकर मंथन  

रोचक यह है कि अब तक सिर्फ एक मंत्री पद के प्रस्ताव से इनकार कर रहा जदयू इस बार क्यों माना। एक अटकल यह भी है कि लोजपा के खाते से आए पशुपति पारस के मंत्री बनाए जाने में भी जदयू की भूमिका रही। सूत्रों की मानी जाए तो फिलहाल बिहार में राजग सरकार सही दिशा और गति से चल रही है लेकिन भविष्य के लिए सभी दलों में मंथन तेज है। अब तक यह गणित भी काम करता रहा है कि जिधर दो दल मिल जाएंगे सरकार उसी की बनेगी लेकिन अब तीनों दल इससे आगे बढ़ना चाहते है।

यही वजह है कि आने वाले दिनों में हर दल की ओर से छोटे दलों को अपनी ओर खींचने की ज्यादा कोशिश होगी। जदयू संगठन में हुआ नेतृत्व परिवर्तन भी इसी लिहाज से देखा जा रहा है। बताने की जरूरत नहीं है कि बिहार चुनाव से पहले जदयू से बागी हुए नेता जीतन राम मांझी की वापसी हो गई थी। बाद में कभी राजग तो कभी संप्रग में छलांग लगाते रहे उपेंद्र कुशवाहा भी जदयू के हिस्सा हो गए। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.