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Jammu & Kasmir: मोदी सरकार का बड़ा नीतिगत फैसला संभव, चर्चाओं का बाजार गर्म

कश्मीर घाटी में आतंकी खतरे सुरक्षा तैयारियों और आगे की रणनीति पर विचार करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को उच्च स्तरीय बैठक की।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 09:07 PM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 11:59 PM (IST)
Jammu & Kasmir:  मोदी सरकार का बड़ा नीतिगत फैसला संभव, चर्चाओं का बाजार गर्म
Jammu & Kasmir: मोदी सरकार का बड़ा नीतिगत फैसला संभव, चर्चाओं का बाजार गर्म

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कश्मीर घाटी में आतंकी खतरे, सुरक्षा तैयारियों और आगे की रणनीति पर विचार करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को उच्च स्तरीय बैठक की। संसद भवन स्थित अमित शाह के दफ्तर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और गृह सचिव राजीव गौबा के साथ लगभग दो घंटे तक बैठक चली। अमित शाह की इस बैठक को अहम इसीलिए माना जा रहा है क्योंकि सोमवार को कैबिनेट की भी बैठक बुलाई गई है। सामान्य रूप से बुधवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक को सोमवार को बुलाए जाने को कश्मीर से जोड़कर देखा जा रहा है। उधर, रविवार देर शाम श्रीनगर में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। 

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वैसे तो हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए अमित शाह के साथ अजीत डोभाल और राजीव गौबा की बैठक के बारे में कुछ नहीं बताया जा रहा है। लेकिन बैठक के बाद फाइलों के साथ अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार के अमित शाह से मिलने के लिए पहुंचने को लेकर माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई बड़ा नीतिगत फैसला भी हो सकता है। ज्ञानेश गृह मंत्रालय में कश्मीर मामले देखते हैं।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार बैठक में घाटी में सुरक्षा की मौजूदा स्थिति, आतंकी हमले के खतरे की खुफिया रिपोर्ट और पाकिस्तान से आतंकियों की घुसपैठ की हो रही कोशिश से लेकर 35ए और 370 के मुद्दे पर राजनीतिक दलों की बयानबाजी व गोलबंदी की कोशिशों पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया। इसके साथ ही आतंकी खतरे के अनुरूप सुरक्षा तैयारियों की भी समीक्षा की गई।

भारी संख्‍या में फोर्स की तैनाती से लोगों में डर 
नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्‍दुल्‍ला के घर रविवार को सर्वदलीय बैठक हुई। इसमें सभी प्रमुख पार्टियों ने हिस्‍सा लिया। सर्वदलीय बैठक के बाद फारूख अब्‍दुल्‍ला ने कहा कि कश्‍मीर में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। कश्‍मीर के लिए सबसे बुरा वक्‍त है। कश्‍मीर का विशेष दर्जा बचाए रखने के लिए हम साथ आए हैं। पहले कभी समय से पहले अमरनाथ यात्रा खत्‍म नहीं हुई। भारी संख्‍या में फोर्स की तैनाती से घाटी के लोग घबराए हुए हैं। भारत-पाकिस्‍तान के बीच तनाव से दोनों देशों को नुकसान होगा। सरकार कोई ऐसा कदम नहीं बढ़ाए जिससे तनाव बढ़े। जम्‍मू-कश्‍मीर का विशेष दर्जा नहीं छीना जाना चाहिए।   

पुंछ में आरएएफ की अतिरिक्‍त कंपनियों की तैनाती 
कश्मीर में जारी गहमागहमी के बीच पुंछ में जिला प्रशासन ने रैपिड एक्शन फोर्स (Rapid Action Force) की अतिरिक्त कंपनियों को तैनात किया है। यह फैसला जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी एक एडवाइजरी के बाद आया है, जिसमे अमरनाथ यत्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया है।

अभूतपूर्व कदमों से विपक्ष सहमा 
विपक्ष ने सरकार को जम्मू-कश्मीर में आनन-फानन में कोई कदम उठाने को लेकर सचेत किया है। विपक्षी दलों ने अमरनाथ यात्रा को बीच में रद करने से लेकर जम्मू-कश्मीर को लेकर एनडीए सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों और वहां के राजनीतिक दलों में मची अफरातफरी के मुद्दे को संसद में उठाने का फैसला भी किया है। कांग्रेस समेत विपक्षी दल सोमवार को इस पर सरकार से स्पष्टीकरण भी मांगेंगे। कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और वामपंथी दल संसद में सरकार से जम्मू-कश्मीर पर राजनीतिक दलों को भरोसे में लेने का आग्रह भी करेंगे।

10 से अधिक पर्यटक, श्रद्धालु और छात्र वापस लौटे  
जम्मू कश्मीर के गृह विभाग द्वारा दूसरे राज्य के पर्यटकों और अमरनाथ यात्रियों को वापस लौटने के आदेश के बाद रविवार को भी बड़ी संख्या में लोग घाटी छोड़कर घरों की ओर निकल गए। रविवार को भी करीब 10 हजार से अधिक पर्यटक, श्रद्धालुओं और विद्यार्थियों ने घर की राह पकड़ी। इससे पूर्व शनिवार को करीब 50 हजार पर्यटक और श्रमिक घाटी छोड़ चुके हैं। बाबा अमरनाथ यात्रा के अधिकतर श्रद्धालु और पर्यटक भी अपने घरों को लौट चुके हैं। रविवार को करीब दस हजार लोगों ने कश्मीर छोड़ा और सड़क मार्ग से जम्मू पहुंचे। इसके बाद वह अपने-अपने राज्यों को चले गए।

कश्‍मीर के विकास में बाधक हैं अनुच्छेद 370 और 35-ए  
कश्मीर के एक वर्ग में खुद को देश से अलग और विशिष्ट मानने की जो मानसिकता पनपी है उसकी एक बड़ी वजह अनुच्छेद 370 है। यह अलगाववाद को पोषित करने के साथ ही कश्मीर के विकास में बाधक भी है। इसी कारण अनुच्छेद 370 का शुरू से ही विरोध होता चला आ रहा है। कश्मीर संबंधी अनुच्छेद 35-ए भी निरा विभेदकारी है। इन दोनों अनुच्छेदों पर कोई ठोस फैसला लिया ही जाना चाहिए। या तो इन्हें हटाया जाए या फिर संशोधन के जरिये उनकी विसंगतियों को दूर किया जाए। इसका कोई औचित्य नहीं कि ये दोनों अनुच्छेद कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ने और साथ ही वहां समुचित विकास करने में बाधक बने रहें। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता चाहे जितना शोर मचाएं, कश्मीरी जनता को यह पता होना चाहिए कि ये दोनों अनुच्छेद उनके लिए हितकारी साबित नहीं हुए हैं।

घाटी में नहीं हो रहे धरना-प्रदर्शन
सूत्रों की माने तो सरकार महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और अन्य राजनीतिक व अलगाववादी नेताओं की बयानबाजी को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। ये सभी नेता लगातार 35ए और 370 को लेकर इसी तरह का बयान देते रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि राजनेताओं की तमाम बयानबाजी के बावजूद घाटी में स्थिति सामान्य बनी हुई है। हालात की अनिश्चितता को देखते हुए आम जनता भले ही जरूरी सामान इकट्ठा करने में लगी हो, लेकिन सरकार के खिलाफ किसी तरह का असंतोष और विरोध प्रदर्शन देखने में नहीं आया है।

जबकि कश्मीर घाटी में हर छोटी-छोटी बातों पर उग्र प्रदर्शन शुरू हो जाते थे। जाहिर है आम जनता यदि आगे भी राजनेताओं और अलगाववादियों के प्रति यही रूख दिखाती है तो सरकार के लिए जम्मू-कश्मीर में सुधारों के एजेंडे के साथ आगे बढ़ना आसान हो जाएगा।

राज्यसभा में सोमवार को पेश होगा जम्मू-कश्मीर आरक्षण बिल
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (द्वितीय संशोधन) बिल, 2019 पेश करेंगे। लोकसभा में यह बिल एक जुलाई को पास हो चुका है।

संसद के उच्च सदन में अगर यह बिल पास हो जाता है तो राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को शैक्षिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में 10 फीसद आरक्षण मिलने लगेगा।

यह भी पढ़ेंः ...तो इस तरह जम्मू-कश्मीर से हटाया जा सकता है 35A

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