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Madhya Pradesh : विधायकी छोड़ी, मंत्री पद भी मिला नहीं और अब आगे चुनाव जीतने की चुनौती

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले 22 नेताओं में से 14 तो मंत्री बन गए हैं लेकिन आठ नेआतों के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 07:34 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 04:19 AM (IST)
Madhya Pradesh : विधायकी छोड़ी, मंत्री पद भी मिला नहीं और अब आगे चुनाव जीतने की चुनौती
Madhya Pradesh : विधायकी छोड़ी, मंत्री पद भी मिला नहीं और अब आगे चुनाव जीतने की चुनौती

आनन्द राय, भोपाल। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले 22 नेताओं में से 14 तो मंत्री बन गए हैं लेकिन आठ ऐसे हैं जिनकी विधायकी तो गई ही मंत्री पद भी नहीं मिला। अब उन पर उपचुनाव जीतने की चुनौती अलग से आन पड़ी है। शिवराज सरकार में सिंधिया के जिन समर्थकों को मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला उनमें 2018 में कांग्रेस के टिकट पर अंबाह से चुनाव जीते कमलेश जाटव, अशोक नगर से जजपाल सिंह जज्जी, करेरा से जसवंत जाटव, ग्वालियर पूर्व से मुन्ना लाल गोयल, गोहद से रणवीर जाटव, भांडेर से रक्षा सरैनिया, मुरैना से रघुराज सिंह कषाना और हाट पिपल्या से मनोज चौधरी हैं।

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इनमें केवल रणवीर जाटव को छोड़कर बाकी सभी पहली बार विधानसभा में पहुंचे थे और सिंधिया के प्रभाव में कांग्रेस छोड़ दी थी। अब इनकी मुश्किलें कई मोर्चों पर बढ़ गई है। मसलन, हाट पिपल्या में मनोज चौधरी ने भाजपा के दीपक जोशी को चुनाव हराया था। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र और पूर्व मंत्री दीपक जोशी इन दिनों खफा-खफा से चल रहे हैं। अगर उनका खुलकर सहयोग नहीं मिला तो मनोज के लिए मुश्किल होगी। यही हाल बाकी क्षेत्रों में भी है। मनोज चौधरी करीब 13 हजार मतों से 2018 का चुनाव जीते थे लेकिन तब कांग्रेस का बेहतर माहौल था।

बता दें कि रणवीर जाटव 23 हजार से अधिक जबकि रक्षा सरैनिया की 39 हजार से अधिक मतों से जीत हुई थी लेकिन कमलेश जाटव और जजपाल जज्जी जैसे लोग दस हजार की भी बढ़त भी नहीं ले पाए थे। कमलेश जाटव को निर्दलीय नेहा किन्नर ने कड़ी टक्कर दी थी। ऐसे में इन सभी संभावित उम्मीदवारों को उपचुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा भाजपा के अन्य क्षत्रपों का भी भरपूर सहयोग चाहिए।

खुलकर नहीं आवाज भी नहीं उठा सकते...

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा कहते हैं कि इन लोगों ने कांग्रेस के साथ छल किया और इन सभी के साथ भाजपा ने छल कर दिया। अब सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उपचुनाव में टिकट बचाए रखना और चुनाव जीतने के लिए इन्हें अपने मन का गुबार मन में ही रखना है। ये नेता न तो विद्रोह करने की स्थिति में हैं और न ही असंतोष प्रकट कर सकते हैं। वहीं प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि मंत्री बनने के लिए एक निश्चित कोटा होता है लेकिन भाजपा में सबका सम्मान बराबर का है।

पांच आरक्षित सीटों पर दांव-पेंच

जो आठ पूर्व विधायक मंत्री बनने से वंचित रह गए उनमें पांच अनुसूचित वर्ग के हैं। ये भांडेर, अंबाह, गोहद, करेरा और अशोक नगर आरक्षित सीट से चुनाव जीते थे। इनमें ज्यादातर ग्वालियर चंबल संभाग की सीटें हैं। इस क्षेत्र में जाटव वर्ग का प्रभुत्व है। इस इलाके में बसपा भी पूरी ताकत से दस्तक देती है। जाहिर है कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति वोटों को लेकर खूब दांव-पेंच चलेगा। मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद जिस तरह से भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया उससे यही लगता है कि उपचुनाव में भी सबकुछ ठीक नहीं रहेगा। अगर भितरघात होता है तो नि:संदेह इन सबके लिए विधानसभा की राह मुश्किल होगी। 


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