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अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर महात्मा गांधी के बारे में कुछ भी कह देना स्वीकार्य नहीं

राजनीति शास्त्री एवं अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी इस पूरे प्रसंग पर क्षोभ व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि महात्मा गांधी की आलोचना करने से पहले किसी को भी उनकी भावभूमि को समझना पड़ेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 06 Jan 2022 11:07 AM (IST)Updated: Thu, 06 Jan 2022 01:03 PM (IST)
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर महात्मा गांधी के बारे में कुछ भी कह देना स्वीकार्य नहीं
महात्मा गांधी की आलोचना करने से पहले उन्हें समग्रता में जानना-समझना चाहिए। फाइल

इंदौर, संजय मिश्र। मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों कुछ तथाकथित संतों ने महात्मा गांधी की अभद्र आलोचना करके हलचल मचा रखी है। हाल के दिनों में सबसे पहले कालीचरण द्वारा रायपुर में सार्वजनिक मंच से महात्मा गांधी को अपशब्द कहे जाने का मामला चर्चा में आया। उनकी इस टिप्पणी को लेकर छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश तक खूब राजनीति हो रही है।

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दरअसल कालीचरण को जब मध्य प्रदेश में खजुराहो से गिरफ्तार किया गया तो गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्र ने यह कहकर नाखुशी जाहिर की कि छत्तीसगढ़ की पुलिस ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया। उसने संघीय नियमों की अवहेलना की है। डा. मिश्र के बयान के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी पलटवार किया और पूछा कि डा. मिश्र बताएं कि महात्मा गांधी को गाली देने वाले को गिरफ्तार करके पुलिस ने क्या गलत किया है। उन्होंने यह भी पूछा था कि महात्मा गांधी के बारे में कालीचरण ने जो कहा क्या उससे वह और उनकी सरकार सहमत हैं। कालीचरण की गिरफ्तारी के बाद से ही इस मसले पर कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी अभी दो दिन पूर्व इंदौर में कालीचरण की गिरफ्तारी को अपराध से बड़ी कार्रवाई बताकर उनका बचाव करने की कोशिश की। अभी यह प्रकरण चर्चा में ही है कि मंगलवार को विवादित छवि वाले कथावाचक तरुण मुरारी ने महात्मा गांधी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करके नए विवाद को जन्म दे दिया। मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि नरसिंहपुर पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया। अब उनकी गिरफ्तारी की मांग उठ रही है। इस बीच बुधवार को तरुण मुरारी ने नया वीडियो जारी कर अपनी टिप्पणी पर यह कहते हुए माफी मांगी है कि उन्होंने भावावेश में महात्मा गांधी के खिलाफ अवांछित टिप्पणी कर दी थी। उनके माफीनामे पर पुलिस ने भी साफ कर दिया है कि मुकदमा दर्ज हो चुका है, इसलिए ऐसे माफीनामे से उसे खत्म नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने तरुण मुरारी को गिरफ्तार करने की मांग की है।

दरअसल हाल के दिनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं वीर सावरकर पर विवादित बयान देकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने की चलन-सी आ गई है। कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सावरकर पर लिखी किताब का जिक्र करके विवादित बयान दिया था, जिसकी देश भर में आलोचना हुई थी। मंगलवार को तरुण मुरारी ने बापू को राष्ट्रपिता कहने पर सवाल उठाए थे। उन्हें राष्ट्र के दो टुकड़े करने का जिम्मेदार ठहराया था। इसके पहले रायपुर में कालीचरण ने बापू की हत्या करने वाले नाथूराम गोड़से को नमन किया था और महात्मा गांधी के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया था। कुछ समय पहले अभिनेत्री कंगना रनोट ने भी गांधीजी की अहिंसा का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि दूसरा गाल आगे करने से ‘भीख’ मिलती है, आजादी नहीं। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी कहते हैं कि ये अवांछित टिप्पणियां ऐसे लोग कर रहे हैं, जिन्हें वास्तव में महात्मा गांधी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। उन्हें न तो इतिहास की जानकारी है और न तथ्यों की समझ।

वास्तव में आलोचना के नाम पर अभद्र टिप्पणी करने के इस चलन को बढ़ाने के लिए राजनीति और राजनेता ज्यादा उत्तरदायी हैं। इन्होंने ही सार्वजनिक मंचों से टिप्पणियां करके ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ाई है। अधिकांश मामलों में यह भी देखा गया है कि बाद में विवाद बढ़ने पर अक्सर वे लोग दिखावे के लिए माफी भी मांग लेते हैं। बीते कुछ वर्षो में कई नेता इस तरह के विवादित बयान देते रहे हैं। अब उन्हीं की राह पर सब चल पड़े हैं। यहां सवाल यह उठता है कि ऐसे बयान देने की आवश्यकता ही क्या है कि बाद में माफी मांगनी पड़े? आखिर बयानवीर नेता एवं संत यह क्यों नहीं सोचते कि कमान से तीर छूट जाए तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।

राजनीति शास्त्री एवं अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी इस पूरे प्रसंग पर क्षोभ व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि महात्मा गांधी की आलोचना करने से पहले किसी को भी उनकी भावभूमि को समझना पड़ेगा। उनके वांगमय को पढ़ना पड़ेगा। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उनके बारे में कुछ भी कह देना स्वीकार्य नहीं हो सकता।

इसमें कोई दो राय नहीं कि गांधीजी के विचारों से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी बात रखने का हक सबको है, लेकिन अपनी बात कहने के नाम पर महात्मा गांधी का अपमान करने का हक किसी को नहीं दिया जा सकता है। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि किसी को भी अपनी बात कहने की आजादी है, लेकिन इस आजादी की भी कोई सीमा होनी चाहिए।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]


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