बंधु तिर्की ने उठाई सरकारी कार्यालयों में आदिवासी वकीलों की नियुक्ति की मांग, सरकार को लिखा पत्र
Ranchi News वर्तमान में झारखंड में अनुसूचित जनजाति को 26 प्रतिशत अनुसूचित जाति को 7.5 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए 10 प्रतिशत का प्रविधान है। इस प्रकार राज्य के 24 जिलों में 24 सरकारी वकील तथा 96
रांची, राज्य ब्यूरो। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने सरकारी कार्यालयों में सरकारी वकील के रूप में आदिवासी मूलवासी अधिवक्ताओं को नियुक्त करने की मांग की है। उन्होंने यह मांग राज्य मुख्यालय से लेकर जिलों तक में सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति के संदर्भ में उठाई है।
मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर की मांग
तिर्की ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जिलों में सरकारी वकील के रूप में आदिवासी- मूलवासी अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर समुचित प्रतिनिधित्व देने की आवाज उठाते हुए अपने पत्र में कहा है कि सरकारी वकील के नियुक्ति के दौरान आदिवासी-मूलवासी अधिवक्ताओं विशेषकर सीएनटी/ एसपीटी एक्ट तथा स्थानीय कानून के जानकार की नियुक्ति कर झारखंड राज्य गठन के उद्देश्यों को धरातल पर उतारा जा सकता है। जिससे झारखण्डी हितों की रक्षा न्याय पटल के स्तर तक हो सके।
अधिवक्ताओं के लिए आरक्षण की मांग
सरकारी नौकरी में आदिवासी मूलवासी जो आरक्षित वर्ग के हैं उनके लिए नियुक्तियों में पदवार संवैधानिक आरक्षण का प्रविधान किया गया है और इसे ही अधिवक्ताओं के लिए लागू करने की मांग की है। वर्तमान में झारखंड में अनुसूचित जनजाति को 26 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए 10 प्रतिशत का प्रविधान है। इस प्रकार राज्य के 24 जिलों में 24 सरकारी वकील तथा 96 सहायक सरकारी वकील के पद हैं। बिजली बोर्ड में कुल सरकारी वकील-19, तथा राज्य सरकार के सभी विभागों में कम से कम दो-दो रिटेनर कौंसिल (एसओएफ) बनाने के लिए नियुक्त होते हैं। साथ ही हाउसिंग बोर्ड, तेनुघाट बिजली निगम एवं अन्य सरकारी निकायों में सरकारी वकील बहाल होते हैं। झारखंड के सभी जिलों में पदस्थापित सरकारी वकीलों या सहायक सरकारी अधिवक्ताओं को देखें तो किसी भी जिले में सरकारी आदिवासी वकील नहीं है। आज पूरे झारखंड राज्य में आदिवासी जमीन की लूट बदस्तूर जारी है क्योंकि सीएनटी और एसपीटी एक्ट के तहत डिप्टी कमिश्नर जमीन संबंधी मुकदमे में पार्टी बनते हैं जिसे सरकारी वकील के द्वारा रिप्रेजेंट किया जाता है। चूंकि सरकारी वकील आदिवासी नहीं होता है इसलिए अक्सर वह मुकदमा में आदिवासी पक्ष के खिलाफ आदेश पारित हो जाता है।
व्यवस्था में मौजूद खामियों को दूर करने की मांग
तिर्की ने यह भी आरोप लगाया कि अक्सर इन सरकारी वकील तथा सहायक सरकारी वकील की नियुक्ति में उन निगम, बोर्ड एवं अन्य सरकारी निकायों के अधिकारियों के नजदीकी या उनके परिवार के सदस्यों को लाभ मिलता है जो वकालत के पेशे में हैं। उन्होंने व्यवस्था में मौजूद इस खामी को अब दूर करने की मांग की है।