Ayodhya Verdict: अधिग्रहित जमीन के लिए अब नहीं है केंद्र सरकार को किसी इजाजत की जरूरत
गैर-विवादित हिस्सा भूमालिकों को वापस करने की इजाजत मांगने वाली केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में लंबित अर्जी अब महत्वहीन हो गई है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में शनिवार को आए फैसले के बाद केंद्र सरकार को अधिगृहित जमीन के बारे में अब सुप्रीम कोर्ट से कोई इजाजत लेने की जरूरत नहीं रह गई। फैसला आने के बाद अधिग्रहित जमीन का गैर-विवादित हिस्सा भूमालिकों को वापस करने की इजाजत मांगने वाली केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में लंबित अर्जी अब महत्वहीन हो गई है।
फैसले के बाद अधिग्रहित जमीन पर केंद्र सरकार की अर्जी हुई महत्वहीन
कोर्ट ने शनिवार को विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को ट्रस्ट गठित करने का निर्देश देने वाले फैसले में सरकार को अधिग्रहित जमीन भी ट्रस्ट को देने की छूट दी है जो कि उस जमीन का प्रबंधन या विकास कर सकती है। इस फैसले के बाद केंद्र सरकार की गत 29 जनवरी 2019 को दाखिल की गई अर्जी अब महत्वहीन हो गई है जिसमें सरकार ने अयोध्या में अधिगृहित की गई 67.703 एकड़ जमीन में से 0.313 एकड़ विवादित भूमि छोड़ कर बाकी की जमीन राम जन्मभूमि न्यास व अन्य भू मालिकों को वापस करने की इजाजत मांगी थी। उस अर्जी में सरकार ने कोर्ट से मामले में यथास्थिति कायम रखने का 31 मार्च 2003 का आदेश रद करने या बदलने की भी गुहार लगाई थी ताकि वह अयोध्या भूमि अधिग्रहण को सही ठहराने वाले संविधान पीठ के इस्माइल फारुकी फैसले के मुताबिक अपने दायित्व का निर्वाह कर सके।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था पूरी अधिगृहित जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश
सरकार की ओर से यह अर्जी 16 साल पुराने मोहम्मद असलम भूरे मामले में दाखिल की गई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसी केस में 31 मार्च 2003 को विवादित जमीन के साथ ही पूरी अधिगृहित जमीन पर यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिये थे। यह मामला अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में लंबित मुख्य अपीलों से अलग है। सरकार की अर्जी इस मामले में दाखिल है इसलिए वह अभी तक सुनवाई पर नहीं आई थी, लेकिन अब इस अर्जी पर सुनवाई की जरूरत नहीं रह गई है।
सरकार गैर-विवादित अधिग्रहित जमीन मूल मालिक को दें
असलम भूरे मामले में दाखिल अर्जी में सरकार ने कहा था कि 1993 में अयोध्या में विवादित स्थल सहित कुल 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हुआ था। अधिग्रहण को 25 साल बीत चुके हैं। जो लोग अधिगृहित जमीन के मूल मालिक हैं और जिनकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है, उन्हें अपनी जमीन वापस मिलनी चाहिए। केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस्माइल फारूकी मामले में संविधानपीठ के फैसले के मुताबिक कार्रवाई करते हुए उनकी जमीन वापस कर दे। सरकार ने कहा था कि अधिगृहित अतिरिक्त जमीन को लगातार केंद्र सरकार के पास बने रहने का कोई मतलब नहीं है। और न ही इसमें कानूनी अड़चन है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट से मांगी थी इजाजत
सरकार ने कहा था कि उसे सैद्धांतिक तौर पर जमीन भूमालिकों राम जन्मभूमि न्यास व अन्य को वापस किये जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। सरकार इस्माइल फारुकी केस के मुताबिक सिर्फ अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि से उतनी जमीन नाप कर रख लेगी जितनी विवादित जमीन का मुकदमा जीतने वाले पक्ष को अपनी जमीन पर आने जाने के लिए जरूरत होगी। सरकार का कहना था कि इस अतिरिक्त जमीन का विवादित जमीन से कोई लेनादेना नहीं है इसलिए इसे लौटाने की इजाजत दे दी जाए। केंद्र सरकार ने कोर्ट से न्याय हित मे इजाजत देने की मांग की थी। सरकार का कहना था कि 31 मार्च 2003 का यथास्थिति कायम रखने का आदेश उस समय के हालात देखते हुए दिया गया था। उसके बाद बहुत सी घटनाएं हो चुकी हैं ऐसे में यथास्थिति कायम रखने के आदेश की जरूरत नहीं रह गयी है।
अधिगृहित जमीन में 42 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है
अधिगृहित जमीन में 42 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है। इस्माइल फारुकी फैसले के बाद 6 जून 1996 को राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार के पास अर्जी देकर अपनी जमीन वापस मांगी। सरकार ने 14 अगस्त 1996 को न्यास की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि इस मांग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमें पर फैसला आने के बाद ही विचार हो सकता है। इसके बाद 1997 में न्यास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका कर केंद्र को निर्देश देने की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का कहना सही है और याचिका खारिज कर दी।
असलम भूरे ने की थी अयोध्या में भूमि पूजन रोकने की मांग
इसके बाद मोहम्मद असलम भूरे ने 2002 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर अयोध्या में भूमि पूजन रोकने की मांग की। 31 मार्च 2003 को असलम भूरे की याचिका संविधानपीठ ने निपटा दी। उस 2003 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमें का फैसला होने तक जमीन पर यथास्थिति कायम रहेगी। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राम जन्मभूमि मामले पर अंतिम फैसला दे दिया जिसमें विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें लंबित थीं जिन पर कोर्ट ने गत शनिवार को अपना फैसला सुनाया है।