Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा- नकारी नहीं जा सकती एएसआइ रिपोर्ट
मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआइ ने खुदाई में मिले खंडहरों को बिना किसी ठोस आधार के अनुमान से मंदिर का अवशेष कह दिया है जो कि सही नहीं है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में एएसआइ (भारत पुरातत्व सर्वेक्षण) रिपोर्ट को काल्पनिक और महज राय बताते हुए ठोस साक्ष्य न होने की मुस्लिम पक्ष की दलील पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट को इस तरह खारिज नहीं किया जा सकता। जब मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआइ की रिपोर्ट अनुमान पर आधारित है। आखिर एएसआई खुदाई में मिले ढांचे को किस आधार पर मंदिर कह रहा है, उसका यह निष्कर्ष सही नहीं है। तो कोर्ट ने उनसे कई सवाल किये। सोमवार को फिर बहस होगी।
हाईकोर्ट ने एएसआइ को यह पता लगाने के लिए विवादित स्थल की खुदाई कर रिपोर्ट देने को कहा था कि क्या विवादित ढांचे के नीचे पहले कोई मंदिर था और क्या मंदिर को तोड़कर उस जगह मस्जिद बनाई गई थी। एएसआइ ने खुदाई के बाद हाईकोर्ट को दी गई रिपोर्ट में कहा है कि विवादित ढांचे के नीचे विशाल संरचना थी जो कि उत्तर भारत के मंदिर से मेल खाती है।
मुस्लिम पक्ष की ओर से शुक्रवार को भी एसआइ रिपोर्ट पर आपत्तियां उठाई गईं। मिनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआइ की मुख्य रिपोर्ट और उसके निष्कर्ष के बीच कोई सामंजस्य नहीं है। रिपोर्ट साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत सिर्फ विशेषज्ञ की राय मानी जा सकती है। एएसआइ (पुरातत्व सर्वेक्षण) सामाजिक विज्ञान है क्योंकि उसे विज्ञान की तरह जांचा परखा नहीं जा सकता। एएसआइ अनुमानों पर आधारित होता है और अनुमान भिन्न भी हो सकते हैं।
राम चबूतरे के नीचे थी पानी की टंकी
अरोड़ा ने कहा कि एएसआइ रिपोर्ट के मुताबिक राम चबूतरे के नीचे वाटर टैंक पाया गया है। उन्होंने कोर्ट का ध्यान रिपोर्ट के उस अंश की ओर दिलाया।
रिपोर्ट को वहां पहले राम मंदिर होने का ठोस साक्ष्य नहीं माना जा सकता
अरोड़ा ने कहा कि एएसआइ ने खुदाई में मिले खंडहरों को बिना किसी ठोस आधार के अनुमान से मंदिर का अवशेष कह दिया है जो कि सही नहीं है। खंडहर किसी चीज के भी हो सकते हैं। हाईकोर्ट ने एएसआइ से यह पता लगाने को कहा था कि क्या वहां पहले कोई मंदिर था और क्या मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। रिपोर्ट से यह साबित नहीं होता कि वहां पहले राम जन्मस्थान मंदिर था। और न ही यह साबित होता है कि वहां मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी। एएसआइ की रिपोर्ट हाईकोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब नहीं देती है।
1885 के मुकदमें के बाद दोबारा मामले पर नहीं हो सकता विचार
मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमें का विरोध करते हुए कहा कि 1885 में महंत रघुवर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर बनाने के लिए मुकदमा दाखिल किया था। जिला अदालत ने फैसला दिया था जिसमें राम चबूतरे पर हिन्दुओं का कब्जा और पूजा का अधिकार तो माना गया था, लेकिन मालिकाना हक नहीं माना था। उसमें कोर्ट ने हिन्दुओं को सीमित अधिकार दिए थे अब हिन्दू अधिकारों का विस्तार मांग रहे हैं। वह फैसला बाध्यकारी है। यहां रेस जुडिकेटा (मामले पर दोबारा विचार न किया जा सकना) का सिद्धांत लागू होगा।
एएसआइ रिपोर्ट पर कोर्ट में कुछ इस तरह हुए सवाल जवाब
मिनाक्षी अरोड़ा - एएसआइ रिपोर्ट महज विशेषज्ञों की राय है जो काल्पनिक और सलाह हो सकती है उसे ठोस सबूत नहीं माना जा सकता।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - रिपोर्ट संदर्भ को ध्यान में रखते हुए डाटा (प्राप्त आंकड़े) के आधार पर विशेषज्ञों का निष्कर्ष है। इसे ऐसे खारिज नहीं किया जा सकता।
मीनाक्षी अरोड़ा - हर पुरातत्वी (आर्केलाजिस्ट) की अलग विषय जैसे समाजशास्त्र, इतिहास आदि पर अपनी अलग राय हो सकती है। पुरातत्वी की राय भी हस्तलेख विशेषज्ञ की राय की श्रेणी में आयेगी जिसे ठोस सबूत नहीं माना जा सकता।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर - एएसआइ रिपोर्ट सिर्फ राय नहीं है। एएसआइ ने हाईकोर्ट के आदेश पर कोर्ट कमिश्नर की हैसियत से मामले में जांच करने के बाद रिपोर्ट दी है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ - यह रिपोर्ट कोई सामान्य राय नहीं है यह जानकार विशेषज्ञों की राय है।
जस्टिस एसए बोबडे - हमें मालूम है कि पुरातत्व रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाले गए हैं। इस मामले मे कौन सीधे सबूत दे सकता है। कोर्ट विचार करेगा कि किसके अनुमान और निष्कर्ष ज्यादा वास्तविक हैं।
जस्टिस बोबडे - इस मामले में दोनों पक्ष (हिन्दू और मुस्लिम) अनुमान के आधार पर बहस कर रहे हैं। मामले में कोई चश्मदीद गवाह तो है नहीं।
वकील शेखर नाफड़े - मामले मे रेसजुडिकेटा का सिद्धांत लागू होगा। 1885 में फैसला हो चुका है अब कोर्ट जमीन पर मालिकाना हक के मुद्दे पर सुनवाई नहीं कर सकता।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - क्या उस मामले में सीपीसी के आर्डर 1 रूल 8 के तहत नोटिस जारी हुआ था (किसी मुकदमे को प्रतिनिधि मुकदमा घोषित किया जाने का नोटिस)। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उस मुकदमे को पूरे समुदाय पर बाध्यकारी कैसे माना जा सकता।
शेखर नाफड़े - नहीं। लेकिन किसी भी मुकदमें में जहां पूरे समुदाय के लिए अधिकार मांगा गया हो जैसे कि उस मुकदमें में हिन्दुओं के पूजा के अधिकार बात की गई थी, उसे प्रतिनिधि सूट माना जाएगा। कोर्ट को सिर्फ यह देखना होगा कि मुकदमा करने वाले व्यक्ति की मंशा गलत न हो।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - तो क्या कोई व्यक्ति जो वास्तविक मंशा के साथ कोर्ट जाएगा और उसके पास पर्याप्त सबूत नहीं होंगे वह कोर्ट मे अच्छे से अपना मुकदमा नहीं पेश कर पाएगा और उसके बाद कोर्ट का उस मामले में जो फैसला आएगा क्या वह पूरे समुदाय पर लागू माना जाएगा?
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ - क्या प्रतिनिधि मुकदमें का सिद्धांत इस मामले में रामलला और जन्मस्थान (जिन्होंने देवता की हैसियत से जमीन पर मालिकाना हक मांगा) पर लागू होगा। उस मामले का असर तो सिर्फ सेवापूजा के अधिकार पर ही पड़ सकता है।