Assembly Election 2019: भाजपा की इस जीत में जश्न नहीं, बहुमत के दावे से पिछड़ना दे गया कसक
चुनावों में जीत बहुत बड़ी घटना होती है। सामान्यतया ऐसे वक्त पर राजनीतिक दलों के कार्यालय का माहौल भी जश्न से भरा होता है लेकिन गुरुवार को भाजपा कार्यालय में जीत के लड्डू नहीं मिले।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भाजपा महाराष्ट्र और हरियाणा में फिर से सरकार बनाने जा रही है। एक तरह से इतिहास रच रही है, क्योंकि वही मुख्यमंत्री पांच साल के बाद फिर से सत्तासीन होने जा रहा है। केंद्र में मोदी सरकार 2 के बाद पहली परीक्षा में दो जीत हुई। यह सब हुआ, लेकिन जश्न नहीं। आखिर क्यों? दरअसल यह जीत भाजपा में उत्साह नहीं भर पाई। अपने दम पर बहुमत के दावे और भरोसे से पिछड़ना कहीं न कहीं एक कसक दे गया है।
चुनावों में जीत बहुत बड़ी घटना होती है। सामान्यतया ऐसे वक्त पर राजनीतिक दलों के कार्यालय का माहौल भी जश्न से भरा होता है, लेकिन गुरुवार को भाजपा कार्यालय में जीत के लड्डू नहीं मिले। यूं तो महाराष्ट्र में यह शुरू से तय हो गया था कि भाजपा शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिलेगा, लेकिन हरियाणा ने बहुत छकाया। आखिर तक जाते जाते निर्दलीयों पर निर्भरता छोड़ गया। भाजपा के रणनीतिकारों को बहुत पसीना बहाना पड़ा।
हरियाणा ने अगर नतीजे के वक्त परेशान किया तो भाजपा को पता है कि महाराष्ट्र आने वाले दिनों में परेशान करेगा। शिवसेना का मोलभाव आसान नहीं होगा। उससे रोजाना जूझना पड़ सकता है। भाजपा सूत्रों की मानें तो हरियाणा में मतफीसद कम होने को लेकर नेतृत्व नाराज है। यह पूछा जा सकता है कि उपर से लेकर नीचे तक फैले संगठन ने क्या जमीनी स्तर पर संवाद नहीं किया। क्या उनका तंत्र मतदान के वक्त निष्क्रिय था। ध्यान रहे कि भाजपा का यह मंत्र रहा है कि चुनाव बूथ पर जीते जाते हैं और इसीलिए हाल के दिनों में भाजपा नेतृत्व ने बूथ प्रबंधन पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। हरियाणा में इसकी कमी दिखी। झारखंड और दिल्ली अगला पड़ाव है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के रूप में एक प्रबल प्रतिद्व्ंदी है और झारखंड में विपक्ष का अस्तित्व है। ऐसे में विपक्ष में उत्साह का संचार उन्हें और बल देगा और भाजपा के लिए लड़ाई थोड़ी मुश्किल बना सकता है।
कांग्रेस के 'संकटमोचक' बन रहे पुराने क्षेत्रीय क्षत्रप
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस को अपनी राजनीतिक वापसी के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों का ही सहारा लेना होगा। त्रिशंकु विधानसभा की हालत में सत्ता का तराजू भले भाजपा के पक्ष में झुक जाए मगर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा में कांग्रेस की सियासत के तराजू को एक बार फिर मजबूती से पकड़ लिया है। हरियाणा ही नहीं बीते तीन सालों के दौरान करीब आधा दर्जन राज्यों के चुनाव नतीजों से साफ है कि पुराने क्षत्रप ही कांग्रेस के संकटमोचक बन रहे हैं।