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Ayodhya in Court: अयोध्या पर कोर्ट में 6 अगस्त को होगी 'सुप्रीम' सुनवाई, हर पक्ष दलीलों के साथ तैयार

1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने रिफरेंस भेजकर पूछा था कि क्या अयोध्या में विवादित ढांचे से पहले वहां हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक स्थल था।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 08:03 PM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 01:12 AM (IST)
Ayodhya in Court: अयोध्या पर कोर्ट में 6 अगस्त को होगी 'सुप्रीम' सुनवाई, हर पक्ष दलीलों के साथ तैयार
Ayodhya in Court: अयोध्या पर कोर्ट में 6 अगस्त को होगी 'सुप्रीम' सुनवाई, हर पक्ष दलीलों के साथ तैयार

माला दीक्षित, नई दिल्ली। राजनैतिक और धार्मिक रूप से संवेदनशील अयोध्या राम जन्मभूमि मामले पर मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी। हर पक्ष अपनी दलीलों के साथ तैयार है। कोर्ट के सामने मुख्य मुद्दा यही है कि क्या विवादित स्थल पर पहले कोई मंदिर था और क्या उसे तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी।

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इस बात का जवाब विवादित स्थल की खुदाई करने वाले भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट में मिलता है। जिसमे कहा गया है कि विवादित ढांचे के नीचे मिली विशाल संरचना उत्तर भारत के मंदिर से मेल खाती है। यानी वहां पहले मंदिर था। एएसआइ की यह रिपोर्ट वैज्ञानिक साक्ष्य है। हाईकोर्ट के फैसले में रिपोर्ट आधार बनी थी और अब सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एक अगस्त 2002 और 23 अक्टूबर 2002 को विवादित स्थल के नीचे जियो रेडियोलाजिकल सर्वे का आदेश दिया था। तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने ये सर्वे किया और 17 फरवरी 2003 को हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में जमीन के नीचे कुछ विसंगतियां पायी गईं जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2003 को एएसआइ को विवादित स्थल की खुदाई करने का आदेश दिया था।

एएसआई ने खुदाई करने के बाद 25 अगस्त 2003 को हाईकोर्ट में रिपोर्ट दी थी। राम जन्मभूमि मामले में हाईकोर्ट के सितंबर 2010 में दिये गए फैसले में इसी रिपोर्ट के आधार पर तीन में से दो न्यायाधीशों ने अपने फैसले में माना कि विवादित ढांचा हिन्दू मंदिर तोड़ कर बनाया गया था।

एएसआइ को खुदाई का आदेश देने वाली पीठ में शामिल रहे सेवानिवृत न्यायाधीश सुधीर नारायण कहते हैं कि उस वक्त कोर्ट के सामने कानूनी सवाल था कि पहले वहां मंदिर था कि नहीं। इसी का पता लगाने के लिए एएसआइ को खुदाई का आदेश दिया था। एएसआइ की रिपोर्ट आ गई है। वह वैज्ञानिक साक्ष्य है। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और उसे फैसला लेना है।

एएसआइ रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि 'पुरातत्व साक्ष्यों को संपूर्णता में देखने से पता चलता है कि विवादित स्थल के ठीक नीचे एक विशाल संरचना थी और लगातार निर्माण के साक्ष्य हैं जो कि दसवीं शताब्दी से लेकर विवादित ढांचा बनने तक जारी रहा।

यहां से नक्काशीदार ईंटे, देवताओं की युगल खंडित मूर्ति और नक्काशीदार वास्तुशिल्प, जिसमें पत्तों के गुच्छे, अमालका, कपोतपाली, दरवाजों के हिस्से कमल की आकृति, गोलाकार (श्राइन) पूजा स्थल जैसी चीज मिली है जिसमें उत्तर की ओर निकला एक परनाला भी है। उस बड़े ढांचे में पचास खंबों का आधार मिला है। ये अवशेष उत्तर भारत के मंदिरों की खासियत से मेल खाते हैं'।

एएसआइ ने रिपोर्ट के चेप्टर चार में स्ट्रक्चर (संरचना या ढांचा) शीर्षक में खुदाई में मिली संरचना का विवरण देते हुए अलग से एक खंड विवादित ढांचे के नीचे विशाल ढांचा का दिया है। इसमें कहा गया है कि विवादित ढांचा पहले से मौजूद निमार्ण पर खड़ा था। खुदाई में पता चला कि ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मौजूद थी।

एएसआई रिपोर्ट का निष्कर्ष 1993 में राष्ट्रपति द्वारा रिफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए सवाल का जवाब भी है। तत्कालीन राष्ट्रपति ने रिफरेंस भेजकर पूछा था कि क्या अयोध्या में विवादित ढांचे से पहले वहां हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक स्थल था।

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पूछे गए सवाल को बेकार और अनावश्यक बताते हुए बगैर जवाब दिये रिफरेंस वापस कर दिया था। पांच में से दो न्यायाधीशों ने अलग से दिए फैसले में रिफरेंस वापस करते हुए यह भी कहा था कि ऐसा नहीं है कि कोर्ट सवाल का जवाब देने में सक्षम नहीं है। जवाब दिया जा सकता है अगर इस बारे में पुरातत्व और इतिहासकारों के विशेषज्ञ साक्ष्य हो और उन्हें जिरह में परखा जाए तो।' अब वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध है।

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