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आपराधिक पृष्ठभूमि वाले माननीयों पर दर्ज होते हैं केस, लेकिन सजा कितनी ...

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्‍तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के सिर्फ 6 फीसदी सांसदों और विधायकों को सजा मिलती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 08:38 PM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 02:27 PM (IST)
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले माननीयों पर दर्ज होते हैं केस, लेकिन सजा कितनी ...
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले माननीयों पर दर्ज होते हैं केस, लेकिन सजा कितनी ...

नई दिल्ली, जागरण स्‍पेशल। जहां एक ओर मिजोरम, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और मध्‍य प्रदेश में चुनावों को लेकर तैयारी हो रही है और देश में आम चुनाव अगले साल होंगे, ऐसे में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों और विधायकों के हतोत्‍साहित होने की कोई संभावना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्‍तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के सिर्फ 6 फीसदी सांसदों और विधायकों को सजा मिलती है।
11 सितंबर, 2018 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 3,884 मामलों में चुनाव लड़ने से रोकने के लिए छह साल का प्रतिबंध लगाया गया। 38 मामलों में दोषी ठहराया गया और 560 में बरी घोषित किया गया।

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20 राज्‍यों में नहीं हुई कोई सजा
29 राज्‍यों में से 18 में और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से 2 में सांसदों और विधायकों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, घृणित भाषण और आपराधिक धमकी के आपराधिक मामलों के लिए कोई सजा नहीं हुई है।

सबसे ज्‍यादा केरल में दोष मुक्‍त हुए माननीय
देश में सबसे अधिक केरल में 147 माननीयों को निर्दोष घोषित किया गया और 8 को दोषी ठहराया गया, तमिलनाडु में 68 दोष मुक्‍त घोषित किया गया और 3 दोष मुक्‍त किया गया। बिहार में 48 को दोष मुक्‍त घोषित किया गया और 0 को दोष मुक्‍त किया। सबसे ज्‍यादा सजा पाने वाले राज्‍यों में ओडिशा में 10, केरल में 8 और उत्‍तर प्रदेश में 5 शामिल हैं।

दो साल पुरानी जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हलफनामा प्रस्तुत किया गया, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी राजनेताओं के लिए जीवन प्रतिबंध की मांग की गई। 14 दिसंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वे इस तरह के मामलों से निपटाने के लिए 12 विशेष अदालतें स्थापित करे। ये अदालतें 1 मार्च, 2018 से काम करना शुरू कर दी हैं।


7.8 करोड़ के बजट के साथ स्‍थापित की गईं विशेष अदालतें
ये विशेष अदालतें 7.8 करोड़ रुपये के बजट के साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में दो अदालतें स्थापित की गईं हैं। इन अदालतों की स्‍थापना का उद्देश्‍य अन्य 19 राज्यों और एक संघ शासित प्रदेशों में लंबित मामलों को तेजी से सुनवाई करना था। मार्च की समयसीमा के छह महीने बाद इन मामलों में से 40% (1,233) को विशेष अदालतों में स्थानांतरित कर दिया गया, जिनमें से 136 (11%) मामलों में फैसला सुनाया गया। हस्तांतरित किए गए 89% (1,097) मामले अभी लंबित हैं।

सबसे ज्‍यादा लंबित मामले उन राज्‍यों में विशेष अदालतें स्‍थापित की गईं, जिनमें लंबित मामले सबसे ज्‍यादा थे। इसमें बिहार (249), पश्चिम बंगाल (226) और केरल (233) हैं। केरल और पश्चिम बंगाल में एक-एक मामलों का निपटारा हुआ। उत्‍तर प्रदेश में सबसे ज्‍यादा 565 मामले थे, जहां विशेष अदालत ने 21 अगस्‍त, 2018 को काम करना शुरू किया। तमिनाडु में 402 मामले विधायकों के खिलाफ थे, जहां विशेष अदालत ने 6 सितंबर, 2018 को काम करना शुरू किया।

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार की जीतने की संभावना ज्‍यादा
एसोसिएशन ऑफ नेशनल कोऑर्डिनेटर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मेजर जनरल अनिल वर्मा (सेवानिवृत्त) ने बताया कि इन मामलों में तेजी से सुनवाई की जानी चाहिए, खासतौर पर चार राज्य (मिजोरम, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) जहां चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनाव जहां अगले आठ महीनों में होने हैं। 2014 में चुनावी सुधारों पर काम कर रहे नेशनल इलेक्‍शन वॉच (NEW) और एडीआर ने 1,200 गैर-सरकारी संगठनों के एक अभियान में 2014 के लोकसभा चुनावों में 543 शपथ पत्रों का विश्लेषण किया और पाया कि आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्‍मीदवार की तुलना में गैर आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवार की तुलना में जीतने की संभावना लगभग दोगुनी थी।

वर्मा ने बताया कि लोग यह महसूस करते हैं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले ये विधायक नौकरशाहों या सरकार के निचले स्तर के काम करने वाले के साथ काम करने में सक्षम है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग आपराधिक मुकदमों को ज्‍यादा महत्‍व नहीं देते हैं। उनका मानना है कि अगर उनका काम होता है तो मैं उसे वोट दूंगा।

मौजूदा कानून पर्याप्‍त नहीं
याचिकाकर्ता और भाजपा के प्रवक्‍ता अश्विनी उपाध्‍याय का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि पीपुल्स एक्ट (1951) के प्रतिनिधियों के लिए मौजूदा प्रावधान पर्याप्त नहीं है। प्रतिनिधियों के 6 साल के प्रतिबंध पर्याप्‍त नहीं है। उपध्याय ने कहा कि विधायकों के लिए सिविल सेवकों की अपेक्षा अधिक मानक रखे गए हैं। सिविल सेवकों को उस समय निलंबित कर दिया जाता है, जब पुलिस उनके खिलाफ चार्जशीट दर्ज करती है। अदालत उन्हें फिर से काम शुरू करने की तब अनुमति देती है, जब वे दोष मुक्‍त होते हैं, जबकि बलात्कार, अपहरण, हत्या और घृणित भाषण सहित कई मामले होने के बावजूद राजनेता पदों को जारी रखते हैं।

अप्रैल 2018 में एडीआर द्वारा किए गए एक विश्लेषण में पाया गया कि 48 विधायकों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए आपराधिक मामले दर्ज किए गए। अप्रैल 2018 में जारी एक अन्य रिपोर्ट में एडीआर ने पाया कि 58 विधायकों के पास नफरत वाले भाषण से जुड़े आरोपों पर उनके खिलाफ मामला दर्ज हैं।  


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