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सरकार चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के सुझावों पर विचार करने को तैयार: जेटली

वित्त मंत्री अरूण जेटली ने चुनावी बांड को पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग की दिशा में अहम कदम बताया है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sun, 07 Jan 2018 08:24 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jan 2018 08:37 PM (IST)
सरकार चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के सुझावों पर विचार करने को तैयार: जेटली
सरकार चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के सुझावों पर विचार करने को तैयार: जेटली

नई दिल्ली (जेएनएन)। राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार और भी कदम उठा सकती है। पिछले हफ्ते चुनावी बांड की शुरूआत करने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साफ किया है कि यदि चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए ठोस सुझाव आते हैं, तो उनपर जरूर विचार किया जाएगा। जेटली के अनुसार देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग को पारदर्शी बनाना जरूरी है।

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चुनावी बांड पूरी राजनीतिक प्रणाली को पारदर्शी बनाने का एक कदम

सोशल मीडिया पर लिखे अपने लेख में जेटली ने साफ किया कि चुनावी बांड पूरी राजनीतिक प्रणाली को पारदर्शी बनाने का एक कदम मात्र है और इस पर आगे भी काम होता रहेगा। उनके अनुसार फिलहाल शुरूआती सुझावों के आधार पर यह फैसला किया गया है। यदि इसके लिए नए सुझाव और भी आते हैं, तो सरकार उसपर जरूर विचार करेगी। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सुझाव व्यवहारिक होने चाहिए।

अपने लेख में जेटली ने बताया कि किस तरह से राजनीतिक दलों की मौजूद फंडिंग की पूरी प्रक्रिया पर्दे के पीछे से चलती है। जिसमें चंदा देने वाला भी छुपा होता और लेने वाला भी नहीं बताता है कि किसने कितना चंदा दिया। पूरी तरह से नकदी में मिलने वाले चंदे को राजनीतिक दल खर्च भी नकद ही करते हैं। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव है। चुनावी बांड इसी दिशा में उठाया गया कदम है।

वाजपेयी की सरकार ने आयकर छूट देकर उसे पारदर्शी बनाने का किया था प्रयास 

चुनावी फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिए अब तक उठाये गए कदमों का जिक्र करते हुए अरुण जेटली ने कहा कि सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राजनीतिक दलों को दिये जाने वाले चंदे पर आयकर छूट देकर उसे पारदर्शी बनाने का प्रयास किया था। उस समय माना जा रहा था कि चंदा देने वाले आम लोग, व्यापारी या औद्योगिक घराने आयकर में छूट लेने के लिए इसे सार्वजनिक करेंगे। ऐसा नहीं हुआ और बहुत कम लोगों ने इसे अपनाया। माना जा रहा है कि चंदा देने वाले लोगों ने नाम सार्वजनिक होने और बाद में विरोधी पार्टियों द्वारा निशाना बनाए जाने के डर से इससे दूरी बनाए रखी। चंदा देने वालों को इससे बचाने के लिए मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान के दौरान चुनाव ट्रस्ट का रास्ता निकाला। जिसमें कोई भी चंदा जमा कर सकता है और बाद में उसे विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बांटने की व्यवस्था है। लेकिन यह उपाय भी ज्यादा कारगर नहीं हो सका।

कुछ राजनीतिक दलों को नकद में चंदा लेने की आदत

जेटली के अनुसार पूरे देश में कालेधन के साम्राज्य को खत्म करने के लिए नोटबंदी जैसे बड़े फैसले लेने वाली मोदी सरकार ने चुनावी चंदे को भी पारदर्शी बनाने का बीड़ा उठाया और चुनावी बांड का रास्ता निकाला। जेटली ने माना चुनावी बांड की प्रक्रिया भी पूरी तरह पारदर्शी तो नहीं है, लेकिन यह अभी तक चले आ रहे नकदी चंदे से कई गुना बेहतर है। चुनावी बांड की आलोचना को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दलों को नकद में चंदा लेने की आदत बनी हुई है और वे बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन नए भारत में जब पूरी अर्थव्यवस्था पारदर्शी हो रही है, कालाधन खत्म हो रहा है, तब चुनावी फंडिंग को भी पारदर्शी होना ही होगा।

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