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ममता की बंगाल सरकार और चंद्र बाबू की आंध्र सरकार ने CBI को जांच से रोका

आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने सीबीआइ को राज्य में किसी भी तरह की जांच से रोक दिया है। इन दोनों राज्यों के भीतर जांच करने के लिए सीबीआइ को अब यहां की सरकारों से अनुमति लेनी होगी।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 11:53 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 12:32 AM (IST)
ममता की बंगाल सरकार और चंद्र बाबू की आंध्र सरकार ने CBI को जांच से रोका
ममता की बंगाल सरकार और चंद्र बाबू की आंध्र सरकार ने CBI को जांच से रोका

 नई दिल्ली, नीलू रंजन। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने सीबीआइ को राज्य में किसी भी तरह की जांच से रोक दिया है। इन दोनों राज्यों के भीतर जांच करने के लिए सीबीआइ को अब यहां की सरकारों से अनुमति लेनी होगी। आंध्र प्रदेश ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून (डीएसपीई एक्ट) के तहत सीबीआइ को राज्य के भीतर जांच के लिए दी गई शक्ति को समाप्त कर दिया है। आठ नवंबर को इस सिलसिले में अधिसूचना जारी की गई थी। ध्यान देने की बात है कि इसने तीन महीने पहले ही सीबीआइ अधिकारियों को राज्य में जांच की सामान्य अनुमति होने की अधिसूचना जारी की थी।

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आंध्र की राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल ने भी सीबीआइ को राज्य के भीतर जांच के लिए दी गई सहमति वापस ले ली है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार की अनुमति के बिना सीबीआइ बंगाल में किसी भी मामले की जांच नहीं कर सकेगी।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य सरकार की ओर से इस बाबत शुक्रवार देर शाम आनन-फानन में अधिसूचना भी जारी कर दी गई। ममता ने भाजपा पर सीबीआइ और अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करने का आरोप लगाया।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, इस अधिसूचना का सबसे अधिक प्रभाव आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के भीतर मौजूद केंद्र सरकार के उपक्रमों व केंद्र सरकार के कार्यालयों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई पर पड़ेगा। केंद्रीय उपक्रम में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार सीबीआइ को है। लेकिन, अब एफआइआर दर्ज करने के पहले राज्य सरकार से इसकी अनुमति लेनी होगी।

राज्य सरकार के भ्रष्टाचार और अन्य मामलों की जांच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि पहले से ही उसमें जांच के पहले राज्य सरकार की सहमति लेने का प्रावधान है। राज्य सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद ही सीबीआइ जांच शुरू कर पाती है। लेकिन हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ पहले की तरह राज्य सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।

पुराने मामलों पर विवाद संभव
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, आंध्र प्रदेश के भीतर चल रही सीबीआइ की पुराने मामलों की जांच विवाद का सबब बन सकता है। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून के साथ-साथ सीआरपीसी कानून भी सीबीआइ को मौजूदा केस जांच के सिलसिले में राज्य सरकार को सूचित कर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देता है। लेकिन आंध्र सरकार नई अधिसूचना का हवाला देते हुए ऐसे मामलों की जांच पर रोक लगा सकती है।


कांग्रेस-भाजपा में जुबानी जंग 
*कांग्रेस ने मोदी सरकार द्वारा सीबीआइ के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए नायडू का समर्थन किया है।
*कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि राज्यों का सीबीआइ से भरोसा उठना खतरनाक है। उन्होंने सीबीआइ की घटनाओं को गंभीर बताया।
*हालांकि, भाजपा ने इसे नायडू के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप की जांच को रोकने की कोशिश करार दिया है।
*भाजपा प्रवक्ता जीवीएन नरसिम्हा राव ने इसे सत्ता का दुरुपयोग बताया और कहा कि भ्रष्ट पार्टियों का महागठबंधन तैयार हो रहा है।


अधिसूचना के पीछे चंद्रबाबू का व्यक्तिगत डर तो नहीं
तीन महीने के भीतर अधिसूचना बदलने के पीछे चंद्रबाबू नायडू के व्यक्तिगत डर को अहम माना जा रहा है। दरअसल, सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा को दो करोड़ और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को दो करोड़ 95 लाख रुपये रिश्वत देने का दावा करने वाला सतीश बाबू सना हैदराबाद का रहने वाला है। उसे चंद्रबाबू नायडू का करीबी माना जाता है।

चर्चा यहां तक है कि चंद्रबाबू के साथ उसके लेन-देन के पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं। सना ने सीबीआइ के सामने स्वीकार किया है कि तेदेपा के एक सांसद ने उसे बचाने के लिए सीबीआइ निदेशक से बात की थी। इस मामले की जांच के दौरान इन दस्तावेजों के बाहर आने की संभावना है। नई अधिसूचना के बाद आंध्र में सना के खिलाफ जांच से सीबीआइ को रोका जा सकेगा।


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