जानें आखिर क्या है अनुच्छेद 35ए, जिसे लेकर जम्मू से दिल्ली तक मचा है बवाल
धारा 35ए के हट जाने के बाद भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच कई बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिनमें से एक नागरिकता का मुद्दा प्रमुख है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद 35ए की संवैधानिकता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई टल सकती है। राज्य सरकार ने स्थानीय और पंचायत चुनावों का हवाला देते हुए सोमवार को होने वाली सुनवाई टालने का आग्रह किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर तीन याचिकाओं में अनुच्छेद 35ए के कारण वहां विभिन्न वर्गो के साथ हो रहे भेदभाव का आरोप लगाया गया है और इसे निरस्त करने की मांग की गई है।
दरअसल, कश्मीर घाटी में कोई भी अनुच्छेद 35ए की संवैधानिकता पर दलीलों के आधार पर बहस के लिए तैयार नहीं है। धमकियों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस ने 35ए को लेकर खून-खराबे की धमकी दे दी है। हुर्रियत नेताओं ने इसके विरोध में पांच और छह अगस्त को घाटी बंद का एलान किया है। यही नहीं, विभिन्न वर्गो से जुड़े संगठनों को इसके खिलाफ आंदोलन करने को कहा गया है। खुफिया जानकारी के मुताबिक, हुर्रियत नेता घाटी के अखबारों को 35ए पर सुनवाई के खिलाफ लेख प्रकाशित करने के लिए भी दवाब बना रहे हैं। उन्हें आशंका है कि शायद बिना संसद की मुहर लगे संविधान में संलग्नक के रूप में शामिल इस अनुच्छेद को संवैधानिक बताने के तर्क कमजोर पड़ेंगे।
अभी तक शुरू नहीं हुई सुनवाई
35ए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। पिछले साल अगस्त में भी राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। इसके बाद इस साल के शुरू में केंद्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त किए जाने का हवाला देते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया था। एक बार फिर राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों को देखते हुए सुनवाई टालने का आग्रह किया है।
क्या है अनुच्छेद 35ए
दरअसल, अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिल जाता है। राज्य सरकार को ये अधिकार मिल जाता है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे या नहीं दे।
जानिए-कब जुड़ा ये अनुच्छेद
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया।
क्या कहता है जम्मू-कश्मीर का संविधान
बता दें कि 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया था। इसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है। इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।
इन कारणों से है विरोध
इसके अलावा अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है। महिलाओं ने भी अनुच्छेद को भेदभाव करने वाला कहा है।
एक याचिका कश्मीरी पंडित महिलाओं ने भी डाल रखी है जिसमें लिंग आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने की मांग की गई है। महिलाओं का कहना है कि जम्मू एवं कश्मीर में पैदा होने के बावजूद अगर वे बाहर के राज्य के पुरुष से शादी कर लेती हैं तो उनका राज्य में संपत्ति खरीदने, मालिकाना हक रखने या अपनी पुश्तैनी संपत्ति को अपने बच्चों को देने का अधिकार खत्म हो जाता है। बाहरी युवक से शादी करने के कारण उनकी राज्य की स्थाई नागरिकता खत्म हो जाती है जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं है। राज्य के पुरुष अगर दूसरे राज्य की महिला से शादी करते हैं तो उस महिला को भी राज्य के स्थाई निवासी का दर्जा मिल जाता है। इस तरह अनुच्छेद 35ए जम्मू एवं कश्मीर की बेटियों के साथ लिंग आधारित भेदभाव करता है।
संवैधानिकता पर सवाल
धारा 35ए की संवैधानिकता को लेकर लंबे समय से बहस चली आ रही है। इस अनुच्छेद को हटाने के लिए एक दलील ये दी जा रही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया था। दूसरी दलील ये है कि देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आए। इनमें लाखों की तादाद में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर राज्य में भी रह रहे हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुच्छेद 35A के जरिए इन सभी भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी प्रमाणपत्र से वंचित कर दिया। इन वंचितों में 80 फीसद लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय से हैं।