Ayodhya case: हिंदू महासभा और अन्य हिंदू पक्षों ने दाखिल किया 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ', जानें अब आगे क्या
Ayodhya land dispute case अखिल भारतीय हिंदू महासभा और अन्य हिंदू पक्षों ने अयोध्य भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ दाखिल किया।
नई दिल्ली, एएनआइ। Ayodhya land dispute case अखिल भारतीय हिंदू महासभा और अन्य हिंदू पक्षों ने शनिवार को अयोध्या भूमि विवाद मामले (Ayodhya land dispute case) में सुप्रीम कोर्ट में 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर हलफनामा दाखिल किया। हिंदू महासभा एवं अन्य पक्षों का कहना है कि संपत्ति का प्रबंधन कैसे किया जाए इस बारे में अदालत अपना आदेश दे सकती है। मामले में मुस्लिम पक्षकार भी संयुक्त रूप से 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर अपनी वैकल्पिक मांगों को सीलबंद लिफाफे में दाखिल कर चुके हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में फैसला सुरक्षित रखते समय सभी पक्षकारों को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर तीन दिन में लिखित हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। वहीं, विवादित ढांचा के पक्षकार हाजी महबूब ने सुप्रीम कोर्ट से बाहर शुक्रवार को एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि यदि फैसला मुस्लिम पक्ष में आता है तो भी उक्त जगह पर मस्जिद का निर्माण नहीं होगा। हम इस जमीन की बाउंड्री करके छोड़ देंगे। मैं सोचूंगा और विचार करूंगा कि उस जमीन पर क्या करना चाहिए। देश के हक में अमन और चैन रहे मेरी यही इच्छा है।
क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का प्रावधान सिविल सूट वाले मामलों के लिए होता है। इसका मतलब यह हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग अदालत से की है यदि वह नहीं मिलती तो एवज में कौन से विकल्प उसे दिए जा सकते हैं। यानी यदि हमारे पहले दावे को नहीं माना जा सकता है तो किन नए दावों पर अदालत विचार कर सकती है। जहां तक अयोध्या मामले का सवाल है तो यदि विवादित जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष जाता है तो अन्य पक्षकारों को इसके बदले क्या मिले... हलफनामे के जरिए वे मांगों को रखते हैं।
...तो नये सिरे से पूरे मुकदमे की सुनवाई
वैसे मामले में फैसला सुरक्षित होने के बाद लोगों की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि वह क्या फैसला देती है। सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे है। ऐसे में उसके पहले फैसला आने की उम्मीद है। यदि मुख्य न्यायाधीश के रिटायर होने तक फैसला नहीं आया तो नियमानुसार, मामले की सुनवाई दोबारा होगी। ऐसा होने की स्थिति में फिर से पीठ गठित करनी पड़ेगी और पूरी प्रक्रिया नए सिरे से शुरू होगी। हालांकि, इसकी उम्मीद काफी ज्यादा है कि 17 नवंबर तक फैसला आ जाएगा।