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आर्थिक संकट के भंवर में फंसी 'राहुल की कांग्रेस' की नैया पार लगा पाएंगे अहमद पटेल!

राजीव गांधी से पहले अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी का भी भरोसा जीता था। अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी से तब नजदीकियां बढ़ाई थीं, जब 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई थी।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 03:14 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 04:15 PM (IST)
आर्थिक संकट के भंवर में फंसी 'राहुल की कांग्रेस' की नैया पार लगा पाएंगे अहमद पटेल!
आर्थिक संकट के भंवर में फंसी 'राहुल की कांग्रेस' की नैया पार लगा पाएंगे अहमद पटेल!

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के नए कोषाध्‍यक्ष की जिम्‍मेदारी अहमद पटेल को सौंपी है। कांग्रेस के रणनीतिकार अहमद पटेल गांधी परिवार के करीबी और भरोसेमंद माने जाते हैं। इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक अहमद पटेल भरोसे के व्‍यक्ति रहे हैं। इसलिए अगामी लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने उन्‍हें ये जिम्‍मेदारी दी है, तो कोई हैरानी की बात नहीं। अहमद पटेल की राजनीतिक सूझबूझ पर भी कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता। लेकिन सवाल उठता है कि क्‍या अहमद पटेल कांग्रेस को आर्थिक संकट से निकाल पाएंगे? कांग्रेस के घटते जनाधार के बीच अहमद पटेल के लिए ये किसी चुनौती से कम नहीं है।

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घट रहा कांग्रेस का चुनावी चंदा
दरअसल, कांग्रेस इस समय अगले चुनाव की तैयारियों के लिए संसाधनों की कमी से जूझ रही है। मोदी सरकार आने के बाद से ही लगातार कांग्रेस के चुनावी चंदे में गिरावट दर्ज की गई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016-17 में भाजपा को मिला चुनावी चंदा 500 करोड़ रुपये को पार कर गया, वहीं कांग्रेस का चुनावी चंदा 42 करोड़ रुपये तक भी नहीं पहुंच पाया। 2016-17 में भाजपा को कुल चंदा (20 हजार रुपये से ज्‍यादा) 589.38 करोड़ रुपये मिला। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 41.90 करोड़ रुपये इस दौरान चुनावी चंदा मिला। ऐसे में अहमद पटेल की कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है। इस नई भूमिका के साथ पटेल की राहुल गांधी की टीम में भी आधिकारिक सियासी भूमिका तय हो गई है।

अमित शाह को उनके घरेलू मैदान में दी मात
लगभग एक साल पहले नौ अगस्त के दिन अहमद पटेल ने विपरीत परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को उनके घरेलू मैदान में मात देते हुए राज्यसभा की सीट जीत ली थी। पटेल की जीत में दो अहम कारक रहे थे, एक पटेल की राजनीतिक सूझबूझ और दूसरी एनसीपी और जेडीयू जैसी छोटी पार्टियों का तमाम दबाव के बाद भी उनके साथ टिके रहना। तब कांग्रेस की साख का सवाल बनी अहमद पटेल की सीट क्रॉस वोटिंग की वजह से विवादों में रही। लेकिन चुनाव आयोग ने वोटों की गिनती शुरू होने से पहले कांग्रेस की मांग को मानते हुए कांग्रेस विधायक भोला भाई और राघव जी भाई पटेल के वोट रद करने का आदेश दिया, जिसके बाद अहमद पटेल की जीत पक्‍की हो गई।

18 साल बाद फिर से कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी
सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते करीब दो दशक तक उनके राजनीतिक सलाहकार की ताकतवर भूमिका में रहे पटेल दस जनपथ के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में रहे हैं। अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कस रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी संगठनात्मक टीम में अहम बदलाव करते हुए अहमद पटेल को कांग्रेस का नया कोषाध्यक्ष नियुक्त किया है। पटेल को मोतीलाल वोरा की जगह चुनाव पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाया गया है। वोरा अब महासचिव के रूप में कांग्रेस मुख्यालय के प्रशासन की जिम्मेदारी संभालेंगे। दिलचस्प बात यह है कि सोनिया ने जब कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाली थी, तब पटेल ही पार्टी के कोषाध्यक्ष थे। सोनिया ने अपनी टीम बनाई तो मोतीलाल वोरा को कोषाध्यक्ष बनाया और पटेल उनके राजनीतिक सलाहकार बने। इस तरह पटेल करीब 18 साल बाद फिर से कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। वहीं मोतीलाल वोरा की निष्ठा का ख्याल रखते हुए संगठन में उनकी महासचिव के रुप में भूमिका बरकरार रखी गई है।

राजीव गांधी के भी रहे हैं करीबी
इसके कोई दो राय नहीं कि अहमद पटेल 1985 में राजीव गांधी के बाद के सभी कांग्रेस नेताओं के करीबी रहे हैं। तब उन्हें युवा प्रधानमंत्री का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था। लेकिन 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद अहमद पटेल पार्टी में बड़े नेता बनकर उबरे, जिसे कोई चुनौती नहीं दे पाया। राजीव गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी पीवी नरसिम्हा राव ने अहमद पटेल को अपने और 10 जनपथ के बीच एक सेतु की तरह इस्तेमाल करने का प्रयास किया, लेकिन इस दौरान अहमद पटेल सोनिया गांधी के भरोसेमंद शख्‍स बन गए।

अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी का भी जीता था भरोसा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजीव गांधी से पहले अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी का भी भरोसा जीता था। अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी से तब नजदीकियां बढ़ाई थीं, जब 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई थी। तब इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गई थीं। लेकिन तब अहमद पटेल भरूच से सांसद चुने गए थे। उस समय अहमद पटेल ने अपने साथ सनत मेहता के साथ मिलकर इंदिरा गांधी को भरूच बुलाया था। इसके बाद अहमद पटेल, इंदिरा गांधी के करीबी लोगों में शामिल हो गए।


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